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हिंदू-मुस्लिम विवाद, कश्मीर में आतंकवादियों द्वारा कश्मीरी पंडितों और दूसरे लोगों की निशानदेही हत्याओं और पैगंबर मुहम्मद साहब को लेकर दो भाजपा प्रवक्ताओं द्वारा की गई विवादास्पद टिप्पणी और उसके बाद अरब देशों की तीखी प्रतिक्रिया और उसके दबाव में बयान देने वालों के खिलाफ कार्रवाई के बावजूद देश के कई हिस्सों में हिंसा के बाद देश का माहौल सेना में नई भर्ती नीति अग्निपथ के विरोध की आवाजों से गर्म है। सरकार और सेना के अधिकारी विरोध की इस आंच पर अग्निपथ योजना के तमाम फायदों के छींटे डालकर उसे ठंडा करने की कोशिश की है।
युवा राजनीति का एक नया ब्रांड बने वरुण
इन सारे शोर शराबे के बीच नेहरू गांधी परिवार के तीनों सियासी वारिस यानी तीनों गांधीवीर राहुल गांधी, प्रियंका गांधी और वरुण गांधी भी अपनी राजनीति के अग्निपथ पर चल पड़े हैं। राहुल और प्रियंका जहां पिछली कई चुनावी विफलताओं की लहरों के थपेड़ों से डगमगाती कांग्रेस की जर्जर नाव को संभालने में जुटे हैं, वहीं वरुण भाजपा के भारी भरकम जहाज पर सवार तो हैं लेकिन सियासी तूफान की तमाम चुनौतियों का सामना खुद करने के लिए उस जहाज से अगर कूदना भी पड़े तो उसकी तैयारी उन्होंने शुरू कर दी है। जहां राहुल और प्रियंका के पीछे पूरी कांग्रेस पार्टी की ताकत है, वहीं वरुण खुद अपनी ताकत बन रहे हैं और युवा राजनीति के एक नए ध्रुव के रूप में उभर रहे हैं। राहुल प्रियंका की बात को देश में दूर-दूर तक पहुंचाने के लिए कांग्रेस का पूरा सूचना और प्रचार तंत्र जुटा है। वहीं वरुण अपने अकेले दम पर एक तरफ अपनी ही पार्टी की सरकार से लगातार सवाल कर रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया के जरिए अपनी बात भी सफलतापूर्वक लोगों तक पहुंचा रहे हैं। पिछले करीब डेढ़ साल से किसान आंदोलन से लेकर युवाओं के असंतोष तक को स्वर देने में वरुण ने अपनी अलग छाप छोड़ी है। वह युवा राजनीति का एक नया ब्रांड बनते जा रहे हैं।
पिछले कुछ सालों में बेरोजगारी ने युवाओं के भीतर जो तूफान पैदा किया है, केंद्र सरकार की सेना भर्ती की नई अग्निपथ नीति ने उस ज्वाला को और भड़का दिया। अब नेहरू-गांधी परिवार के ये तीनों गांधीवीर इस युवा तूफान को अपने साथ जोड़ने में जुट गए हैं। जहां कांग्रेस ने बेहद सियासी होशियारी से राहुल गांधी से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की होने वाली पूछताछ को लेकर जो सत्याग्रह शुरू किया था, उसे अग्निपथ के खिलाफ आंदोलनरत अग्निवीरों के गुस्से से जोड़ने की कोशिश की है। वहीं वरुण ने न सिर्फ लगातार बेरोजगारी को लेकर अपनी ही पार्टी की केंद्र सरकार को सवालों के घेरे में लिया, बल्कि सोशल मीडिया पर अपनी आक्रामकता से बेरोजगारी को एक बड़ा मुद्दा बना दिया। जिसके दबाव में प्रधानमंत्री मोदी ने अगले एक साल में दस लाख सरकारी नौकरियां देने की घोषणा की। इसके लिए प्रधानमंत्री को धन्यवाद देने के बाद वरुण यहीं नहीं रुके। उन्होंने अग्निवीरों के मुद्दे पर अपना हस्तक्षेप लगातार जारी रखा।
पहले उन्होंने आंदोलनकारी युवाओं से शांति और अहिंसा का रास्ता अपनाने की अपील की, तो दूसरी तरफ पीलीभीत के भाजपा सांसद ने अपने ही दल के महासचिव कैलाश विजयवर्गीय को उनके इस बयान पर आड़े हाथों लिया, जिसमें विजयवर्गीय यह कहते हुए सुने गए कि अगर भाजपा कार्यालय में सुरक्षा गार्ड रखने की जरूरत हुई तो वह सेना से आए हुए अग्निवीरों को प्राथमिकता देंगे। हालांकि इन मुद्दों पर राहुल और प्रियंका ने भी सोशल मीडिया के जरिए हस्तक्षेप किया लेकिन वरुण उनसे पहले बोले इसलिए आगे निकल गए। दरअसल युवा की नब्ज पर हाथ रखने का रास्ता वरुण गांधी ने पहले ही पकड़ लिया था। आरोपों और मांग की परंपरागत विपक्षी राजनीति से हटकर भाजपा सांसद वरुण गांधी ने एक नई राह चुनी। उनकी यह राह अपनी पार्टी भाजपा और अपनी खानदानी पार्टी कांग्रेस दोनों से अलग हटकर रही। वरुण का यह नया रास्ता खेतों-खलिहानों से होता हुआ नौजवानों के अरमानों तक जाता है और जिस तरह कभी उनके पिता संजय गांधी को कांग्रेस ने युवा ह्रदय सम्राट के रूप में पेश किया था, वरुण कुछ उसी तरह अब अपनी मेहनत से यह मुकाम हासिल करना चाहते हैं। अपने इस नए रास्ते पर चलते हुए वरुण न सिर्फ एक नजीर पेश कर रहे हैं बल्कि वह राजनीति में एक नई लकीर खींच कर अपनी भावी सियासत की जमीन भी तैयार कर रहे हैं।
राजनीति में अलग पहचान बनाने की कोशिश
दरअसल वरुण गांधी बेरोजगार युवाओं की आवाज बनकर आने वाली राजनीति में अपनी एक अलग पहचान बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर वरुण की यह मुहिम कामयाब होती है तो नकारात्मक राजनीतिक माहौल में वह खुद को एक सकारात्मक राजनीतिक विकल्प के रूप में जनता के सामने पेश कर सकते हैं। इसके लिए उनकी पूरी कार्ययोजना है। अपने बड़े भाई राहुल और बहन प्रियंका से वरुण की पहल इसलिए भी अलग है कि जहां राहुल-प्रियंका मुख्य विपक्षी दल के नेता होने के नाते उनका हर बयान सरकार के विरोध में आना स्वाभाविक है, वहीं वरुण सत्ता पक्ष के सांसद होने के बावजूद अपनी ही पार्टी की सरकार से सवाल पूछने का साहस जुटा रहे हैं और इसके लिए वह कोई भी कीमत चुकाने के लिए भी तैयार हैं। दूसरे जहां युवाओं के मुद्दों पर राहुल और प्रियंका सिर्फ विरोध तक सीमित हैं वहीं वरुण बेरोजगार युवाओं को उनका लक्ष्य प्राप्त कराने में सीधे मदद देकर एक नई मिसाल भी पेश कर रहे हैं। इसलिए उनकी पहल में एक सकारात्मकता है।
किसान आंदोलन के दौरान अपनी पार्टी और सरकार की लाइन से अलग हटकर वरुण गांधी किसानों के साथ खड़े थे। वैसे भी ग्रामीण भारत की आर्थिक बदहाली पर उन्होंने कई साल पहले एक बेहद विस्तृत शोधपरक किताब रूरल मैनिफेस्टो (ग्रामीण घोषणा पत्र) लिखी है जिससे उनकी किसानों और गावों के विकास के लिए प्रतिबद्धता स्पष्ट है। लखीमपुर खीरी कांड के बाद तो वरुण अपने संसदीय क्षेत्र पीलीभीत में जाकर खुलकर किसानों का समर्थन कर आए थे।
पिछले कुछ समय से वरुण ने आर्थिक तौर पर कमजोर पृष्ठभूमि के छात्रों और बेरोजगार युवाओं के हक की आवाज उठानी शुरू की। एक तरफ तो वह लगातार ट्वीट कर बेरोजगार युवाओं के मुद्दों को सार्वजनिक विमर्श में लाते रहे हैं और उनके लिए बेहतर नौकरियों के अवसर खोलने की मांग करते रहे हैं। वहीं दूसरी तरफ वरुण उन जरूरतमंद युवाओं की आर्थिक मदद भी कर रहे हैं, जो किसी कारणवश प्रतियोगी परीक्षा देने के लिए जाने में असमर्थ हैं। अग्निपथ विरोधी आंदोलन से पहले तक वरुण गांधी लगातार ट्विटर और फेसबुक के जरिए उन तमाम बेरोजगार युवाओं की मदद करते दिखाई दिए जो आर्थिक रूप इतने कमजोर हैं कि उनमें कई के पास तो सरकारी नौकरियों के आवेदन फार्म के साथ लिया जाने वाला शुल्क भरने के पैसे नहीं हैं। कई ऐसे हैं जो आवेदन तो कर सके लेकिन उनके परीक्षा केंद्र इतनी दूर हैं कि वहां तक जाने का रेल किराया भी जुटाना उनके लिए मुश्किल है।
अभ्यर्थियों के रेलवे टिकट और भोजन की करवा रहे व्यवस्था
वरुण गांधी ने कुछ वैसी ही पहल की है, जैसी कोरोना काल में फिल्म अभिनेता सोनू सूद ने की थी। लेकिन सोनू की पहल से वरुण की मुहिम इसलिए अलग और अनोखी है कि राजनीति में इस तरह की सतत पहल पहली बार किसी सांसद ने की है और इसके पीछे उद्देश्य सिर्फ मदद नहीं बल्कि युवाओं का सशक्तीकरण भी है। उनके भीतर आत्मविश्वास पैदा करना भी है। वरुण गांधी की इस पहल का राजनीतिक संदेश भी है जो सत्ता और विपक्ष के सभी नेताओं सांसदों और मंत्रियों को आईना भी दिखाता है।
वरुण ने ऐसे तमाम अभ्यर्थियों के रेलवे टिकट के इंतजाम के साथ रहने और भोजन की व्यवस्था भी करनी शुरू कर दी। वरुण ने अपने ट्विटर हैंडल से एक युवक की वीडियो पोस्ट की, जिसमें वह युवा उन्हें इस बात के लिए धन्यवाद दे रहा है कि उन्होंने आर्थिक मदद देकर उसकी मदद की है। यह युवक अतुल अग्निहोत्री पीलीभीत लोकसभा के ही एक गांव का रहने वाला है। उसकी रेलवे की परीक्षा 12 जून को होने वाली थी। अतुल के पास परीक्षा देने के लिए नोएडा जाने के लिए पैसे नहीं थे। उसने आसपास के लोगों से मदद मांगी, लेकिन उसे मदद नहीं मिली। इसके बाद उसने सांसद वरुण गांधी से मदद मांगी। इसके बाद वरुण गांधी ने न केवल उसके आने-जाने की व्यवस्था कर दी, बल्कि उसके ठहरने और भोजन की व्यवस्था भी कर दी।
वरुण से मदद पा चुके एक अन्य युवा उज्ज्वल बताते हैं कि उन्हें एनटीपीसी की परीक्षा देने के लिए कोलकाता जाना था, लेकिन गर्मी का मौसम होने के कारण टिकटों की मारामारी हो रही है। उनके टिकट का प्रबंध नहीं हो पा रहा था। उन्होंने ट्वीट कर वरुण गांधी से मदद मांगी। जानकारी के मुताबिक वरुण गांधी ने स्वयं अपने स्टाफ को निर्देश देकर उज्ज्वल का टिकट फाइनल कराया। अब उज्ज्वल उन्हें बार-बार धन्यवाद दे रहे हैं। गोरखपुर के एक छात्र के मुताबिक उनकी एनटीपीसी की परीक्षा घर से बहुत दूर पूणे में होनी थी, लेकिन उनके पास न तो पैसे की व्यवस्था हो पा रही थी और न ही टिकट मिलने की कोई संभावना दिख रही थी। इस बीच अपने साथियों की मदद से उन्हें वरुण गांधी के बारे में सुना जो लगातार छात्रों की मदद कर रहे हैं। इस छात्र ने भी वरुण गांधी से मदद मांगी और उन्हें टिकट उपलब्ध कराया गया। इसी प्रकार छत्तीसगढ़ के रायपुर के एक युवक पलाश मिश्रा ने उनसे हैदराबाद परीक्षा देने के लिए आने-जाने में मदद मांगी और उन्होंने उसकी मदद की। मुरादाबाद के छात्र आयुष मिश्रा ने जब अपनी व्यथा वरुण गांधी को सुनाई तो उन्होंने न केवल उसके श्रीनगर जाने की व्यवस्था की, बल्कि उसके रहने और खाने-पीने की व्यवस्था भी कर दी।
सरकार की रोजगार नीति की भी खोल रहे पोल
वरुण गांधी की मुहिम केवल छात्रों की मदद तक ही सीमित नहीं है, बल्कि वह सरकार की रोजगार नीति की पोल भी खोल रहे हैं। उन्होंने ट्वीट के जरिए बताया कि रेलवे ने तृतीय और चतुर्थ श्रेणी के 72 हजार पद समाप्त कर दिए हैं। इनके अलावा एनसीआर क्षेत्र के 10 हजार अन्य पदों को भी समाप्त किए जाने की तैयारी की जा चुकी है। उन्होंने कहा है कि इससे देश के करोड़ों बेरोजगार युवाओं के सपने टूट रहे हैं। उन्होंने सरकार की नीति पर सवाल उठाते हुए पूछा है कि यह वित्तीय प्रबंधन है या रेलवे को निजी हाथों में सौंपने की तैयारी की जा रही है। उन्होंने कहा है कि कोरोना काल में दो साल नौकरियों में नई भर्ती पूरी तरह से ठप रही। इसके कारण लाखों छात्रों की उम्र पूरी हो गई। इससे उनकी रोजगार की उम्मीदों को करारा झटका लगा है। उन्होंने कहा है कि सरकार को इन मजबूर छात्रों की मदद के लिए अतिरिक्त कदम उठाना चाहिए और उम्र सीमा में छूट देते हुए इन्हें आवेदन करने का अवसर प्रदान करना चाहिए।
सोशल मीडिया में एक वीडियो जारी करके वरुण कहते हैं कि दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक तरफ देश के करोड़ों युवा नौकरियों के लिए भटक रहे हैं, जबकि देश के विभिन्न सरकारी विभागों में करीब एक करोड़ पद रिक्त हैं। इन पदों पर नई भर्ती नहीं की जा रही है। उन्होंने कहा कि इन पदों पर भर्ती कर युवाओं को रोजगार देने की व्यवस्था की जानी चाहिए।
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