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असोहा (उन्नाव)। कच्चे घर में रहने वाले ज्ञानप्रकाश और कांति ने अपने जिगर के टुकड़ों को हमेशा के लिए खो दिया। सिस्टम की खामी ने अगर ज्ञानप्रकाश से उसका सरकारी आवास पाने का हक न छीना होता तो शायद उसके बच्चे जीवित होते। उनका नाम आवास की सूची में शामिल था लेकिन कर्मचारियों की लापरवाही से सर्वे के दौरान लैंडलाइन फोन फीड हो गया। ऐसे में साइट से उसका नाम हट गया। अब बच्चों की मौत के बाद जागे शासन-प्रशासन ने आर्थिक सहायता और मुख्यमंत्री आवास भी स्वीकृत कर दिया। दंपति का कहना है कि जब रहने वाले नहीं बचे तब घर मिलने का क्या फायदा।
ज्ञान प्रकाश के पास सिर्फ 15 बिसवा खेती है। वह दूसरों के खेत बटाई पर लेकर भरणपोषण करता था। उसने प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के लिए पांच साल पहले आवेदन किया था। 2016-17 में आवास प्लस सूची के लिए सर्वे शुरू हुआ। कर्मचारियों ने घर- घर जाकर जांच की और मोबाइल पर ही मौके से ही फीडिंग कर दी। गलती से लैंडलाइन फोन कनेक्शन दर्ज होने से उसका नाम आवास सूची से स्वत: हट गया।
1900 पात्रों के नाम हटे
जिले से करीब 1900 पात्रों के नाम आवास की सूची से हटे हैं। परियोजना निदेशक डीआरडीए यशवंत सिंह ने बताया कि आटो डिलीशन में काफी पात्रों के नाम कट गए हैं। केंद्र सरकार ने साइट में आटो डिलीशन से संबंधित संशोधन व्यवस्था को लॉक कर रखा है। जिस कारण उसमें संशोधन नहीं हो पा रहा है। कई बार इस संबंध में मुख्यालय से पत्राचार करके संशोधन को खोलने की मांग की गई। जिस पर केंद्र से जानकारी दी गई कि पहले जो 17000 आवास का लक्ष्य है, उसे पूरा किया जाएगा। उसके बाद ही आटो डिलीशन वाले केसों को लिया जाएगा।
घर बनने तक पंचायत भवन में रहेंगे दंपती
विधायक पुरवा अनिल सिंह मृतकों के घर पहुंचे। माता-पिता को ढांढस बंधाने के साथ 50 हजार रुपये की सहायता दी। साथ ही 12 लाख रुपये का दैवी आपदा के प्रमाणपत्र के साथ आवास और शौचालय का भी प्रमाणपत्र दिया। जब तक घर नहीं बन जाता दंपती को पंचायत भवन में रहने के लिए कहा गया है।
असोहा (उन्नाव)। कच्चे घर में रहने वाले ज्ञानप्रकाश और कांति ने अपने जिगर के टुकड़ों को हमेशा के लिए खो दिया। सिस्टम की खामी ने अगर ज्ञानप्रकाश से उसका सरकारी आवास पाने का हक न छीना होता तो शायद उसके बच्चे जीवित होते। उनका नाम आवास की सूची में शामिल था लेकिन कर्मचारियों की लापरवाही से सर्वे के दौरान लैंडलाइन फोन फीड हो गया। ऐसे में साइट से उसका नाम हट गया। अब बच्चों की मौत के बाद जागे शासन-प्रशासन ने आर्थिक सहायता और मुख्यमंत्री आवास भी स्वीकृत कर दिया। दंपति का कहना है कि जब रहने वाले नहीं बचे तब घर मिलने का क्या फायदा।
ज्ञान प्रकाश के पास सिर्फ 15 बिसवा खेती है। वह दूसरों के खेत बटाई पर लेकर भरणपोषण करता था। उसने प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण के लिए पांच साल पहले आवेदन किया था। 2016-17 में आवास प्लस सूची के लिए सर्वे शुरू हुआ। कर्मचारियों ने घर- घर जाकर जांच की और मोबाइल पर ही मौके से ही फीडिंग कर दी। गलती से लैंडलाइन फोन कनेक्शन दर्ज होने से उसका नाम आवास सूची से स्वत: हट गया।
1900 पात्रों के नाम हटे
जिले से करीब 1900 पात्रों के नाम आवास की सूची से हटे हैं। परियोजना निदेशक डीआरडीए यशवंत सिंह ने बताया कि आटो डिलीशन में काफी पात्रों के नाम कट गए हैं। केंद्र सरकार ने साइट में आटो डिलीशन से संबंधित संशोधन व्यवस्था को लॉक कर रखा है। जिस कारण उसमें संशोधन नहीं हो पा रहा है। कई बार इस संबंध में मुख्यालय से पत्राचार करके संशोधन को खोलने की मांग की गई। जिस पर केंद्र से जानकारी दी गई कि पहले जो 17000 आवास का लक्ष्य है, उसे पूरा किया जाएगा। उसके बाद ही आटो डिलीशन वाले केसों को लिया जाएगा।
घर बनने तक पंचायत भवन में रहेंगे दंपती
विधायक पुरवा अनिल सिंह मृतकों के घर पहुंचे। माता-पिता को ढांढस बंधाने के साथ 50 हजार रुपये की सहायता दी। साथ ही 12 लाख रुपये का दैवी आपदा के प्रमाणपत्र के साथ आवास और शौचालय का भी प्रमाणपत्र दिया। जब तक घर नहीं बन जाता दंपती को पंचायत भवन में रहने के लिए कहा गया है।
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