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इस क्षेत्र में ना कोई नहर है, ना ताल-तलैया, ना ही कोई नदी। करीब 100 साल पहले ब्रिटिश काल में जब आगरा के लिए नहर बनाई गईं, तभी यहां सिंचाई के लिए 44 से अधिक बांध-बंधियों का निर्माण हुआ। ये बांध-बंधियां अब जगनेर की धरोहर बन गई हैं। 44 में से 41 बांध-बंधियां संरक्षित हैं। शनिवार तक इनमें से 34 पानी से लबालब हो गईं। 1 से 10 फीट तक पानी भरा है। इन सभी बांध-बंधियों में करीब 4 करोड़ क्यूबिक फीट पानी इकठ्ठा होता है।
सिंचाई विभाग के वरिष्ठ जल लेखाकार प्रकाश कौशिक ने बताया कि इन बांध-बंधियों से एक तरफ सिंचाई होती है, दूसरी तरफ किवाड़, उंटगन, खारी, पार्वती व अन्य बरसाती नदियों में भी पानी इनसे पहुंचता है। बारिश का पानी पहाड़ों से होते हुए बांध-बंधियों में एकत्र होता है और नदी व नालों के सहारे जगनेर के अलावा आसपास के इलाकों में पहुंचता है। सिंचाई विभाग के अधिशासी अभियंता शरद सौरभ गिरी ने बताया कि नियमित रूप से बांध-बंधियों का संरक्षण किया जा रहा है।
राजस्थान से आता है पानी
सिविल सोसायटी के सदस्य राजीव सक्सेना ने बताया कि प्रदेश की सीमा पर बसे जगनेर में राजस्थान से बारिश का पानी आता है। पांच नदियों के लिए बना पांचना बांध, काली सिल व पचावर ड्रेन से छोड़ा जाने वाला पानी भी जगनेर की बांध-बंधियों में भरता है। ये ब्रिटिश स्ट्रक्चर है, जो 100 साल बाद भी अपना महत्व रखता है।
प्रमुख बांध-बंधियों का जलस्तर
- कांसपुरा बंध (खार नाला): 24 फीट
- भारा बंध (बिसुंधरी नाला): 22 फीट
- थनसेरा बंध: 16 फीट
- नगला दूल्हे खां बंध: 13 फीट
- घुसियाना बंध: 12 फीट
- निमैना बंध: 11 फीट
- बमनई बंध (लुहारी नाला): 10 फीट
- घसकटा बंध: 9 फीट
ये बंध पड़े हैं खाली
- पिपरैठा बंध, सिंगरावली बंध, सरेंधी बंध, विधौली बंध आदि।
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