भारत की मिट्टी पर 70 साल बाद नामीबिया से लाए गए चीतों के कदम पड़े हैं। हालांकि 430 साल पहले मुगलिया राजधानी रहे आगरा और फतेहपुर सीकरी में मुगल शहंशाह अकबर की शिकारगाह चीताखाना में एक हजार से ज्यादा चीते पाले गए थे। मुगल शहंशाह अपनी ताकत और जांबाजी दिखाने के लिए इनका इस्तेमाल शाही व विदेशी मेहमानों के सामने करते थे। मुगलिया दरबार में समंद मनिक और चितरंजन नाम के चीता-ए-खास जब आते तो उनके आगे नगाड़ा बजाया जाता। बादशाह इन खास चीतों को अपने पास दुलारते नजर आते और अपने हाथों से ही खाना खिलाते थे। मुगल शहंशाह अकबर, जहांगीर और शाहजहां ने कुत्तों की जगह चीतों का इस्तेमाल शिकार के लिए किया था। नूरजहां भी चीतों के साथ शिकार पर जाती थीं।
चाचा का चीतों संग किया था स्वागत
पदमश्री केके मोहम्मद बताते हैं कि फतेहपुर सीकरी के राजधानी बनने के बाद जब अकबर के चाचा मिर्जा सुलेमान पहली बार आए तो आगरा गेट से दीवान-ए-खास तक सड़क के दोनों ओर लोगों ने उनका स्वागत किया। गेट पर ही खास प्रशिक्षित चीतों को चाचा के सम्मान में खड़ा किया गया था। वहीं दीवान-ए-खास में भी चीतों की मौजूदगी थी।
अब्दुल कादिर बदायूंनी की ‘मुंतखब उत तवारीख’ में सीकरी के चीताखाना का ब्योरा है, जिसमें चीतों को दरबारी का दर्जा देने और शाही मेहमानों के स्वागत के लिए चीतों को भेजने की जानकारी है। पदमश्री केके मोहम्मद ने ही अकबरनामा में मौजूद जानकारी पर 1985-86 में उत्खनन कर चीताखाना की खोज की थी।
89 मुगल पेंटिंगों में छाए हैं चीते
मुगल बादशाहों के जीवन से जुड़ी 89 पेंटिंग ऐसी हैं, जिनमें चीतों के चित्र उकेरे गए हैं। यह शिकार के दौरान शहंशाह अकबर, जहांगीर और शाहजहां के हैं। मुगल बादशाह बाबर के काल में चीतों को पालने या शिकार का कोई जिक्र नहीं है। मुगलिया सल्तनत में चीतों के किस्से अकबरनामा, आईने अकबरी, तुजुक-ए-जहांगीरी, इकबालनामा-ए-जहांगीरी, तवाकात-ए-नासिरी, तारीख-ए-फिरोजशाही, यासिर-ए-जहांगीरी, मिरात-ए-अहमदी, मुंतखब उत तवारीख और मजलिस-ए-जहांगीरी में दर्ज है। जहांगीर ने लिखा है कि 12 से 50 वर्ष की उम्र तक उसने 28,532 जानवरों और 13,964 पक्षियों का शिकार किया। इनमें जानवरों के शिकार में चीतों का इस्तेमाल किया गया, जिसे कमरगाह का नाम दिया गया।
ताकत का प्रदर्शन था
एप्रूव्ड गाइड एसोसिएशन के अध्यक्ष शमशुद्दीन ने बताया कि मुगलों के लिए शेर, चीतों को मारना और पालना ताकत का प्रदर्शन था। कुत्तों की जगह उन्होंने चीतों का इस्तेमाल किया, जिसने आम जनता और विदेशी मेहमानों के बीच मुगलों की वीरता, जांबाजी को दिखाया।
कैद में प्रजनन नहीं करते चीते
पूर्व डीएफओ और वन्य जीव विशेषज्ञ आनंद कुमार के मुताबिक चीते कैद में प्रजनन नहीं करते। वह प्राकृतिक आवासों के जीव हैं और आजाद होने पर ही प्रजनन जैसी गतिविधियां करते हैं। मुगल बादशाहों ने चीतों को पाला, पर प्रजनन न होने से ये विलुप्त होते गए।