उन्नाव जिले में हास्य कलाकार व उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के चेयरमैन राजू श्रीवास्तव के निधन की सूचना मिलते ही उनकी ननिहाल बेहटा ससान में शोक छा गया। ममेरे भाई और गांव के लोगों ने कहा कि उनकी मुस्कान हमेशा जीवंत रहेगी। ममेरे भाई रितेश ने बताया कि गांव निवासी स्वर्गीय मनोहर सविता ही राजू भइया की हास्य धारा का मुख्य पात्र गजोधर बने। राजू उन्हें इसी नाम से बुलाते थे और कार्यक्रमों में इस किरदार को उतारा तो ये उनकी भी पहचान बन गया।
राजू के पिता रमेश चंद्र श्रीवास्तव बलई काका का विवाह बेहटा ससान में राज बहादुर श्रीवास्तव की पुत्री सरस्वती देवी के साथ हुआ था। राजू के मामा कैलाश, जीत बहादुर, श्रीराम व आत्माराम का निधन हो चुका है। गांव में ममेरे भाई रितेश, नीलेश व ओमप्रकाश रहते हैं। रीतेश ने बताया कि बुधवार सुबह 10:40 बजे भइया के निधन की सूचना मिली। वह अंतिम संस्कार में शामिल होने दिल्ली जा रहे हैं।
उनके निधन से संरक्षक चला गया। गांव में राजू की जमीन की देखरेख वह करते हैं। उन्होंने बताया कि राजू का ननिहाल बेहटा ससान से बहुत लगाव रहा। उन्होंने 10 फरवरी 2015 को गांव में पिता व मां की प्रतिमा लगवाई थी। राजू के पिता के मामा का गांव पड़ोस के मगरायर में है। वहां के पूर्व प्रधान बृज कुमार अवस्थी व वेद विक्रम श्रीवास्तव ने राजू के निधन पर शोक जताया है।
तीन साल पहले मामा के निधन पर आए थे गांव
राजू श्रीवास्तव बचपन में मां व भाइयों के साथ गांव आते-जाते थे। किराना दुकानदार रामप्रकाश ने बताया कि राजू मामा कैलाश के निधन पर वर्ष 2019 में गांव आए थे। मामा पक्ष के ज्यादातर लोग बाहर रहने लगे हैं। उनका घर खंडहर हो चुका है। घर के सामने मंदिर का जीर्णोद्धार राजू ने ही कराया था।
बुधवार को इस चबूतरे पर बैठी उर्मिला, रामकली चौरसिया, द्वारिका प्रसाद, रश्मि विश्वकर्मा, राज कुमारी, कंचन विश्वकर्मा, मुकेश, जगदेव निर्मल व रामप्रकाश ने राजू के साथ बिताए पलों को याद किया। रश्मि विश्वकर्मा व कंचन ने बताया कि वह राजू भइया को भोजन कराती थीं। 2016 को जन्माष्टमी पर वह उनके घर पर रुके थे। हम लोगों को बहुत स्नेह करते थे। जब भी आते तो कोई न कोई सामान जरूर लाते थे। पड़ोस में रहने वाली रामकली ने बताया कि राजू उन्हें माई कहकर पुकारते थे। उनके निधन की सूचना मिली तो विश्वास ही नहीं हुआ।
कवि सम्मेलन में हुआ था पिता का निधन
साहित्य भारती संस्था की ओर से वर्ष 2012 में कवि सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इसमें हास्य कलाकार राजू श्रीवास्तव के पिता बलाई काका मंच पर उपस्थित थे। वह संस्था के संस्थापक अतुल मिश्र से ये कह रहे थे कि भारत में सिर्फ चार ही जग संबोधित काकाओं ने जन्म लिया। प्रथम निर्भय हाथरसी काका, काका बैसवारी, रमई काका और चौथा मैं खुद बलई काका। इन चारों काकाओं में बस एक ही शेष है जो मैं हूं और यही कहते-कहते वह मंच पर गिर पड़े और उनका निधन हो गया था।