[ad_1]
आगरा के काला महल में दो घंटे तक बंदरों के आक्रामक होने और हमले की घटना के बाद शहर में बंदरों से लोग डरे हुए हैं। इनके हमले और आतंक से बचने के लिए वन्य जीव विशेषज्ञों ने सुझाव दिए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक लोगों को मानसिकता बदलनी होगी। कचरे में खाने-पीने की चीजें फेंकना बंद करना होगा।
पूर्व डीएफओ और नेशनल चंबल सेंक्चुअरी प्रोजेक्ट के प्रभारी रहे आनंद कुमार के मुताबिक कचरे में खाना फेंकना बंद करना पड़ेगा। जब तक खुले में कूड़ा पड़ा रहेगा, बंदर खाने की तलाश में टोलियों में आते रहेंगे। खाना न मिलने पर चिड़चिड़े होकर हमला करते रहेंगे। बंदरों के प्रति धार्मिक नजरिया भी बदलने की जरूरत है। छलेसर के जंगल में हाईवे के किनारे लोग केले लेकर पहुंचते हैं, इसलिए छलेसर से कुबेरपुर तक अब हजारों बंदर सुबह शाम हाईवे की रेलिंग पर बैठे मिलते हैं।
तय करें बंदरों को खाना देने की जगह
वाइल्ड लाइफ एसओएस के आगरा प्रभारी बैजूराज के मुताबिक बंदरों को खाना देने के लिए जगह तय कर दी जाए और केवल वहीं पर उन्हें खाने का सामान मिले तो वह और कहीं नहीं जाएंगे। वह आसानी से भोजन पाने के आदी हो चुके हैं। आसानी से भोजन एक जगह मिलने पर तलाश में भटकेंगे नहीं।
30 हजार बंदरों के खौफ से पिंजरों में बदले घर
पुराने शहर में महावीर नाला, काला महल, मनकामेश्वर मंदिर, पीपलमंडी, बेलनगंज की पुरानी हवेलियों में बंदरों का आतंक ज्यादा है। जीवनीमंडी, बेलनगंज, रावतपाड़ा, कचहरीघाट, फव्वारा, भैंरो बाजार, केदार नगर, जयपुर हाउस, बीडी जैन गर्ल्स डिग्री कॉलेज, ताजगंज, दक्षिणी गेट के हिस्से में बंदरों के खौफ के कारण घर पिंजरों में बदल गए हैं। लोगों ने लोहे की जालियों से पूरा घर ढंक दिया है ताकि बंदर प्रवेश न कर पाएं।
अल्फा बंदरों को पकड़ने से दूर होगी समस्या
वन विभाग को वाइल्ड लाइफ एसओएस ने दो हजार अल्फा बंदरों को पकड़ने की योजना सौंपी है। इनके सेंटर के लिए 25 एकड़ जमीन मांगी है, जहां बंदरों को रखने, भोजन देने की व्यवस्था की जाएगी। गोवर्धन में मयूर संरक्षण केंद्र के पीछे और आगरा में कीठम में जमीन प्रस्तावित है। पूर्व डीएफओ आनंद कुमार के मुताबिक बंदर टोलियों में चलते हैं। टोली का नेतृत्व करने वाला बंदर (अल्फा) सबसे आक्रामक होता है। उसकी पहचान कर उसे पकड़कर रेस्क्यू सेंटर में छोड़ा जाएगा।
विस्तार
आगरा के काला महल में दो घंटे तक बंदरों के आक्रामक होने और हमले की घटना के बाद शहर में बंदरों से लोग डरे हुए हैं। इनके हमले और आतंक से बचने के लिए वन्य जीव विशेषज्ञों ने सुझाव दिए हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक लोगों को मानसिकता बदलनी होगी। कचरे में खाने-पीने की चीजें फेंकना बंद करना होगा।
पूर्व डीएफओ और नेशनल चंबल सेंक्चुअरी प्रोजेक्ट के प्रभारी रहे आनंद कुमार के मुताबिक कचरे में खाना फेंकना बंद करना पड़ेगा। जब तक खुले में कूड़ा पड़ा रहेगा, बंदर खाने की तलाश में टोलियों में आते रहेंगे। खाना न मिलने पर चिड़चिड़े होकर हमला करते रहेंगे। बंदरों के प्रति धार्मिक नजरिया भी बदलने की जरूरत है। छलेसर के जंगल में हाईवे के किनारे लोग केले लेकर पहुंचते हैं, इसलिए छलेसर से कुबेरपुर तक अब हजारों बंदर सुबह शाम हाईवे की रेलिंग पर बैठे मिलते हैं।
तय करें बंदरों को खाना देने की जगह
वाइल्ड लाइफ एसओएस के आगरा प्रभारी बैजूराज के मुताबिक बंदरों को खाना देने के लिए जगह तय कर दी जाए और केवल वहीं पर उन्हें खाने का सामान मिले तो वह और कहीं नहीं जाएंगे। वह आसानी से भोजन पाने के आदी हो चुके हैं। आसानी से भोजन एक जगह मिलने पर तलाश में भटकेंगे नहीं।
[ad_2]
Source link