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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 27000 से ज्यादा अनुदेशकों को 17 हजार रुपये मानदेय देने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील पर बहस पूरी होने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ कर रही थी। मामले में बृहस्पतिवार को कोर्ट में तकरीबन दो घंटे तक चली बहस के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है।
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जुलाई 2017 में याचियों ने 8470 रुपये मानदेय की संविदा की थी। इसलिए याचीगण 17 हजार प्रतिमाह मानदेय पाने के हकदार नहीं हैं। 17 हजार मानदेय केवल एक वर्ष के लिए जारी हुआ था।
महाधिवक्ता ने कहा कि अनुदेशकों की तैनाती एक वर्ष की संविदा पर होती है और कार्य संतोषजनक होने पर नवीनीकरण का नियम है। अनुदेशकों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एचएन सिंह और अधिवक्ता दुर्गा तिवारी ने कोर्ट में पक्ष रखा। बताया कि एकलपीठ ने याचियों को 17 हजार मानदेय देने का आदेश दिया है। लेकिन, राज्य सरकार ने 17000 मानदेय देने के आदेश का पालन नहीं किया।
इसके जवाब में राज्य सरकार का कहना था कि केंद्र सरकार की ओर से पूरी राशि नहीं दी गई है। जबकि, केंद्र ने बताया है कि हमने पूरी राशि दी है। प्रदेश के लगभग 27 हजार अनुदेशकों का मानदेय 2017 में केंद्र सरकार ने बढ़ाकर 17000 रुपये कर दिया था, जिसको प्रदेश सरकार ने लागू नहीं किया है।
पूर्व में एकल पीठ के समक्ष याची विवेक सिंह, आशुतोष शुक्ला और भोला नाथ पांडेय की ओर से याचिका दाखिल की गई थी। इस पर कोर्ट ने अनुदेशकों को 2017 से 17000 मानदेय सहित नौ प्रतिशत ब्याज भी देने का आदेश दिया है। इसी फैसले के खिलाफ राज्य सरकार ने विशेष अपील दाखिल की है।
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कार्यरत 27000 से ज्यादा अनुदेशकों को 17 हजार रुपये मानदेय देने के आदेश के खिलाफ राज्य सरकार की विशेष अपील पर बहस पूरी होने के बाद निर्णय सुरक्षित कर लिया है। मामले की सुनवाई मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ कर रही थी। मामले में बृहस्पतिवार को कोर्ट में तकरीबन दो घंटे तक चली बहस के बाद कोर्ट ने फैसला सुरक्षित कर लिया है।
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्र ने सरकार का पक्ष रखा। उन्होंने कोर्ट को बताया कि जुलाई 2017 में याचियों ने 8470 रुपये मानदेय की संविदा की थी। इसलिए याचीगण 17 हजार प्रतिमाह मानदेय पाने के हकदार नहीं हैं। 17 हजार मानदेय केवल एक वर्ष के लिए जारी हुआ था।
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