आश्विन मास की पूर्णिमा तिथि ( 9 अक्तूबर) पर आसमान से जमीन पर अमृत की बरसात होगी। आरोग्य लाभ के लिए शरद पूर्णिमा की चंद्रकि रणों में औषधीय गुण विद्यमान रहते हैं। शरद पूर्णिमा की रात्रि से कार्तिक पूर्णिमा की रात्रि तक आकाश दीप जलाकर दीपदान की महिमा है। दीपदान करने से घर के समस्त दुख-दारिद्रय का नाश होता है तथा सुख समृद्धि का आगमन होता है। गंगा के तट पर अमर शहीदों की राह में आकाशदीप रोशन होते हैं। काशी में कार्तिक मास पर्यंत स्नान और गंगा तट पर दीप प्रज्जवलन करने की परंपरा है।
9 अक्तूबर से कार्तिक मास के अनुष्ठान आरंभ होंगे। ज्योतिषाचार्य विमल जैन ने बताया कि आश्विन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि 8 अक्तूबर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3.43 बजे लग रही है जो कि 9 अक्तूबर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 2.25 बजे तक रहेगी। उत्तरा भाद्रपद नक्षत्र 8 अक्तूबर को शाम 5.08 बजे से नौ अक्तूबर को शाम 4.21 बजे तक रहेगा। इसके बाद रेवती नक्षत्र आरंभ हो जाएगा।
पूर्णिमा तिथि का मान नौ अक्तूबर को होने के कारण स्नान, दान, व्रत और धार्मिक अनुष्ठान संपन्न होंगे। इस पूर्णिमा में अनोखी चमत्कारी शक्ति निहित मानी जाती है। 16 कलाओं से युक्त चंद्रमा से निकली रोशनी समस्त रूपों वाली बताई गई है।
शरद पूर्णिमा के पर्व को कौमुदी उत्सव, कुमार उत्सव, शरदोत्सव, रास पूर्णिमा, कोजागिरी पूर्णिमा एवं कमला पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के न्यासी पं. दीपक मालवीय ने बताया कि शरद पूर्णिमा की रात्रि में दूध से बनी खीर को चांद की रोशनी में वस्त्रों से ढंककर रखा जाता है, जिससे चांदनी छनकर खीर में जाए।
भक्ति भाव से प्रसाद के तौर पर वितरण कर स्वयं भी ग्रहण करें। स्वास्थ्य लाभ के साथ ही जीवन में सुख सौभाग्य की वृद्धि होती है। शरद पूर्णिमा से काशी में दीपदान की परंपरा भी है।