Allahabad High Court : 34 वर्ष बाद साढ़े चार वर्षीय बच्ची से दुष्कर्म, बर्बरता के आरोपी की सजा बरकरार

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साढ़े चार वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म और उसके शरीर के निजी अंगों को ब्लेड से काटने के आरोपी इशरत (18 वर्ष) को सत्र अदालत कानपुर नगर की ओर से सुनाई गई तीन वर्ष की कैद की सजा को सही करार दिया है। कोर्ट ने आरोपी की जमानत निरस्त करते हुए बची सजा भुगतने के लिए अदालत में समर्पण करने का निर्देश दिया है। 

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त अमानवीय गंभीर अपराध करने का दोषी है। ऐसे में उदारता बरतने का हकदार नहीं हैं। गवाहों के बयान तथा साक्ष्य से अपराध साबित हुआ है। कोर्ट ने सरकार की ओर से गंभीर अपराध की अपील न करने को दुखद और लोक अभियोजक की लापरवाही को निंदनीय बताया है। कहा, अभियुक्त ने जघन्य अपराध किया है।

कोर्ट ने आरोपी के समर्पण न करने पर  मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से कार्रवाई के लिए कहा है। यह फैसला न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने सजा के खिलाफ  आरोपी इशरत की अपील को खारिज करते हुए दिया है। मामले में 19 नवंबर 88 को कानपुर नगर के चमनगंज थाने में अज्ञात के खिलाफ  प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।

शिकायतकर्ता की नाबालिग बेटी पड़ोसी के घर खेलने गई थी। तकरीबन तीन बजे गांव के लोग उसे खून से लथपथ घर लाए। वह बोलने की हालत में नहीं थी। ऐसे में अस्पताल में उसका इलाज कराया गया। दुष्कर्म कर उसके निजी अंगों को ब्लेड से काटा गया था। घटना में प्रयुक्त ब्लेड खेत में घटना स्थल से बरामद हुई। पुलिस विवेचना में पीड़िता के बयान पर गिरफ्तारी करने के बाद चार्जशीट दाखिल की गई।

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अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ने धारा 324 में तीन वर्ष तथा धारा 354 में दो वर्ष की सजा सुनाई, जिसे अपील में चुनौती दी गई थी। आरोपी ने स्वयं को नाबालिग बताते हुए उदारता बरतने की मांग की। किंतु डाक्टरों की जांच में वह बालिग पाया गया। कोर्ट ने अपराध साबित मानते हुए सजा की पुष्टि कर दी है।

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने साढ़े चार वर्ष की बच्ची के साथ दुष्कर्म और उसके शरीर के निजी अंगों को ब्लेड से काटने के आरोपी इशरत (18 वर्ष) को सत्र अदालत कानपुर नगर की ओर से सुनाई गई तीन वर्ष की कैद की सजा को सही करार दिया है। कोर्ट ने आरोपी की जमानत निरस्त करते हुए बची सजा भुगतने के लिए अदालत में समर्पण करने का निर्देश दिया है। 

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्त अमानवीय गंभीर अपराध करने का दोषी है। ऐसे में उदारता बरतने का हकदार नहीं हैं। गवाहों के बयान तथा साक्ष्य से अपराध साबित हुआ है। कोर्ट ने सरकार की ओर से गंभीर अपराध की अपील न करने को दुखद और लोक अभियोजक की लापरवाही को निंदनीय बताया है। कहा, अभियुक्त ने जघन्य अपराध किया है।

कोर्ट ने आरोपी के समर्पण न करने पर  मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट से कार्रवाई के लिए कहा है। यह फैसला न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने सजा के खिलाफ  आरोपी इशरत की अपील को खारिज करते हुए दिया है। मामले में 19 नवंबर 88 को कानपुर नगर के चमनगंज थाने में अज्ञात के खिलाफ  प्राथमिकी दर्ज कराई गई थी।

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