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सार
इस चुनाव में बांगरमऊ से गोपीनाथ दीक्षित, सफीपुर से हरिप्रसाद कुरील, हड़हा से सच्चिदानंद बाजपेयी, भगवंतनगर से भगवती सिंह विशारद और पुरवा से गया सिंह जीते और हसनगंज से कांग्रेस व कम्युनिस्ट पार्टी के साझा उम्मीदवार भीखालाल ने चुनाव जीता।
कभी जिस कांग्रेस के नाम का उन्नाव जिले में डंका बजता था। वह अब वजूद की जंग लड़ रही है। इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई। पिछले पांच चुनावों में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में जीत को तरस गई। 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जिले की सात विधानसभा सीटों में मतदाताओं ने ‘हाथ’ का साथ दिया था और बांगरमऊ से हबीबुर्रहमान अंसारी, उन्नाव से लीलाधर अस्थाना, भगवंतनगर से देवीदत्त मिश्रा, पुरवा से रामाधीन सिंह, हसनगंज से सेवाराम भारती ने चुनाव जीता था।
1962 के चुनाव में कांग्रेस ने सात में से पांच पर जीत हासिल की थी। 1967 में पार्टी को कुछ नुकसान झेलना पड़ा लेकिन फिर भी उन्नाव से जियाउर्रहमान अंसारी, बिछिया से (1974 के परिसीमन में समाप्त) रामाधीन सिंह और भगवंतनगर से भगवती सिंह विशारद के सिर जनता ने जीत का सेहरा बांधा था।
1969 के चुनाव में बांगरमऊ से कांग्रेस के गोपीनाथ दीक्षित, भगवंतनगर से भगवती सिंह, पुरवा से दुलारे लाल और तब की मियागंज सीट से बद्री प्रसाद जीते थे। 1974 में सात में से तीन सीटें कांग्रेस के हिस्से में आईं थीं। 1980 में पांच सीटें जीतीं।
इस चुनाव में बांगरमऊ से गोपीनाथ दीक्षित, सफीपुर से हरिप्रसाद कुरील, हड़हा से सच्चिदानंद बाजपेयी, भगवंतनगर से भगवती सिंह विशारद और पुरवा से गया सिंह जीते और हसनगंज से कांग्रेस व कम्युनिस्ट पार्टी के साझा उम्मीदवार भीखालाल ने चुनाव जीता।
1985 में सात में चार सीटों पर कांग्रेस ने जीत हासिल की जबकि सफीपुर सीट से सुंदरलाल ने जनतादल और पुरवा से ह्रदय नारायण दीक्षित ने निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में चुनाव जीता। 1996 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को तगड़ा नुकसान झेलना पड़ा।
इस चुनाव में सिर्फ एक ‘हड़हा’ सीट ही कांग्रेस के हिस्से आ पाई। 1996 के चुनाव के बाद से पार्टी जिले में वजूद की जंग लड़ रही है। 2002 के विधानसभा चुनाव में उसे जिले की सभी छह सीटों पर करारी शिकस्त झेलनी पड़ी। 2007, 2012, 2017 और अब 2022 के चुनाव में भी खाता नहीं खुल सका है।
2017 में गठबंधन के बाद भी जीत नहीं
वर्ष 2017 के चुनाव में सपा और कांग्रेस ने प्रदेश में गठबंधन कर चुनाव लड़ा था। उन्नाव जिले में सपा ने सिर्फ भगवंतनगर सीट कांग्रेस को दी थी। इस चुनाव में भी कांग्रेस प्रत्याशी को हार मिली थी।
उपचुनाव में भी मिली शिकस्त
2017 में बांगरमऊ से भाजपा के टिकट पर चुनाव जीते कुलदीप सेंगर के दुष्कर्म में उम्रकैद होने के बाद नवंबर 2019 में इस सीट के लिए हुए उपचुनाव में कांग्रेस ने आरती बाजपेयी को उतारा था। वह भी दूसरे नंबर पर रही थीं।
काम न आई प्रियंका की घोषणा
इस बार के उप्र चुनाव की कमान कांग्रेस की महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने संभाली थी। उन्होंने महिलाओं को लुभाने के लिए लड़की हूं लड़ सकती हूं का नारा देते हुए 40 प्रतिशत सीटें देने की घोषणा की थी। इसी घोषणा पर अमल भी किया और जिले की छह में से चार सीटों पर महिला प्रत्याशी उतारीं। इनमें सदर से आशा सिंह, मोहान से मधु वर्मा, पुरवा से उरूसा इमरान राना और बांगरमऊ से पार्टी की जिलाध्यक्ष आरती बाजपेयी को टिकट दिया था। लेकिन इस बार भी जिले में कांग्रेस का खाता नहीं खुला।
इन पर भी डालें नजर
1977- कांग्रेस को आपातकाल विरोधी लहर का सामना करना पड़ा और कांग्रेस का एक भी प्रत्याशी नहीं जीता।
1989- कांग्रेस को वीपी सिंह की बगावत का खामियाजा भुगतना पड़ा। इस चुनाव में कोई प्रत्याशी नहीं जीता।
1993- चुनाव में भी कांग्रेस जीत के लिए तरसती रह गई।
1996- हड़हा सीट जीतकर कांग्रेस ने लगातार हार का सिलसिला तोड़ा लेकिन इसके बाद से जिले में खाता नहीं खोल पाई।
विस्तार
कभी जिस कांग्रेस के नाम का उन्नाव जिले में डंका बजता था। वह अब वजूद की जंग लड़ रही है। इस बार के चुनाव में भी कांग्रेस खाता नहीं खोल पाई। पिछले पांच चुनावों में कांग्रेस विधानसभा चुनाव में जीत को तरस गई। 1952 में हुए पहले विधानसभा चुनाव में जिले की सात विधानसभा सीटों में मतदाताओं ने ‘हाथ’ का साथ दिया था और बांगरमऊ से हबीबुर्रहमान अंसारी, उन्नाव से लीलाधर अस्थाना, भगवंतनगर से देवीदत्त मिश्रा, पुरवा से रामाधीन सिंह, हसनगंज से सेवाराम भारती ने चुनाव जीता था।
1962 के चुनाव में कांग्रेस ने सात में से पांच पर जीत हासिल की थी। 1967 में पार्टी को कुछ नुकसान झेलना पड़ा लेकिन फिर भी उन्नाव से जियाउर्रहमान अंसारी, बिछिया से (1974 के परिसीमन में समाप्त) रामाधीन सिंह और भगवंतनगर से भगवती सिंह विशारद के सिर जनता ने जीत का सेहरा बांधा था।
1969 के चुनाव में बांगरमऊ से कांग्रेस के गोपीनाथ दीक्षित, भगवंतनगर से भगवती सिंह, पुरवा से दुलारे लाल और तब की मियागंज सीट से बद्री प्रसाद जीते थे। 1974 में सात में से तीन सीटें कांग्रेस के हिस्से में आईं थीं। 1980 में पांच सीटें जीतीं।
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