मैनपुरी से करीब पांच किमी की दूरी बसा सिकंदपुर गांव आर्थिक रूप से काफी पिछड़ा है। मुस्लिम बहुल्य इस गांव के लोग मजदूरी पर आश्रित हैं। लेकिन राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) ने मुर्गी पालन के व्यवसाय से महिलाओं को जोड़कर उनकी तकदीर बदलने का काम किया। अब इस गांव की महिलाएं आत्मनिर्भर बनकर परिवार को बेहतर जीवन के साथ नई दिशा देने का कार्य कर रही हैं।
करीब डेढ़ वर्ष पूर्व तत्कालीन मुख्य विकास अधिकारी ईशा प्रिया और उपायुक्त एनआरएलएम पीसी राम ने सामुदायिक पोल्ट्री फार्म के लिए पहल की थी। मनरेगा के तहत ग्राम पंचायत सिकंदरपुर में 12.27 लाख की लागत से सामुदायिक पोल्ट्री फार्म बनाकर तैयार किया गया। इसके बाद इसके संचालन का जिम्मा 20 महिला स्वयं सहायता समूहों में से एक-एक महिला का चयन कर बनाए गए नोडल समूह को दिया गया।
पहले सामुदायिक पोल्ट्री फार्म में एक माह तक चूजों को रखा गया। इसके बाद समूह की अन्य महिलाओं को ये बड़े चूजे बैकयार्ड पोल्ट्री फार्म के लिए दिए गए। यहां महिलाओं ने पांच माह तक उनका पालन किया। इसके बाद मुर्गियां अंडे देने लगीं और मुर्गों की बिक्री शुरू हो गई। इससे महिलाओं को आमदनी होने लगी और धीरे-धीरे उनका आर्थिक स्तर सुधरने लगा।
वर्तमान में 220 महिलाएं बैकयार्ड पोल्ट्री फार्म से मुनाफा कमा रही हैं। वहीं सामुदायिक पोल्ट्री फार्म में बनी दो मदर यूनिट का संचालन उजाला नोडल उत्पादक समूह और रोशनी महिला संकुल स्तरीय समूह द्वारा किया जा रहा है। गांव की बेरोजगार महिलाओं के लिए बैकयार्ड पोल्ट्री एक बेहतर रोजगार बनकर सामने आई है। धीरे-धीरे अन्य महिलाएं भी इससे जुड़कर आत्मनिर्भर बनने लगी हैं।
प्रत्येक माह सामुदायिक पोल्ट्री फार्म में पांच हजार चूजे डाले जाते हैं। औसतन ये चूजे एक लाख रुपये के आते हैं। यहां 28 दिन तक उनकी देखभाल की जाती है। इसके बाद समूह की महिलाओं को बैकयार्ड पोल्ट्री के लिए 80 रुपये में एक चूजा दिया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया से सामुदायिक पोल्ट्री फार्म का संचालन करने वाली महिलाओं को औसतन छह से सात हजार रुपये की आमदनी प्रति माह प्रति महिला हो जाती है।
सामुदायिक पोल्ट्री फार्म से 28 दिन के चूजे महिलाएं बैकयार्ड पोल्ट्री के लिए लेती हैं। उन्हें दो हजार रुपये में 25 चूजे दिए जाते हैं। वे पांच माह तक घर में रखकर उनकी देखभाल करती हैं। इसके बाद मुर्गी अंडे देना शुरू कर देती हैं। इससे प्रतिमाह लगभग चार हजार रुपये की आमदनी होती है। वहीं धीरे-धीरे मुर्गों की बिक्री से भी दो हजार रुपये तक आमदनी हो जाती है। ऐसे में बैकयार्ड पोल्ट्री से भी महिलाओं को पांच से छह हजार रुपये प्रतिमाह का फायदा हो रहा है।
उजाला नोडल उत्पादक समूह की संचालक नगमा ने बताया कि गांव में महिलाओं के लिए रोजगार के नाम पर बस मजदूरी ही है। ऐसे में राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन ने महिलाओं को मुर्गी पालन से जोड़कर आमदनी की राह दिखाई। हमारे गांव की महिलाएं अब खुद की कमाई से आत्मनिर्भर बन रही हैं।
उजाला नोडल उत्पादक समूह की अध्यक्ष नाजिया ने कहा कि मेरे द्वारा सामुदायिक पोल्ट्री फार्म से चूजे लेकर उनका पालन किया जा रहा है। इससे एक आमदनी का जरिया बना है। गांव की दो सौ महिलाएं ये काम कर रही हैं। इससे उनके जीवन में खुशहाली आई है। अन्य महिलाएं भी इससे जुड़ रही हैं।