उत्तर प्रदेश चुनाव: क्या दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह अपनी साख बचाने में कामयाब हो पाएंगे आरपीएन सिंह?

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सार

आरपीएन सिंह की पारंपरिक सीट पडरौना से वे स्वामी प्रसाद मौर्य से चुनाव हार चुके थे। माना जा रहा था कि यदि स्वामी प्रसाद मौर्य दोबारा इस सीट से चुनाव मैदान में उतरते तो उनके सामने आरपीएन सिंह को उतारा जा सकता था। वे भाजपा के मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकते थे, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य के फाजिलनगर विधानसभा चले जाने से इस सीट पर आरपीएन सिंह के करीबी को टिकट दे दिया गया…

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उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह के सामने अपनी साख बचाने की गहरी चुनौती है। कांग्रेस में रहते हुए खुद अपनी सीट न बचा पाने वाले आरपीएन सिंह को भाजपा में अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए गृह जिले की सीटों पर ‘नई’ पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाने का गहरा दबाव है। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह वे अपने क्षेत्र में भाजपा के लिए जीत दिलाने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे भाजपा में उनकी साख मजबूत होगी, और पार्टी में इसका उन्हें बड़ा इनाम भी मिल सकता है। लेकिन माना जा रहा है कि यदि वे इसमें नाकाम रहते हैं तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।

आरपीएन सिंह के दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में अपनी उपेक्षा होने का आरोप लगाकर पार्टी से अलग हो गए थे। उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। माना जाता है कि उन्होंने भाजपा में आकर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की सरकार बनवाने में सफल भूमिका निभाई थी। इसका उन्हें पुरस्कार भी मिला। पहले वे राज्यसभा के लिए चुने गए और अब वे केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं।

जानकारी के मुताबिक, पहली बार आरपीएन सिंह अपने गृह क्षेत्र देवरिया में कड़ी मेहनत करते देखे जा रहे हैं। वे लगातार अपने गृह क्षेत्र में जनसभाएं कर लोगों को भाजपा उम्मीदवारों को वोट देने की अपील कर रहे हैं। आज जबकि उनके गृह जिले देवरिया में मतदान चल रहा है, आरपीएन सुबह से ही लगातार सक्रिय हैं और जगह-जगह पहुंचकर तेज मतदान कराने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर रहे हैं।

भाजपा उन्हें पूर्वांचल में फैले पिछड़ी जाति के प्रभावशाली सैंथवार वोटरों को आकर्षित करने के लिए अपने साथ लाई थी। अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए वे देवरिया के साथ-साथ आसपास के जिलों में भी सैंथवार बहुल लोगों के बीच जाकर भाजपा को जिताने की अपील कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि सैंथवार समुदाय के लोग अभी भी राजपरिवार के आरपीएन के प्रति अच्छी भावना रखते हैं और भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है।

आरपीएन सिंह की पारंपरिक सीट पडरौना से वे स्वामी प्रसाद मौर्य से चुनाव हार चुके थे। माना जा रहा था कि यदि स्वामी प्रसाद मौर्य दोबारा इस सीट से चुनाव मैदान में उतरते तो उनके सामने आरपीएन सिंह को उतारा जा सकता था। वे भाजपा के मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकते थे, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य के फाजिलनगर विधानसभा चले जाने से इस सीट पर आरपीएन सिंह के करीबी को टिकट दे दिया गया। हालांकि, फाजिलनगर विधानसभा सीट पर भी स्वामी प्रसाद मौर्य को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

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विस्तार

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस छोड़ भाजपा में शामिल हुए आरपीएन सिंह के सामने अपनी साख बचाने की गहरी चुनौती है। कांग्रेस में रहते हुए खुद अपनी सीट न बचा पाने वाले आरपीएन सिंह को भाजपा में अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए गृह जिले की सीटों पर ‘नई’ पार्टी के उम्मीदवारों को जीत दिलाने का गहरा दबाव है। यदि ज्योतिरादित्य सिंधिया की तरह वे अपने क्षेत्र में भाजपा के लिए जीत दिलाने में कामयाब हो जाते हैं, तो इससे भाजपा में उनकी साख मजबूत होगी, और पार्टी में इसका उन्हें बड़ा इनाम भी मिल सकता है। लेकिन माना जा रहा है कि यदि वे इसमें नाकाम रहते हैं तो उन्हें नुकसान उठाना पड़ सकता है।

आरपीएन सिंह के दोस्त ज्योतिरादित्य सिंधिया भी कांग्रेस में अपनी उपेक्षा होने का आरोप लगाकर पार्टी से अलग हो गए थे। उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया था। माना जाता है कि उन्होंने भाजपा में आकर मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह की सरकार बनवाने में सफल भूमिका निभाई थी। इसका उन्हें पुरस्कार भी मिला। पहले वे राज्यसभा के लिए चुने गए और अब वे केंद्र सरकार में नागरिक उड्डयन मंत्री हैं।

जानकारी के मुताबिक, पहली बार आरपीएन सिंह अपने गृह क्षेत्र देवरिया में कड़ी मेहनत करते देखे जा रहे हैं। वे लगातार अपने गृह क्षेत्र में जनसभाएं कर लोगों को भाजपा उम्मीदवारों को वोट देने की अपील कर रहे हैं। आज जबकि उनके गृह जिले देवरिया में मतदान चल रहा है, आरपीएन सुबह से ही लगातार सक्रिय हैं और जगह-जगह पहुंचकर तेज मतदान कराने के लिए भाजपा कार्यकर्ताओं को प्रेरित कर रहे हैं।

भाजपा उन्हें पूर्वांचल में फैले पिछड़ी जाति के प्रभावशाली सैंथवार वोटरों को आकर्षित करने के लिए अपने साथ लाई थी। अपनी उपयोगिता साबित करने के लिए वे देवरिया के साथ-साथ आसपास के जिलों में भी सैंथवार बहुल लोगों के बीच जाकर भाजपा को जिताने की अपील कर रहे हैं। कहा जा रहा है कि सैंथवार समुदाय के लोग अभी भी राजपरिवार के आरपीएन के प्रति अच्छी भावना रखते हैं और भाजपा को इसका लाभ मिल सकता है।

आरपीएन सिंह की पारंपरिक सीट पडरौना से वे स्वामी प्रसाद मौर्य से चुनाव हार चुके थे। माना जा रहा था कि यदि स्वामी प्रसाद मौर्य दोबारा इस सीट से चुनाव मैदान में उतरते तो उनके सामने आरपीएन सिंह को उतारा जा सकता था। वे भाजपा के मजबूत उम्मीदवार साबित हो सकते थे, लेकिन स्वामी प्रसाद मौर्य के फाजिलनगर विधानसभा चले जाने से इस सीट पर आरपीएन सिंह के करीबी को टिकट दे दिया गया। हालांकि, फाजिलनगर विधानसभा सीट पर भी स्वामी प्रसाद मौर्य को कड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है।

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