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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिसंबर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय परिसर में सीएए, एनआरसी के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हुए लाठी चार्ज की घटना के मामले में गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि शैक्षणिक संस्थाएं छात्रों से संवाद का बेहतर तंत्र विकसित करें, जिससे कि वह बाहरियों के उकसावे में न आएं और वहां शांति व्यवस्था बनी रहे। कोर्ट ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थाओं में छात्रों से संवाद का माध्यम कभी बंद नहीं, उसे हमेशा खुला रखना चाहिए।
इतना ही नहीं कोर्ट ने अपने आदेश में छात्रों की भूमिका भी स्पष्ट की। कहा, शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश लेने वाले छात्रों को शांति व्यवस्था बनाए रखने में अपना योगदान भी देना चाहिए। उन्हें कभी किसी भी बाहरियों के उकसाए में आकर शैक्षणिक संस्थाओं की शांति व्यवस्था नहीं भंग करनी चाहिए। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने मोहम्मद अमन खान की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
कोर्ट ने कहा कि छात्रों के ऐसे प्रदर्शनों से शैक्षणिक संस्थाओं का माहौल खराब होता है और इससे उनकी छवि प्रभावित होती है। मामले में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के छात्रों ने आजाद लाइब्रेरी के सामने एंटी सीएए और एनआरसी का विरोध प्रदर्शन किया था। इसके बाद वहां लाठी चार्ज हो गया था। इसमें कई छात्राें को गंभीर चोटें आईं थीं। छात्रों ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल कर लाठीचार्ज से घायल छात्रों को मुआवजा और सुरक्षाबलों के खिलाफ कार्रवाई की मांग की थी।
कोर्ट ने कहा, कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए सुरक्षा बल अपनी कार्रवाई के लिए स्वतंत्र हैं और इसमें कोई संदेह नहीं कि वह इस तरह की स्थिति से निपटने के लिए पूरी तरह से सक्षम हैं। कोर्ट ने मामले में दाखिल याचिका को पोषणीय न मानते हुए खारिज कर दिया।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दिसंबर 2019 में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय परिसर में सीएए, एनआरसी के विरोध में हुए प्रदर्शन के दौरान हुए लाठी चार्ज की घटना के मामले में गंभीर टिप्पणी की है। कोर्ट ने निर्देश दिया कि शैक्षणिक संस्थाएं छात्रों से संवाद का बेहतर तंत्र विकसित करें, जिससे कि वह बाहरियों के उकसावे में न आएं और वहां शांति व्यवस्था बनी रहे। कोर्ट ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थाओं में छात्रों से संवाद का माध्यम कभी बंद नहीं, उसे हमेशा खुला रखना चाहिए।
इतना ही नहीं कोर्ट ने अपने आदेश में छात्रों की भूमिका भी स्पष्ट की। कहा, शैक्षणिक संस्थाओं में प्रवेश लेने वाले छात्रों को शांति व्यवस्था बनाए रखने में अपना योगदान भी देना चाहिए। उन्हें कभी किसी भी बाहरियों के उकसाए में आकर शैक्षणिक संस्थाओं की शांति व्यवस्था नहीं भंग करनी चाहिए। यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति राजेश बिंदल और न्यायमूर्ति जेजे मुनीर की खंडपीठ ने मोहम्मद अमन खान की ओर से दाखिल याचिका को खारिज करते हुए दिया है।
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