[ad_1]
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं का आंदोलन शुक्रवार को भी जारी रहा। अधिवक्ता हाईकोर्ट तो पहुंचे लेकिन उन्होंने न्यायिक कार्य नहीं किया। अधिवक्ताओं के कार्य से विरत रहने से कोर्ट भी नहीं चली। दोपहर बाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बैठक कर अपने आंदोलन को जारी रहने का निर्णय लिया। कहा कि इस संबंध में रविवार को बैठक कर आगे की रणनीति तय की जाएगी।
इसके पूर्व अधिवक्ताओं ने पिछले दो दिनों की तरह शुक्रवार को भी हाईकोर्ट परिसर में जाने वाले प्रवेश द्वारों पर एकत्र होकर न्यायिक कार्य का विरोध किया। कहा कि बार एसोसिएशन के बार-बार मांग करने के बावजूद मुकदमों से जुड़ी सुनवाई की व्यवस्था को सुधारा नहीं जा रहा है। इसका खामियाजा वादकारियों और अधिवक्ताओं दोनों को भुगतना पड़ रहा है।
उन्होंने कहा कि मुख्य न्यायमूर्ति की अगुवाई में हुई बैठक में बार के पदाधिकारियों को यह आश्वासन दिया गया कि उनकी समस्याओं का जल्द ही निराकरण कर दिया जाएगा लेकिन समस्या जस की तस है। अध्यक्ष राधाकांत ओझा ने कहा कि जब तक उनकी मांग पूरी नहीं होगी आंदोलन जारी रहेगा।
बैठक के दौरान हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने राजस्व परिषद बार एसोसिएशन के आंदोलन का समर्थन किया। महासचिव सत्यधीर सिंह जादौन ने कहा कि आंदोलन के संबंध में 28 अगस्त को बार के पदाधिकारियों की बैठक बुलाई गई है। उसमें आगे के आंदोलन की रणनीति तय की जाएगी।
बैठक में वरिष्ठ उपाध्यक्ष मनोज कुमार मिश्र, नीरज कुमार त्रिपाठी, सुरेंद्र नाथ मिश्र, धर्मेंद्र सिंह यादव, संजय सिंह, यादवेश यादव, आशुतोष त्रिपाठी, उष्मा मिश्रा, अरुण कुमार सिंह, पूजा सिंह आदि मौजूद रहे।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के अधिवक्ताओं का आंदोलन शुक्रवार को भी जारी रहा। अधिवक्ता हाईकोर्ट तो पहुंचे लेकिन उन्होंने न्यायिक कार्य नहीं किया। अधिवक्ताओं के कार्य से विरत रहने से कोर्ट भी नहीं चली। दोपहर बाद हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बैठक कर अपने आंदोलन को जारी रहने का निर्णय लिया। कहा कि इस संबंध में रविवार को बैठक कर आगे की रणनीति तय की जाएगी।
इसके पूर्व अधिवक्ताओं ने पिछले दो दिनों की तरह शुक्रवार को भी हाईकोर्ट परिसर में जाने वाले प्रवेश द्वारों पर एकत्र होकर न्यायिक कार्य का विरोध किया। कहा कि बार एसोसिएशन के बार-बार मांग करने के बावजूद मुकदमों से जुड़ी सुनवाई की व्यवस्था को सुधारा नहीं जा रहा है। इसका खामियाजा वादकारियों और अधिवक्ताओं दोनों को भुगतना पड़ रहा है।
[ad_2]
Source link