15 साल से अधिक समय से लखनऊ जू के सबसे बड़े स्टार रहे चिंपैंजी जेसन ने मंगलवार देर रात सबको अलविदा कह दिया। बढ़ती उम्र की बीमारियों से जूझ रहे जेसन ने मंगलवार सुबह से खाना-पीना बंद कर दिया था। लखनऊ जू के डॉक्टरों और बरेली के आईवीआरआई के विशेषज्ञों की निगरानी में चल रहे इलाज के बीच उसने मंगलवार देर रात बाड़े में अंतिम सांस ली। बुधवार को गमगीन जू स्टाफ ने सबसे दुलारे वन्यजीव को श्रद्धांजलि देकर विदाई दी। जेसन का जन्म 90 के शुरुआती दशक में स्वीडन के जू में हुआ था। वहां से वह साथी निकिता के साथ हवाई मार्ग से मैसूर जू लाया गया। इसके बाद साल 2007 में दोनों एक एक्सचेंज में लखनऊ जू पहुंचे। आते ही जेसन अपनी चुलबुली अदाओं से दर्शकों का चहेता बन गया। यह देख जू प्रशासन से उसे मुख्य द्वार के शुरुआती बाड़े में शिफ्ट किया।
जू निदेशक वीके मिश्र ने बताया कि बुधवार सुबह हुए पोस्टमार्टम में जेसन की मौत का कारण अधिक उम्र और अंगों में असामान्य क्षति पाया गया। वहीं, दो दशक से अधिक समय से जेसन के साथ रह रही निकिता उसके जाने के बाद से गुमसुम है।
जू में नहीं जेसन की कोई निशानी
प्रदेश के प्राणि उद्यानों में अब एकमात्र चिंपेंजी मादा निकिता ही रह गई है। जेसन और निकिता लंबे वक्त तक साथ रहे, लेकिन कुनबा नहीं बढ़ा सके। वहीं, जेसन की कोई निशानी भी लखनऊ जू में नहीं है। सात-आठ साल पहले निकिता को कानपुर जू के नर चिंपैंजी छज्जू के पास भेजकर साथ रखने की बात चली थी, लेकिन फिर बात आगे नहीं बढ़ी।
गिलास से पीता था जूस
जेसन यूं ही जू का स्टार नहीं था। सर्दियों में वह कमरे में हीटर तापता तो गर्मियों में उसके लिए कूलर की ठंडी-ठंडी हवा का इंतजाम किया जाता। उसकी खुराक में हर सीजन में आधा दर्जन से अधिक की संख्या में भारी मात्रा में मौसमी फल शुमार थे। वह गर्मी में मोसंबी का जूस स्टील के बड़े गिलास में पीता था तो सर्दियों में भुने चने, मूंगफली के अलावा अंडा भी चाव से खाता था। जू प्रशासन ने जेसन की लोकप्रियता को देखते हुए कुछ बरस पहले उसके लिए स्पेशल फेसबुक पेज तक बनवाया था।
बाड़े से निकलकर मचाई थी धमाचौकड़ी
करीब आठ-नौ साल पहले जेसन जू के साप्ताहिक अवकाश के दिन सोमवार को पेड़ की टूटी डाली के सहारे बाहर निकाल आया था। उसने पूरे जू परिसर में खूब धमाचौकड़ी मचाई थी। तब उपनिदेशक जू डॉ. उत्कर्ष शुक्ला की टीम ने घंटों की मशक्कत के बाद उसे ट्रैंकुलाइज कर काबू किया था।