कचहरी में मिलती है तारीख पर तारीख: यहां आसान नहीं पैमाइश, पहले पूरी कीजिए फरमाइश

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यदि आपने किसी भूमि की रजिस्ट्री ( बैनामा) कराई है, तो उस पर काबिज होना भी आसान नहीं है। हो सकता है कि आप उस भूमि को सुरक्षित करने के लिए चहारदीवारी बनाने जाएं, तो कोई आकर रोक दे। कहने लगे कि आप उसकी भूमि पर कब्जा कर रहे हैं। ऐसे में आप की परेशानी बढ़ सकती है, क्योंकि इसके पीछे भी बड़ा खेल है।

समस्या आने पर आपको स्थानीय लेखपाल से मिलना पड़ेगा। वह पैमाइश के लिए आने के लिए आपसे कुछ फरमाइश करेंगे। उनकी बात मान लेंगे तो शायद मामला सुलट जाएगा। वरना तहसील के चक्कर काटते-काटते महीनाें गुजर जाएंगे। तहसील में ऐसे लगभग पांच हजार से अधिक मामले लंबित हैं, जिनके निस्तारण के लिए तारीख लग रही है।

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भूमि का बैनामा कराने के बाद खारिज दाखिल की प्रक्रिया होती है। भूमि खरीदने वाले लोगों का नाम चढ़ने के बाद खतौनी जारी होती है। इसके बाद खरीदार जब भूमि पर कब्जा करने पहुंचते हैं, तो उनको कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। अक्सर ऐसे प्रकरण सामने आते हैं, जिनमें अगल-बगल के लोग नए भू स्वामी को कब्जा नहीं करने देते। जिस भूमि की रजिस्ट्री हुई रहती है। उस पर किसी तरह का निर्माण कार्य शुरू होने पर उसमें अपनी भूमि का हिस्सा बताकर काम रोक देते हैं।

आपत्ति जताते हुए कहते हैं कि बिना पैमाइश के इस पर कोई काम नहीं हो सकेगा। पैमाइश कराकर पहले पत्थर नसब कराइए। इसके बाद ही निर्माण होने देंगे। यह मामला शुरू में थाने पहुंचता है। संपूर्ण समाधान दिवस और थाना समाधान दिवस पर अधिकारियों के आदेश पर पुलिस बल के साथ लेखपाल-कानूनगो भूमि की माप करा देते हैं। इस दौरान यदि मामला नहीं खत्म हुआ तो फिर तहसील का चक्कर लगाने की नौबत आ जाती है।

 



दावों के निस्तारण में गुजर जाते हैं कई महीने

वरिष्ठ अधिवक्ताओं के अनुसार पक्की पैमाइश के लिए भू स्वामी को वाद दाखिल करना पड़ता है। वरिष्ठ अधिवक्ता श्रीभागवत राय के मुताबिक राजस्व संहिता 2006/16 की धारा 24 के तहत पक्की पैमाइश (पत्थर नसब)के लिए एसडीएम के कोर्ट में दावा दाखिल करना होता है। वहां से दावे को निस्तारण के लिए तहसील पर भेज दिया जाता है। फिर तहसीलदार की ओर से उस दावे में कानूनगो और लेखपाल की रिपोर्ट लगती है। इसमें ही खेल होता है। मामले को त्वरित निस्तारित कराने के लिए लेखपाल फरमाइश करते हैं। उनकी बात मान ली गई, तो जल्दी काम हो जाएगा। वरना कोई न कोई कमी बताकर पैमाइश में पेच में फंसा देते हैं, जिससे वाद चलता रहता है। पक्की पैमाइश के लिए प्रति गाटा एक हजार रुपये का ट्रेजरी चालान जमा कराने का नियम है।

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45 दिन का नियम, लोग महीनों लगाते चक्कर

अधिवक्ता महेश श्रीवास्तव के अनुसार पैमाइश का आवेदन होने पर 45 दिन में प्रक्रिया पूरी हो जानी चाहिए। ऐसे प्रकरण में लेखपाल और कानूनगो सीधे आवेदक (भू स्वामी) से संपर्क साधते हैं। यदि उनके मुताबिक आवेदक ने काम किया, तो जल्दी प्रक्रिया पूरी हो जाएगी। वरना किसी न किसी बहाने इसमें महीनों लग जाएंगे। इस चक्कर में आवेदक महीनों तहसील, लेखपाल और कानूनगो के चक्कर में दौड़ते रहेंगे। ऐसे तमाम मामले हैं जिनमें लोग महीनों से चक्कर काट रहे हैं। जल्दी काम करने के लिए रुपयों की मांग की जाती है।


केस एक

बिचौलिए ने ले लिए 12 हजार, फिर भी नहीं हुई पैमाईश

गांगी बाजार की रहने वाली कुसुमवती ने महराजगंज चौराहे पर भूमि खरीदी थी। बैनामा कराने के बाद वह जब कब्जा करने गईं, तो अगल-बगल के कुछ लोगों ने आपत्ति जताई। उन्होंने लेखपाल से मनुहार करके पैमाइश कराने का प्रयास किया। इसके बदले में एक व्यक्ति ने उनसे 12 हजार रुपये भी ले लिए। उसने कहा कि सब मैनेज करा देगा। इसके बाद भी भूमि की पैमाइश नहीं हो सकी। उनका दावा लंबित चल रहा है।

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केस दो

दो साल से लगा रहे चक्कर, अब तक नहीं मिला कब्जा

जंगल धूसड़ निवासी राजेंद्र निषाद ने दो साल पूर्व जैनपुर में भूमि खरीदी। इसकी पैमाइश के लिए उन्होंने राजस्वकर्मियों से संपर्क किया। लेकिन उनका काम नहीं हो सका। इसके बाद उन्होंने पैमाइश का दावा दाखिल किया। राजेंद्र का कहना है कि दो साल से अधिक का समय गुजर गया। वह अपनी भूमि पर कब्जा नहीं कर पा रहे हैं। उनका कहना है कि कभी लेखपाल नहीं मिलते, तो कभी कोई दूसरी समस्या आ जाती है।

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क्या है पक्की पैमाइश

तहसील के अधिवक्ताओं के मुताबिक भूमि के जिस गाटा संख्या की पैमाइश होती है। उसका नक्शा, खसरा और खतौनी दावे में दाखिल किया जाता है। इसी के आधार पर लेखपाल की रिपोर्ट लगती है। संबंधित गाटा की पैमाइश करने के लिए अगल-बगल के लोगों काे नोटिस दी जाती है। इस दौरान नक्शा और खतौनी के आधार पर नापी नहीं की जाती है। पैमाइश के लिए तीन पथरान (फिक्स प्वाइंट जैसे कोई पुराना कुंआ, मंदिर, भवन, सड़क इत्यादि) के आधार पर नापी होती है। नक्शा और अन्य चीजें दुरुस्त होने पर लेखपाल रिपोर्ट लगा देते हैं। इसको कच्ची पैमाइश कहते हैं। इस रिपोर्ट पर जब कोई आपत्ति नहीं आती है तो एसडीएम इसे सत्यापित कर देते हैं। उनके सत्यापन के बाद भूमि की पक्की पैमाइश (पत्थर नबस) की प्रक्रिया पूरी हो जाती है।


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