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उत्तर प्रदेश भूमि अभिलेख नियमावली भूमि अभिलेखों की तैयारी और रख-रखाव के लिए नियम और प्रक्रियाएं प्रदान करती है। दूसरी ओर यूपी राजस्व संहिता, 2006 को उत्तर प्रदेश राज्य में भूमि काश्तकार और भू-राजस्व से संबंधित कानून को समेकित और संशोधित करने, उससे जुड़े और उसके आनुषंगिक मामलों के लिए प्रख्यापित किया गया है।
कोर्ट के सामने याची ने सामाजिक कार्यकर्ता और किसान के रूप में रुख किया था। उसके द्वारा यह तर्क दिया गया कि जनहित याचिका जनता के सामान्य हित के लिए यूपी भूमि अभिलेख नियमावली एक पुराना नियमावली है और यूपी राजस्व संहिता, 2006 के अनुसार नहीं है।
दूसरी ओर, राज्य सरकार ने इस आधार पर जनहित याचिका का विरोध किया। उसने कहा कि याचिका में भूमि रिकॉर्ड मैनुअल को चुनौती नहीं दी जा सकती। कहा गया कि अधिनियम के प्रावधानों को केवल दो आधारों पर असंवैधानिक घोषित कर रद्द किया जा सकता है। पहला विधायी क्षमता की कमी के कारण और दूसरा किसी अन्य संवैधानिक प्रावधान के किसी भी मौलिक अधिकार का उल्लंघन होने के कारण।
कोर्ट ने कहा कि उसे एक भी शब्द नहीं मिला जो यह बता सके कि याचिकाकर्ता एक ऐसा व्यक्ति है जो सीधे तौर पर पीड़ित है। इसके अलावा, कोर्ट ने यह भी नोट किया कि याचिकाकर्ता यह साबित करने में सक्षम नहीं है कि मैनुअल को विधायी क्षमता के बिना लाया गया है।
नियमावली के अधिकार के संबंध में कोर्ट ने विशेष रूप से देखा कि यूपी भूमि अभिलेख नियमावली केवल भूमि अभिलेखों को बनाए रखने के तरीके और प्रक्रिया प्रदान करती है। कोर्ट ने आगे कहा कि यूपी राजस्व संहिता, 2006 की धारा 234(3) में प्रावधान है कि राजस्व संहिता, 2006 के प्रारंभ होने की तिथि पर लागू भूमि अभिलेख नियमावली उस सीमा तक लागू रहेगी जब तक कि वे राजस्व संहिता, 2006 के प्रावधानों के साथ असंगत नहीं हैं।
कोर्ट ने कहा कि हमारी नजर में यह उपयुक्त मामला नहीं है, जहां जनहित याचिका क्षेत्राधिकार को लागू किया जाना चाहिए। न्यायालय ने 10 हजार रुपये का जुर्माना लगाकर याचिका को खारिज कर दिया। याची को जुर्माने की राशि आदेश की तिथि से 45 दिनों के भीतर हाईकोर्ट विधिक सेवा समिति, इलाहाबाद के पास जमा करना होगा।
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