Exclusive: गोरखपुर विश्वविद्यालय में आउटसोर्सिंग कर्मचारियों का पीएफ हजम कर गए अफसर व एजेंसी

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– फोटो : अमर उजाला

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दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में तैनात आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की 10 करोड़ रुपये से ज्यादा भविष्य निधि (पीएफ) अफसरों व एजेंसियों ने हड़प ली है। विश्वविद्यालय प्रशासन की जांच में बड़ा खेल पकड़ में आया है। बीते 16 साल से आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की पीएफ निधि का अंश नियमित जमा ही नहीं है। सिर्फ कागजात में यह रकम जमा होती रही है। अब कुलपति के निर्देश पर जांच शुरू करा दी गई है। जिसके बाद से हड़कंप मच गया है।

विश्वविद्यालय में क्लर्क व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगी है। वर्ष 2006 में एजेंसी के जरिए आउटसोर्सिंग के रूप में कर्मचारी तैनात किए गए। वर्ष 2022 तक तीन एजेंसियों को ठेका दिया गया। सभी ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले मानदेय से पीएफ के अंश की कटौती की, लेकिन उसे कर्मचारी भविष्य निधि में जमा नहीं कराया।

ऐसा खुला मामला
वर्ष 2021 में कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के तैनाती स्थल की जांच शुरू की। भारी गड़बड़ी मिली तो उन्होंने कर्मचारियों की पूरी फाइल तलब की। जांच में पाया गया कि कर्मचारियों का पीएफ अंश जमा ही नहीं हो रहा है। इसके बाद वर्ष 2006 तक की फाइलों की पड़ताल की गई तो हर जगह मामला संदिग्ध मिला। कागजों में जमा दिखाया गया था और एजेंसी को भुगतान कर दिया गया। लेकिन, कर्मचारियों का खाता ही नहीं खुला था। इस समय विश्वविद्यालय में 264 कर्मचारी तैनात हैं। सभी का नियमित पीएफ जमा नहीं हो रहा है। अब कुलपति ने सख्ती बरतते हुए पूरे प्रकरण की जांच का निर्देश दिया है।

 

आईटीआई कार्यकर्ता उग्रसेन सिंह ने वर्ष 2019 में राजभवन को पत्र लिखकर सेवा प्रदाता फर्म पर कर्मचारियों के पीएफ अंशदान जमा कराने में घोटाले का आरोप लगाया था। जिसमें कहा गया था कि 248 कर्मचारियों के वेतन का भुगतान जेजेज इंडस्ट्रियल सिक्योरिटी प्राइवेट लिमिटेड को विवि प्रशासन ने किया है, एजेंसी ने 191 कर्मचरियों का ही पीएफ अंशदान जमा किया है। इस आरोप को संज्ञान में लेते हुए राजभवन में जांच का आदेश दिया गया। कमेटी भी बनी, लेकिन जांच पूरी नहीं हुई और मामला दबा दिया गया।

गोरखपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने कहा कि वर्ष 2006 से आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के पीएफ अंशदान को जमा करने में गड़बड़ी की गई है। पूरे प्रकरण की जांच होगी। इसमें रजिस्ट्रार और वित्त अधिकारी को जांच कर एजेंसी को भुगतान करना चाहिए। लेकिन, ऐसा नहीं किया गया। साढ़े तीन हजार कटौती करके एजेंसी, कर्मचारी को मानदेय भुगतान कर रही है।

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कटौती की राशि कहां जा रही है, इसका कोई हिसाब नहीं है। प्राथमिक तौर पर 10 करोड़ से ज्यादा हेरफेर सामने आया है। पीएफ कमिश्नर को भी पत्र भेजकर रिकॉर्ड मांगा जाएगा। जो भी इसमें दोषी होगा उससे रिकवरी की जाएगी।

मानदेय की राशि

श्रेणी तय मानदेय भुगतान
कुशल कर्मचारी  13350 10220
अकुशल कर्मचारी 11250 7833

रुपये में

विस्तार

दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में तैनात आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की 10 करोड़ रुपये से ज्यादा भविष्य निधि (पीएफ) अफसरों व एजेंसियों ने हड़प ली है। विश्वविद्यालय प्रशासन की जांच में बड़ा खेल पकड़ में आया है। बीते 16 साल से आउटसोर्सिंग कर्मचारियों की पीएफ निधि का अंश नियमित जमा ही नहीं है। सिर्फ कागजात में यह रकम जमा होती रही है। अब कुलपति के निर्देश पर जांच शुरू करा दी गई है। जिसके बाद से हड़कंप मच गया है।

विश्वविद्यालय में क्लर्क व चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारियों की नियुक्ति पर रोक लगी है। वर्ष 2006 में एजेंसी के जरिए आउटसोर्सिंग के रूप में कर्मचारी तैनात किए गए। वर्ष 2022 तक तीन एजेंसियों को ठेका दिया गया। सभी ने कर्मचारियों को दिए जाने वाले मानदेय से पीएफ के अंश की कटौती की, लेकिन उसे कर्मचारी भविष्य निधि में जमा नहीं कराया।

ऐसा खुला मामला

वर्ष 2021 में कुलपति प्रो. राजेश सिंह ने आउटसोर्सिंग कर्मचारियों के तैनाती स्थल की जांच शुरू की। भारी गड़बड़ी मिली तो उन्होंने कर्मचारियों की पूरी फाइल तलब की। जांच में पाया गया कि कर्मचारियों का पीएफ अंश जमा ही नहीं हो रहा है। इसके बाद वर्ष 2006 तक की फाइलों की पड़ताल की गई तो हर जगह मामला संदिग्ध मिला। कागजों में जमा दिखाया गया था और एजेंसी को भुगतान कर दिया गया। लेकिन, कर्मचारियों का खाता ही नहीं खुला था। इस समय विश्वविद्यालय में 264 कर्मचारी तैनात हैं। सभी का नियमित पीएफ जमा नहीं हो रहा है। अब कुलपति ने सख्ती बरतते हुए पूरे प्रकरण की जांच का निर्देश दिया है।

 



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