वाराणसी के ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी के नियमित दर्शन पूजन और अन्य विग्रहों के संरक्षण मामले में बुधवार को सुनवाई पूरी हो गई। हिंदू एवं मुस्लिम दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद जिला जज की अदालत ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया। कोर्ट इस मामले में अब 12 सितंबर को अपना फैसला सुनाएगा। सभी की नजरें अब कोर्ट के फैसले पर टिकी हैं। उस दिन इस बात का फैसला हो जाएगा कि मामले की आगे सुनवाई जारी रहेगी या नहीं।
ज्ञानवापी-श्रृंगार गौरी प्रकरण में जिला जज की अदालत में बुधवार को मुस्लिम पक्ष की दलीलों के बाद हिंदू पक्ष की ओर से अदालत में जोरदार ढंग से मंदिर होने के पक्ष को मजबूती से रखा गया। हिंदू पक्ष ने कहा कि औरंगजेब आततायी था और मंदिर तोड़कर उसने मस्जिद बनवाई, लेकिन मस्जिद के पीछे मंदिर की दीवार छोड़ दी। यह कलंक है और आज भी चुभता है। नीचे की स्लाइड्स में पढ़ें…
हिंदू पक्ष के अधिवक्ताओं ने कहा कि मस्जिद औरंगजेब की संपत्ति बताई गई है, वह उसकी पैतृक नहीं है। मस्जिद को जमीन समर्पित करने की बात भी फर्जी है और वहां मंदिर का ढांचा है। उसी पर मस्जिद का ढांचा खड़ा कर दिया गया। जिस पर जिला जज ने मामला सुनवाई योग्य है या नहीं पर आदेश के लिए 12 सितंबर की तिथि नियत की है।
मुस्लिम पक्ष के जवाब में चार महिला वादियों की तरफ से सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरिशंकर जैन और विष्णु जैन ने कहा कि 26 फरवरी 1944 का जो गजट दाखिल किया गया है, वह फर्जी है और कोर्ट को गुमराह करने वाला है। यह गजट आलमगीर मस्जिद के लिए है, जो धौरहरा बिंदु माधव मंदिर के लिए है। उससे ज्ञानवापी का कोई लेना देना नहीं है।
यह मस्जिद भी हिंदू मंदिर तोड़कर बादशाह आलमगीर ने बनवाई थी, इसे ज्ञानवापी मस्जिद कहना कोर्ट को गुमराह करने के समान है। इंतजामिया कमेटी ने जो जमीन की अदला-बदली की बात कही है वह संपत्ति देवता की है। ऐसे में मंदिर ट्रस्ट को और मसाजिद कमेटी को जमीन बदलने का कोई अधिकार नहीं है। यह जिला जज की अनुमति के बाद ही हो सकता है। वादिनी राखी सिंह की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता मान बहादुर सिंह ने कहा कि मुस्लिम पक्ष की दलीलें तथ्यपरक नहीं हैं।
इससे पूर्व ज्ञानवापी मामले में बुधवार को मुस्लिम पक्ष ने अपनी बहस पूरी की। उनकी ओर से अंजुमन के अधिवक्ता शमीम अहमद ने काशी विश्वनाथ मंदिर ट्रस्ट एक्ट और विशेष उपासना स्थल कानून का हवाला दिया। जवाब में हिंदू पक्ष ने अदालत में कहा कि अंजुमन इंतजामिया ने जो 1291 फसली वर्ष का खसरा दाखिल किया है, वह स्वामित्व का प्रमाणपत्र नहीं है। वाद में दिए गए तथ्यों पर विचारण करने का अधिकार सिविल कोर्ट को है और यह विशेष उपासना स्थल एक्ट से बाधित नहीं है।