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बांकेबिहारी मंदिर
– फोटो : अमर उजाला
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वृंदावन का ठाकुर बांकेबिहारी मंदिर वास्तुकला का अद्वितीय उदाहरण है। मंदिर की सुरक्षा में पंचदेव तैनात हैं तो वहीं तल में पंचकूप गुप्तगैल बनी हुई हैं। मंदिर के सेवायत एवं इतिहासकार आचार्य प्रहलाद वल्लभ गोस्वामी ने बताया कि 1787 ईसवी में निधिवनराज से पुराने शहर में लाए गए श्रीबांकेबिहारीजी के लिए शुरुआत में बहुत छोटा सा मंदिर बनाकर सेवा पूजा आरम्भ हुई थी।
मंदिर वर्तमान गर्भगृह के चौक की दाहिनी ओर बनी तिवारी के मध्य भाग में निर्मित था। वास्तुकला की दृष्टि से मंदिर की सुरक्षार्थ पूर्व से विराजित गणेश मंदिर को पाठशाला में, हनुमान मंदिर को वामनपुरी, शिवमंदिर (शिवालय) को बिहारीपुरा-दुसायत सीमा पर स्थित पीपल चबूतरा पर तथा मंदिर की नींव की खुदाई में प्राप्त हुए गिरिराज अंश व चरण चिह्नांकित शिला को मंदिर के चौक में विराजमान किया गया था।
मंदिर में है पंचकूप गुप्तगैल मार्ग
उन्होंने बताया कि सेवायतों ने मंदिर की स्थापना के समय ही पंचकूप गुप्तगैल नामक एक अंदरूनी मार्ग का निर्माण किया था ताकि विपरीत परिस्थिति का सामना होने पर आराध्य को सुरक्षित अन्यत्र निकला जा सके। बुजुर्गों के आधार पर पांच कुओं में से पहला कुआं विद्यापीठ के पास आरामशीन में हैं, जहां सेवायत समाज के बच्चों का मुंडन होने पर कुआं पूजन किया जाता है। दूसरा परिक्रमा स्थित कच्ची रसोई में, तीसरा मंदिर कार्यालय के नीचे, चौथा बाहरी चबूतरे पर है और पांचवां कुआं मोहनबाग में है।
कराई जाए कुओं की सफाई
गोस्वामी ने बताया कि अत्यधिक गहराई वाले पांचों कुओं में सीढ़ियां भी बनी हैं। कुछ वर्षों पहले तक सभी कुएं दिखाई देते थे, अब अधिकांश को ढक दिया गया है। उनका कहना है कि बगैर पर्याप्त इंतजाम के ढके गए कुओं की वजह से अंदर जल रिसाव होने से मंदिर को नुकसान होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में कुओं की सफाई कराकर, बेहतर रखरखाव की भी जरूरत है।
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