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उन्नाव। हर साल स्कूली वाहनों का फिटनेस टेस्ट होना चाहिए लेकिन प्रबंधन इसमें लापरवाही बरतता है। किसी भी वैन या बस में न तो सीसीटीवी कैमरे हैं और न ही जीपीआरएस। स्कूल प्रबंधन अपने फायदे के चक्कर में हर तरह के वाहन लगाए है। बीच रास्ते बच्चों पर कौन सी मुसीबत आ जाएगी, इससे व मानकों से उसे सरोकार नहीं है।
जिलेे में कागजों पर 759 स्कूली वैन संभागीय परिवहन विभाग में पंजीकृत हैं लेकिन सड़क पर इससे दोगुने वाहन बच्चों को लेकर चलते हैं। जो वाहन एआरटीओ के दस्तावेजों में दर्ज नहीं हैं, उनकी स्थिति अधिक खराब है।
इसका हो रहा उल्लंघन
– वाहन में जीपीआरएस और सीसीटीवी
– स्कूली बस की सभी खिड़की लोहे की ग्रिल से ढंकी हो
– स्पीड गवर्निंग सिस्टम
– अग्निशमन यंत्र
– फर्स्टएड बॉक्स
– आपातकालीन पुलिस, चिकित्सालय नंबर
– वाहन की दोनों साइड पर स्कूल का नाम
– चालक और परिचालक का नाम
– बस में चार गेट
– हर साल का फिटनेस प्रमाण
– वाहन चालक की आंख की टेस्टिंग
– सभी वाहनों में इमरजेंसी अलार्म हो
75 हजार पर किमी पर वैन होती कंडम
एआरटीओ की गाइड लाइन के मुताबिक 75 हजार किलोमीटर चलने पर वैन, कार, मैजिक को कंडम मान लिया जाता है। वहीं 1.75 लाख किलोमीटर की दूरी पर बस को कंडम माना जाता है। इन दौरान यदि वाहनों का रखरखाव और फिटनेस टेस्ट कराया जा रहा है तो फिर उन्हें चलने दिया जाता है।
सवाल: एआरटीओ स्कूली वाहनों की चेकिंग में लापरवाही क्यो बरतता है।
जवाब: नहीं ऐसा बिल्कुल नहीं है। वह टीम के साथ लगातार अन्य वाहनों के साथ स्कूली वाहनों को भी चेक करते हैं। बुधवार को तकिया, दबौली और फतेहपुर चौरासी में स्कूली वाहनों को चेक किया। पूरी कोशिश है कि स्कूली वाहन शासन की गाइड लाइन के अनुरूप चलें।
सवाल: स्कूली वाहनों में अग्निशमन यंत्र नहीं लगे होते हैं। आग लगने की घटना भी हो सकती है।
जवाब: इसे लेकर स्कूल प्रबंधतंत्र को नोटिस दी गई है। तीन माह पहले 200 से अधिक स्कूलों को एआरटीओ ने नोटिस जारी की थी। जिस पर स्कूल प्रबंधकों ने फिटनेस प्रमाण पत्र बनवाया था।
सवाल: यातायात माह में ही वाहन चेकिंग पर ध्यान क्यों दिया जाता है।
जवाब: मेरे लिए कोई दिन निश्चित नहीं है। चेकिंग जिले के किसी भी रूट पर की जाती है। जल्द ही बड़े स्तर पर चेकिंग कराई जाएगी। अवैध स्कूली वाहनों की धरपकड़ होगी।
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