UP Politics: मायावती का यह है ‘मिशन ग्राउंड’, चार दशक पुराने कांशीराम मॉडल पर लौट रही BSP, इसलिए बदली रणनीति

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UP Politics: Mayawati Mission Ground is ready based on four decades old Kanshi Ram model

UP Politics: Mayawati
– फोटो : Amar Ujala/Sonu Kumar

विस्तार

लगातार चुनावों में हार का मुंह देख रही बहुजन समाज पार्टी ने आखिरकार चार दशक पुराने कांशीराम मॉडल को अपनाकर लोकसभा के चुनाव में जाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसके चलते बहुजन समाज पार्टी के रणनीतिकारों ने मायावती को ग्राउंड पर उतारने के लिए ‘मिशन ग्राउंड’ बनाना शुरू कर दिया। योजना के मुताबिक मायावती अगस्त के बाद शुरू होने वाले बसपा के कैडर कैंप में अपने जमीनी कार्यकर्ताओं से न सिर्फ मुखातिब होंगी, बल्कि उनको आने वाले लोकसभा चुनावों के लिए नए दिशा निर्देश भी देंगी। लंबे समय से बसपा में मांग उठती रही है कि मायावती अगर जमीन पर उतर कर कार्यकर्ताओं से सीधे मुखातिब हों, तो संभव है पार्टी का वोट बैंक भी बढ़े और पार्टी की राजनीतिक हिस्सेदारी भी।

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गिरते ग्राफ को संभालने के लिए फिर कांशीराम मॉडल

2007 के विधानसभा चुनावों में बंपर सफलता पाने के बाद मायावती ने 5 साल उत्तर प्रदेश में शासन किया। लेकिन 2012 में समाजवादी पार्टी सत्ता में आई, तो बहुजन समाज पार्टी का ग्राफ इस कदर गिरा कि कभी अपने बलबूते उत्तर प्रदेश में सरकार बनाने वाली बसपा का इस वक्त महज एक विधायक सदन में मौजूद है। राजनैतिक विश्लेषक रमाकांत चौधरी कहते हैं कि 2012 के बाद गिरते हुए ग्राफ को संभालना मायावती और उनकी पार्टी के लिए न सिर्फ मुश्किल हुआ, बल्कि हालात भी पार्टी के लिए बदतर होते चले गए। 2014 के लोकसभा चुनाव में तो बसपा अपना खाता तक नहीं खोल पाई। चौधरी कहते हैं कि बसपा की वर्तमान दशा का जिम्मेदार पार्टी का नेतृत्व ही है। यही वजह है कि बसपा ने अपने गिरते हुए इस जनाधार को संभालने के लिए कांशीराम के उस मॉडल को लाने की योजना बनाई है, जिसकी करीब चार दशक पहले उन्होंने शुरुआत की थी। बहुजन समाज पार्टी से जुड़े नेताओं के मुताबिक उनकी पार्टी लोगों के घर तक पहुंचने की योजना बना रही है। इसमें मायावती से लेकर पार्टी के कोऑर्डिनेटर और पार्टी के पदाधिकारियों को जन अभियान में शिरकत करने के लिए उतारा जाएगा। बहुजन समाज पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि कांशीराम में अपने आंदोलन के दौरान पैदल चलकर लोगों के घर-घर दस्तक दी थी, उसके बाद ही मिशन के तहत पार्टी का जनाधार तैयार हुआ था।

अगस्त से शुरू होगा मायावती का मिशन ग्राउंड

बहुजन समाज पार्टी से जुड़े नेताओं के मुताबिक अगले कुछ महीनों में उनकी पार्टी बूथ स्तर पर अपनी कमेटियों का गठन कर संगठनात्मक ढांचे को मजबूत करेगी। इन कमेटियों के गठन के बाद पार्टी कैडर कैंप की शुरुआत करेगी। इस कैडर कैंप में बहुजन समाज पार्टी में बहुत ही सधी हुई रणनीति के तहत बूथ स्तर तक के अपने पार्टी पदाधिकारियों को शामिल करने की योजना बनाई है। पार्टी से जुड़े सूत्रों का कहना है कि इन कैडर कैंप में मायावती की शिरकत कराए जाने की पूरी तैयारी चल रही है। अनुमान यही लगाया जा रहा है कि अगस्त में शुरू होने वाले इन कैडर कैंप में मायावती कई जिलों के कैंप में शामिल होंगी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीते कई चुनावों के दौरान यह पहला मौका होगा, जब मायावती ऐसे आयोजनों में अपने बूथ स्तर तक के कार्यकर्ताओं से मिलकर चुनाव में उनको राजनीतिक दांव पेंच के बारे में जानकारी देंगी।

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कांशीराम अपने कैडर के लोगों से रखते थे करीबी

राजनीतिक जानकार रमाकांत चौधरी कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी में मायावती ही नहीं, बल्कि कांशीराम के दौर से चुनावों में मजबूती से आगे बढ़ने के लिए कैडर कैंप की महत्वपूर्ण भूमिका होती रही है। यही वजह है कि अपने खोए हुए जनाधार को वापस पाने के लिए नई रणनीति के तौर पर कांशीराम मॉडल को बहुजन समाज पार्टी आगे ला रही है। बहुजन समाज पार्टी के प्रमुख रणनीतिकारों में शामिल एक नेता बताते हैं कि मायावती आने वाले लोकसभा के चुनावों में अपने खोए हुए जनाधार को पाने के लिए कार्यकर्ताओं से सीधे तौर पर मुलाकात करेंगी। राजनीतिक विश्लेषक जनार्दन शुक्ला कहते हैं कि दरअसल बीते कुछ चुनावों में मायावती सिर्फ एक-दो बड़ी रैलियों के माध्यम से ही जनता से मुखातिब होती रही हैं। विपक्षी दलों के नेता लगातार लोगों के घर जाकर न सिर्फ कार्यकर्ताओं के साथ भोजन करते हैं, बल्कि रात्रि विश्राम का भी आयोजन किया जाता रहा है। ऐसी नई रणनीति में बहुजन समाज पार्टी न सिर्फ पिछड़ी है, बल्कि अपना कोर वोट बैंक का जनाधार भी खोती जा रही है। यही वजह है कि मायावती अब अपनी पार्टी को आगे बढ़ाने के लिए जनता से सीधे संवाद करने की काशीराम की तरह की योजना बना रही हैं।

इस नारे के साथ बसपा फिर ढूंढ रही अपने वोटरों को

आने वाले लोकसभा के चुनावों में बहुजन समाज पार्टी में ‘वोट हमारा राज तुम्हारा…नहीं चलेगा” का दशकों पुराना नारा फिर से जीवित किया है। राजनैतिक विश्लेषक जनार्दन शुक्ला कहते हैं कि यही नारा बसपा की नींव पड़ने के वक्त भी अति पिछड़ों, दलितों और मुसलमानों को एक साथ करके सियासत में अपनी हिस्सेदारी मांगते वक्त सबसे मजबूत हथियार बना था। इस बार जब मायावती का यही वोट बैंक उनके अपने हिस्से से खिसक कर भाजपा समेत अन्य दूसरे दलों में चला गया, तो पार्टी फिर से उन्हें वोट बैंक को अपने साथ जोड़ कर उसी नारे से पार्टी को मजबूत करने का सियासी दांव चल रही है।

मायावती के सिवाय बसपा में कोई दूसरा मजबूत चेहरा नहीं

दरअसल बसपा को अपनी पूरी रणनीति सिर्फ इसीलिए बदलनी पड़ रही है, क्योंकि इस वक्त उनके पास कोई भी दूसरा बड़ा चेहरा पार्टी में नहीं है। राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि जो चेहरे हैं भी वे कांशीराम या मायावती की तरह जनता में उतने जाने पहचाने नहीं हैं कि उनके नाम पर वोट गिरता रहे। यही वजह है कि इस लोकसभा चुनाव में मायावती को अपने चेहरे के साथ ही जनता के बीच कैडर कैंप में जाने की व्यापक रणनीति बनानी पड़ी। बसपा से जुड़े एक वरिष्ठ नेता बताते हैं कि ऐसा नहीं है कि मायावती के सिवाय उनके पास पार्टी में चेहरे नहीं हैं। उनका तर्क है कि उनकी पार्टी काफी समय से सत्ता में नहीं है और विपक्ष में होने के चलते उनके नेताओं को अन्य जनसामान्य में इतनी जगह नहीं मिल पाती है। वह कहते हैं कि अपने कैडर और मिशन से जुड़े लोगों के बीच उनकी पार्टी के प्रत्येक बड़े नेता की अपनी एक अलग पहचान है। इसी बलबूते लोकसभा के चुनाव में उनकी पार्टी मजबूती से आगे बढ़ रही है।

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