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इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग करने वाली दूसरी याचिका पहली याचिका खारिज होने के बावजूद कायम रखी जा सकती है। बशर्ते, परिस्थितियों में बदलाव हो तो दावेदार इस प्रावधान के तहत हकदार हो सकता है। कोर्ट ने कहा कि यदि भरण-पोषण के लिए याचिका दाखिल करने का अधिकार समाप्त कर दिया जाता है तो यह सीआरपीसी की धारा 125 के मूल उद्देश्य को भी समाप्त कर देगा।
यह आदेश न्यायमूर्ति ज्योत्सना शर्मा ने श्याम बहादुर सिंह की याचिका को खारिज करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि जहां एक व्यक्ति कुछ समय के लिए अपना भरण-पोषण करने में सक्षम है लेकिन उसके बाद बदली हुई परिस्थितियों के कारण अपने संसाधनों को खो देता है तो ऐसे में भरण-पोषण का दावा करने का एक नया अधिकार मिल सकता है।
कोर्ट ने मामले में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट उत्तर-पूर्व रेलवे बांदा के जनवरी के आदेश को बरकरार रखते हुए प्रतिवादी को (याची की पत्नी) भरण-पोषण का भुगतान करने का आदेश दिया। प्रतिवादी का पूर्व में भरण पोषण का दावा जिसे जनवरी 1995 में कुछ आधारों पर खारिज कर दिया गया था। इसके बाद उसकी परिस्थितियों में बदलाव आया तो उसने सीआरपीसी 125 के तहत 2003 में फिर भरण-पोषण के भुगतान का दावा किया।
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