हाईकोर्ट : सत्र न्यायालय की नजर में अपराध संज्ञेय तो मजिस्ट्रेट नहीं कर सकता आरोप मुक्त

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब सत्र न्यायालय द्वारा अपराध संज्ञेय माना गया है तो मजिस्ट्रेट मामले की जांच नहीं कर सकता है और आरोपी को आरोपमुक्त नहीं कर सकता है। कोर्ट ने मामले में आईपीसी की धारा 306 के तहत दर्ज आरोपी द्वारा दाखिल डिस्चार्ज आवेदन को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की पीठ ने सुखबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 209 के तहत मामले को सत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, लेकिन मजिस्ट्रेट ने आरोपमुक्त करने की अर्जी पर सुनवाई की जो कि उसके कार्यक्षेत्र में नहीं था। मामले में आरोपी बरेली के सुखबीर पर सितंबर 2017 में एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप में आईपीसी की धारा 306 के तहत भुजीपुरा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सत्र न्यायालय पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान कर उचित आदेश पारित करे।

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जब सत्र न्यायालय द्वारा अपराध संज्ञेय माना गया है तो मजिस्ट्रेट मामले की जांच नहीं कर सकता है और आरोपी को आरोपमुक्त नहीं कर सकता है। कोर्ट ने मामले में आईपीसी की धारा 306 के तहत दर्ज आरोपी द्वारा दाखिल डिस्चार्ज आवेदन को खारिज करने के मजिस्ट्रेट के आदेश को रद्द कर दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति बृज राज सिंह की पीठ ने सुखबीर सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है।

कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 209 के तहत मामले को सत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया जाना चाहिए था, लेकिन मजिस्ट्रेट ने आरोपमुक्त करने की अर्जी पर सुनवाई की जो कि उसके कार्यक्षेत्र में नहीं था। मामले में आरोपी बरेली के सुखबीर पर सितंबर 2017 में एक छात्रा को आत्महत्या के लिए उकसाने का आरोप में आईपीसी की धारा 306 के तहत भुजीपुरा थाने में प्राथमिकी दर्ज की गई थी। कोर्ट ने निर्देश दिया कि सत्र न्यायालय पक्षकारों को सुनवाई का अवसर प्रदान कर उचित आदेश पारित करे।

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