ट्रामा सेंटर होगा हाईटेक

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उन्नाव। राजधानी लखनऊ और महानगर कानपुर सहित पांच जिलों के बीच बसे उन्नाव में हाईवे, एक्सप्रेसवे सहित अन्य जिला मार्गों का संजाल है। हाईवे पर रोजाना औसतन चार दुर्घटनाएं होती हैं। ट्रामा सेंटर का संचालन न होने से अच्छे इलाज के अभाव में घायलों की मौत हो जाती है। इसे गंभीरता से लेकर डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने उन्नाव के ट्रामा सेंटर को हाईटेक उपकरणों से लैस करने और पर्याप्त विशेषज्ञ चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती सुनिश्चित कराने की बात कही है।
जिले में ट्रामा सेंटर बनने के सात साल बाद भी लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। गंभीर घायलों व बीमारों को लखनऊ ट्रामा सेंटर या कानपुर हैलट रेफर करने की मजबूरी है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने दुर्घटनाओं में घायल लोगों की जान बचाने के लिए वर्ष 2007 में ट्रामा सेंटर के लिए प्रयास शुरू किए थे। तब वह जिले के सांसद थे।
उनकी तमाम कोशिशों के बाद 2016 में 120.83 लाख रुपये की लागत ट्रामा सेंटर बनकर तैयार हो पाया लेकिन डॉक्टरों की तैनाती न होने से इलाज की सुविधा नहीं मिल पाई। अब बृजेश पाठक डिप्टी सीएम बन गए हैं तो लोगों को ट्रामा सेंटर के संचालन की उम्मीद जगी है। डिप्टी सीएम ने बताया कि प्रदेश के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। कोरोना महामारी में भी प्रदेश सरकार ने सबसे बेहतर काम करके दिखाया। अस्पताल और मेडिकल कॉलेज बनाए गए हैं। (संवाद)
ट्रामा सेंटर में ये सुविधाएं जरूरी
पर्याप्त दवाएं, सर्जरी, न्यूरो सर्जरी, आर्थोपेडिक्स, रेडियोलॉजिस्ट, एनस्थीसिया, विशेषज्ञ डॉक्टर, वर्किंग ऑपरेशन थिएटर, क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट, ट्रांसपोर्टेबल वेंटिलेटर, सीटी स्कैन, ब्लड स्टोरेज यूनिट, पोर्टेबल डिजिटल एक्सरे मशीन, सेंट्रल ऑक्सीजन लाइन, पैथोलॉजी, ईको कार्डियोग्राफी, ईसीजी और स्पाइन बोर्ड जैसी सुविधाएं होना जरूरी हैं।
वेंटिलेटर छह, चालू कोई नहीं
ट्रामा सेंटर में तीन साल पहले छह वेंटिलेटर आए थे। उन्हें आईसीयू में लगाया जाना था, ताकि गंभीर मरीजों का इलाज किया जा सके लेकिन डॉक्टरों का प्रशिक्षण न होने और सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन सप्लाई शुरू न होने से वह उपयोग में नहीं आए।
वर्जन
सीएमएस डॉ. पवन कुमार ने बताया कि ट्रामा सेंटर क्रियाशील है। कुछ संसाधनों और स्टाफ की कमी के कारण गंभीर मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को पत्र भेजा गया है, जल्द ही उपलब्ध होने की उम्मीद है।
स्टाफ स्वीकृत पद तैनात
सर्जन 2 0
निश्चेतक 2 1
अस्थि विशेषज्ञ 2 2
ईएमओ 3 0
डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने पूर्व में किए ये प्रयास
-2007 में सांसद रहते हुए बृजेश पाठक ने केंद्र सरकार को जिले की स्थिति बताते हुए यहां ट्रामा सेंटर व जिला अस्पताल को अपग्रेड करने की मांग की। एनआरएचएम के तहत कुछ काम हुए।
-2008 में उन्होंने केंद्र सरकार और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखकर जिले में ट्रामा सेंटर स्थापित करने की मांग की।
– नौ जनवरी 2013 को तत्कालीन राज्यसभा सदस्य व केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी समिति के चेयरमैन रहते हुए बृजेश पाठक ने तत्कालीन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद को दुर्घटना बाहुल्य उन्नाव की स्थिति से अवगत करा ट्रामा सेंटर और मेडिकल कालेज की स्थापना की मांग की।
-2014 में उनकी कोशिश सफल हुई। 120.83 लाख की लागत से ट्रामा सेंटर को मंजूरी मिली और निर्माण की शुरुआत हुई।
-2016 में ट्रामा सेंटर का भवन तैयार हो गया लेकिन उपकरण और स्टाफ के अभाव में ताला बंद रहा।
– 2018 में हड्डी के डॉक्टरों को तैनात कर ट्रामा सेंटर के संचालन की औपचारिकता निभाई गई।
– 2020 में कोरोना का प्रकोप बढ़ा तो ट्रामा सेंटर को आईसोलेशन वार्ड के रूप में प्रयोग किया गया।
वर्ष हादसे मृतक घायल
2020 671 408 444
2021 844 515 568
2022 169 108 109 (15 मार्च तक)

ट्रामासेंटर में अनुपयोगी रखे चिकित्सा उपकरण। संवाद

ट्रामासेंटर में अनुपयोगी रखे चिकित्सा उपकरण। संवाद– फोटो : UNNAO

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उन्नाव। राजधानी लखनऊ और महानगर कानपुर सहित पांच जिलों के बीच बसे उन्नाव में हाईवे, एक्सप्रेसवे सहित अन्य जिला मार्गों का संजाल है। हाईवे पर रोजाना औसतन चार दुर्घटनाएं होती हैं। ट्रामा सेंटर का संचालन न होने से अच्छे इलाज के अभाव में घायलों की मौत हो जाती है। इसे गंभीरता से लेकर डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने उन्नाव के ट्रामा सेंटर को हाईटेक उपकरणों से लैस करने और पर्याप्त विशेषज्ञ चिकित्सकों व स्वास्थ्य कर्मियों की तैनाती सुनिश्चित कराने की बात कही है।

जिले में ट्रामा सेंटर बनने के सात साल बाद भी लोगों को इलाज नहीं मिल पा रहा है। गंभीर घायलों व बीमारों को लखनऊ ट्रामा सेंटर या कानपुर हैलट रेफर करने की मजबूरी है। उत्तर प्रदेश के उप मुख्यमंत्री बृजेश पाठक ने दुर्घटनाओं में घायल लोगों की जान बचाने के लिए वर्ष 2007 में ट्रामा सेंटर के लिए प्रयास शुरू किए थे। तब वह जिले के सांसद थे।

उनकी तमाम कोशिशों के बाद 2016 में 120.83 लाख रुपये की लागत ट्रामा सेंटर बनकर तैयार हो पाया लेकिन डॉक्टरों की तैनाती न होने से इलाज की सुविधा नहीं मिल पाई। अब बृजेश पाठक डिप्टी सीएम बन गए हैं तो लोगों को ट्रामा सेंटर के संचालन की उम्मीद जगी है। डिप्टी सीएम ने बताया कि प्रदेश के लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। कोरोना महामारी में भी प्रदेश सरकार ने सबसे बेहतर काम करके दिखाया। अस्पताल और मेडिकल कॉलेज बनाए गए हैं। (संवाद)

ट्रामा सेंटर में ये सुविधाएं जरूरी

पर्याप्त दवाएं, सर्जरी, न्यूरो सर्जरी, आर्थोपेडिक्स, रेडियोलॉजिस्ट, एनस्थीसिया, विशेषज्ञ डॉक्टर, वर्किंग ऑपरेशन थिएटर, क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट, ट्रांसपोर्टेबल वेंटिलेटर, सीटी स्कैन, ब्लड स्टोरेज यूनिट, पोर्टेबल डिजिटल एक्सरे मशीन, सेंट्रल ऑक्सीजन लाइन, पैथोलॉजी, ईको कार्डियोग्राफी, ईसीजी और स्पाइन बोर्ड जैसी सुविधाएं होना जरूरी हैं।

वेंटिलेटर छह, चालू कोई नहीं

ट्रामा सेंटर में तीन साल पहले छह वेंटिलेटर आए थे। उन्हें आईसीयू में लगाया जाना था, ताकि गंभीर मरीजों का इलाज किया जा सके लेकिन डॉक्टरों का प्रशिक्षण न होने और सेंट्रलाइज्ड ऑक्सीजन सप्लाई शुरू न होने से वह उपयोग में नहीं आए।

वर्जन

सीएमएस डॉ. पवन कुमार ने बताया कि ट्रामा सेंटर क्रियाशील है। कुछ संसाधनों और स्टाफ की कमी के कारण गंभीर मरीजों को भर्ती नहीं किया जा रहा है। महानिदेशक चिकित्सा एवं स्वास्थ्य को पत्र भेजा गया है, जल्द ही उपलब्ध होने की उम्मीद है।

स्टाफ स्वीकृत पद तैनात

सर्जन 2 0

निश्चेतक 2 1

अस्थि विशेषज्ञ 2 2

ईएमओ 3 0

डिप्टी सीएम बृजेश पाठक ने पूर्व में किए ये प्रयास

-2007 में सांसद रहते हुए बृजेश पाठक ने केंद्र सरकार को जिले की स्थिति बताते हुए यहां ट्रामा सेंटर व जिला अस्पताल को अपग्रेड करने की मांग की। एनआरएचएम के तहत कुछ काम हुए।

-2008 में उन्होंने केंद्र सरकार और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय को पत्र लिखकर जिले में ट्रामा सेंटर स्थापित करने की मांग की।

– नौ जनवरी 2013 को तत्कालीन राज्यसभा सदस्य व केंद्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी समिति के चेयरमैन रहते हुए बृजेश पाठक ने तत्कालीन स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री गुलाम नबी आजाद को दुर्घटना बाहुल्य उन्नाव की स्थिति से अवगत करा ट्रामा सेंटर और मेडिकल कालेज की स्थापना की मांग की।

-2014 में उनकी कोशिश सफल हुई। 120.83 लाख की लागत से ट्रामा सेंटर को मंजूरी मिली और निर्माण की शुरुआत हुई।

-2016 में ट्रामा सेंटर का भवन तैयार हो गया लेकिन उपकरण और स्टाफ के अभाव में ताला बंद रहा।

– 2018 में हड्डी के डॉक्टरों को तैनात कर ट्रामा सेंटर के संचालन की औपचारिकता निभाई गई।

– 2020 में कोरोना का प्रकोप बढ़ा तो ट्रामा सेंटर को आईसोलेशन वार्ड के रूप में प्रयोग किया गया।

वर्ष हादसे मृतक घायल

2020 671 408 444

2021 844 515 568

2022 169 108 109 (15 मार्च तक)

ट्रामासेंटर में अनुपयोगी रखे चिकित्सा उपकरण। संवाद

ट्रामासेंटर में अनुपयोगी रखे चिकित्सा उपकरण। संवाद– फोटो : UNNAO

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