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कलक्ट्रेट के बाहर अनशन पर बैठे दंपती की तबियत खराब होने पर समझातीं सिटी मजिस्ट्रेट व सीओ। संवाद
– फोटो : UNNAO
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उन्नाव। फैक्टरी में दोबारा नौकरी की मांग को लेकर कलक्ट्रेट के बाहर एक सप्ताह से अनशन पर बैठे दंपती की हालत बिगड़ गई। सिटी मजिस्ट्रेट व सीओ ने डॉक्टर को बुलाकर चेकअप कराने के बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया।
शांती नगर नहर पटरी निवासी आलोक कुमार ने बताया कि वह 2016 में दही थानाक्षेत्र में संचालित एक फैक्टरी में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत था। दो मार्च 2016 को फैक्टरी प्रबंधन ने 15 दिन की बैठकी करा दी थी। निर्धारित समय के बाद आलोक दोबारा फैक्टरी पहुंचा तो उसे बिना कोई ठोस कारण बताए निकाल दिया गया। उसने तब जिला प्रशासन से शिकायत की तो सात माह बाद समझौता हुआ और फैक्टरी ने शू डिवीजन में काम दिया। 15 दिन काम करने के बाद उसे गुर्दे में तकलीफ हुई तो उसने आपरेशन करा लिया। 31 जनवरी 2017 को वह फैक्टरी वापस लौटा और अपने सही होने का प्रमाणपत्र दिया, लेकिन फैक्टरी प्रबंधन ने पूरी तरह से ठीक होने के बाद वापस आने की बात कही। उसने खुद को पूरी तरह से ठीक बताया लेकिन प्रबंधन ने एक न सुनी और काम पर नहीं रखा।
2020 में उसने फिर शिकायत की लेकिन इसके बाद से लगातार उसे टरकाया जाता रहा। किसी प्रकार की कार्रवाई न होने पर पत्नी व बच्चे सहित कलक्ट्रेट के बाहर अनशन पर बैठ गया। इसी बीच उसकी तबियत बिगड़ी तो सिटी मजिस्ट्रेट विजेता व सीओ सिटी आशुतोष कुमार मौके पर पहुंचे। हालांकि पीड़ित ने पहले न्याय न मिलने तक अनशन पर बैठे रहने की बात कही। बाद में अधिकारियों ने डॉक्टर बुलाया और स्वास्थ्य की जांच कराई। फिर एंबुलेंस से उसे, पत्नी व बच्चे सहित जिला अस्पताल भेज दिया। सिटी मजिस्ट्रेट ने बताया कि इसकी शिकायत पहले भी कई बार आ चुकी है। पूर्व डीएम ने निस्तारण भी करा दिया था। इसका मामला लेबर कोर्ट में भी है। इसके बाद फिर अनशन शुरू कर दिया।
उन्नाव। फैक्टरी में दोबारा नौकरी की मांग को लेकर कलक्ट्रेट के बाहर एक सप्ताह से अनशन पर बैठे दंपती की हालत बिगड़ गई। सिटी मजिस्ट्रेट व सीओ ने डॉक्टर को बुलाकर चेकअप कराने के बाद जिला अस्पताल में भर्ती कराया।
शांती नगर नहर पटरी निवासी आलोक कुमार ने बताया कि वह 2016 में दही थानाक्षेत्र में संचालित एक फैक्टरी में सुपरवाइजर के पद पर कार्यरत था। दो मार्च 2016 को फैक्टरी प्रबंधन ने 15 दिन की बैठकी करा दी थी। निर्धारित समय के बाद आलोक दोबारा फैक्टरी पहुंचा तो उसे बिना कोई ठोस कारण बताए निकाल दिया गया। उसने तब जिला प्रशासन से शिकायत की तो सात माह बाद समझौता हुआ और फैक्टरी ने शू डिवीजन में काम दिया। 15 दिन काम करने के बाद उसे गुर्दे में तकलीफ हुई तो उसने आपरेशन करा लिया। 31 जनवरी 2017 को वह फैक्टरी वापस लौटा और अपने सही होने का प्रमाणपत्र दिया, लेकिन फैक्टरी प्रबंधन ने पूरी तरह से ठीक होने के बाद वापस आने की बात कही। उसने खुद को पूरी तरह से ठीक बताया लेकिन प्रबंधन ने एक न सुनी और काम पर नहीं रखा।
2020 में उसने फिर शिकायत की लेकिन इसके बाद से लगातार उसे टरकाया जाता रहा। किसी प्रकार की कार्रवाई न होने पर पत्नी व बच्चे सहित कलक्ट्रेट के बाहर अनशन पर बैठ गया। इसी बीच उसकी तबियत बिगड़ी तो सिटी मजिस्ट्रेट विजेता व सीओ सिटी आशुतोष कुमार मौके पर पहुंचे। हालांकि पीड़ित ने पहले न्याय न मिलने तक अनशन पर बैठे रहने की बात कही। बाद में अधिकारियों ने डॉक्टर बुलाया और स्वास्थ्य की जांच कराई। फिर एंबुलेंस से उसे, पत्नी व बच्चे सहित जिला अस्पताल भेज दिया। सिटी मजिस्ट्रेट ने बताया कि इसकी शिकायत पहले भी कई बार आ चुकी है। पूर्व डीएम ने निस्तारण भी करा दिया था। इसका मामला लेबर कोर्ट में भी है। इसके बाद फिर अनशन शुरू कर दिया।
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