पंचदीपोत्सव की शुरुआत धनतेरस के साथ होगी। 178 साल के बाद धनतेरस पर गुरु और शनि का संयोग जातकों पर स्थिर लक्ष्मी की कृपा बरसाएगी। ज्योतिषाचार्यों के अनुसार, सुखद योग और संयोगों के साथ जातकों को दो दिन धनतेरस का पर्व मनाने का अवसर मिल रहा है। खास बात यह है कि सूर्यग्रहण के कारण पंचदीपोत्सव का महापर्व छह दिनों का हो गया है। काशी विद्वत कर्मकांड परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष आचार्य अशोक द्विवेदी ने बताया कि धनतेरस पर प्रदोषकाल में दीपदान करने का महत्व है। तेरस प्रदोषकाल में 22 अक्तूबर की शाम को होगा।
धन के कारक गुरु अपनी स्व राशि मीन और स्थायित्व के कारक शनि स्वयं की राशि मकर में गोचर करेंगे। इस कारण खरीदारी स्थिर लक्ष्मी के साथ ही महालक्ष्मी की कृपा भी बरसाएगी। शनि और गुरु का धनतेरस पर संयोग 178 साल पहले आठ नवंबर 1884 में बना था। 22 और 23 अक्तूबर को वही ग्रह स्थिति फिर से निर्मित हो रही है।
काशी विश्वनाथ मंदिर न्यास के सदस्य पं. दीपक मालवीय ने बताया कि कार्तिक कृष्णपक्ष की त्रयोदशी 22 अक्तूबर की शाम 6.03 बजे से लगेगी और 23 अक्तूबर को शाम 6.04 बजे खत्म होगी। धन संपत्ति के लिए धनाधिपति श्रीकुबेर देवता की भी पूजा करनी चाहिए। देवकक्ष में पूजा स्थल पर दीपक प्रज्जवलित करना चाहिए।
पूजा का सर्वोत्तम समय प्रदोषकाल एवं वृषभ लग्न का संयुक्त समय शाम 6.40 बजे से रात्रि 8.36 बजे तक रहेगा। धनतेरस के दिन शुरू शुभ कार्यों में अच्छी सफलता एवं स्थायी लाभ की स्थिति बनती है। इस दिन घर एवं कार्यस्थल को प्रकाश मय रखना चाहिए।
काशीपुराधिपति को अन्न-धन की भिक्षा देने वाली मां अन्नपूर्णा अपने भक्तों पर कृपा बरसाएंगी। धनतेरस पर स्वर्णमयी अन्नपूर्णा के विग्रह के दर्शन होंगे और भक्तों को खजाने के रूप में चांदी के सिक्कों का वितरण किया जाएगा।
23 अक्तूबर को निर्धारित समय से एक घंटे पहले ही मंदिर के कपाट खोल दिए जाएंगे और चार दिनों तक श्रद्धालु स्वर्णमयी विग्रह मां अन्नपूर्णा, मां भूमि देवी और रजत महादेव के दर्शन कर सकेंगे। 160 क्विंटल प्रसाद तैयार हो रहा है।