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वृंदावन के ठाकुर श्रीबांकेबिहारी मंदिर में भक्तों द्वारा अर्पित किए जाने वाली भेंट के बंटवारे की व्यवस्था 83 साल पुरानी है। अंग्रेजी शासन काल में 1939 में तत्कालीन मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने मंदिर प्रबंध समिति के गठन और भेंट के गोस्वामीजन व मंदिर के कोष में जमा करने की व्यवस्था तय की थी। जिला प्रशासन अब इसे अव्यवहारिक मानते हुए श्राइन बोर्ड के पैटर्न पर मंदिर संचालन के लिए राष्ट्रीय स्तर के ट्रस्ट के गठन की सिफारिश कर रहा है।
बताया जाता है कि 1938 में श्रीबांकेबिहारी जी मंदिर की प्रबंधन व्यवस्था को लेकर मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट न्यायालय में एक वाद दायर हुआ था। इस पर 31 मार्च 1939 को मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में मंदिर का प्रबंधन तय किया। इसके मुताबिक सात सदस्यीय प्रबंधन समिति के गठन की प्रक्रिया तय की गई। इसमें चार सदस्य शयन भोग आरती और राजभोग आरती के (दो-दो सदस्य) तथा तीन सदस्य इन चार सदस्यों की संस्तुति पर गोस्वामी समाज के इतर मुंसिफ मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्ति होंगे।
इस तरह मंदिर प्रबंधन की यह सात सदस्यीय समिति गठित होने पर उसी में से एक सभापति चुना जाएगा। सभापति को सामान्य एवं विधि के सभी मामलों में मंदिर प्रबंधन का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दिया गया। मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में यह भी तय किया कि जब तक समिति गठित नहीं हो जाती तब तक समिति में निहित सभी अधिकार मुंसिफ मजिस्ट्रेट को होंगे। 2016 से श्रीबांकेबिहारी मंदिर में यह समिति गठित न होने पर व्यवस्थाएं मुंसिफ मजिस्ट्रेट संभाल रहे हैं।
पुरानी व्यवस्था को अब लागू करने में मुश्किल
मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने यह भी तय किया कि मंदिर में भगवान को भक्तों द्वारा जो भी नगदी भेंट की जाएगी, उसे मंदिर के भंडार में सुरक्षित रखा जाएगा। यदि भेंटकर्ता गोस्वामी का चेला है तब गहने, वस्त्र, बर्तन, नगदी गोस्वामी द्वारा प्राप्त की जा सकेगी। भोग के लिए प्राप्त राशि पर गोस्वामी का स्वामित्व होगा, अन्य वस्तुएं गोस्वामी द्वारा भगवान की सेवा में प्रयोग की जाएंगी। अगर भेंटकर्ता किसी गोस्वामी का चेला नहीं है तो ऐसी भेंट आधा प्रसाद के रूप में भेंटकर्ता को वापस की जाएगी। बाकी आधी शयनभोग और राजभोग के सेवायतों में बांट दी जाएगी।
जिला प्रशासन द्वारा शासन को भेजी जा रही रिपोर्ट में इन दोनों ही व्यवस्थाओं को अब अव्यवहारिक बता रहा है। प्रशासन का कहना है कि प्रबंधन समिति का गठन 2016 से नहीं हो सका है। भेंट के बंटवारे में यह तय करना संभव नहीं है कि भेंटकर्ता किसी गोस्वामी का चेला है या नहीं। यह दोनों ही व्यवस्थाएं 83 साल पुरानी हो चुकी हैं। ऐसे में श्राइन बोर्ड के पैटर्न पर राष्ट्रीय स्तरीय ट्रस्ट के गठन की आवश्यकता है। जिलाधिकारी नवनीत सिंह ने बताया कि प्रदेश सरकार ने इस पर रिपोर्ट मांगी है, शीघ्र ही भेजी जाएगी।
विस्तार
वृंदावन के ठाकुर श्रीबांकेबिहारी मंदिर में भक्तों द्वारा अर्पित किए जाने वाली भेंट के बंटवारे की व्यवस्था 83 साल पुरानी है। अंग्रेजी शासन काल में 1939 में तत्कालीन मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने मंदिर प्रबंध समिति के गठन और भेंट के गोस्वामीजन व मंदिर के कोष में जमा करने की व्यवस्था तय की थी। जिला प्रशासन अब इसे अव्यवहारिक मानते हुए श्राइन बोर्ड के पैटर्न पर मंदिर संचालन के लिए राष्ट्रीय स्तर के ट्रस्ट के गठन की सिफारिश कर रहा है।
बताया जाता है कि 1938 में श्रीबांकेबिहारी जी मंदिर की प्रबंधन व्यवस्था को लेकर मथुरा मुंसिफ मजिस्ट्रेट न्यायालय में एक वाद दायर हुआ था। इस पर 31 मार्च 1939 को मुंसिफ मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में मंदिर का प्रबंधन तय किया। इसके मुताबिक सात सदस्यीय प्रबंधन समिति के गठन की प्रक्रिया तय की गई। इसमें चार सदस्य शयन भोग आरती और राजभोग आरती के (दो-दो सदस्य) तथा तीन सदस्य इन चार सदस्यों की संस्तुति पर गोस्वामी समाज के इतर मुंसिफ मजिस्ट्रेट द्वारा नियुक्ति होंगे।
इस तरह मंदिर प्रबंधन की यह सात सदस्यीय समिति गठित होने पर उसी में से एक सभापति चुना जाएगा। सभापति को सामान्य एवं विधि के सभी मामलों में मंदिर प्रबंधन का प्रतिनिधित्व करने का अधिकार दिया गया। मजिस्ट्रेट ने अपने फैसले में यह भी तय किया कि जब तक समिति गठित नहीं हो जाती तब तक समिति में निहित सभी अधिकार मुंसिफ मजिस्ट्रेट को होंगे। 2016 से श्रीबांकेबिहारी मंदिर में यह समिति गठित न होने पर व्यवस्थाएं मुंसिफ मजिस्ट्रेट संभाल रहे हैं।
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