Surya Grahan: कल ग्रस्तास्त के रूप में नजर आएगा खंड सूर्यग्रहण, भूलकर भी न करें ये काम

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सूर्यग्रहण

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– फोटो : iStock

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दीपावली के दूसरे दिन लगने वाला खंडग्रास सूर्यग्रहण ग्रस्तास्त सूर्यग्रहण के रूप में नजर आएगा। सूर्यास्त होने के कारण ग्रहण का मोक्ष भार में दृश्यमान नहीं होगा। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले ही लग जाएगा। ज्योतिष के  अनुसार सूतक काल में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गई है तथा देव दर्शन भी वर्जित माना गया है। हालांकि इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता भी है कि ग्रहण के समय जीवाणुओं की प्रबलता होती है और ऐसे काल में किया भोजन स्वास्थ्य के लिहाज से उत्तम नहीं होता है। 

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो.रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि काशी में ग्रहण का स्पर्शकाल 25 अक्तूबर मंगलवार को शाम 4:23 बजे पर होगा। ग्रहण का मध्य काल शाम 5:28 बजे और मोक्षकाल शाम 6:25 बजे होगा। ग्रहण के स्पर्श, मध्य एवं मोक्ष के समय स्नान करना चाहिए। सूर्यग्रहण का सूतक 24 अक्तूबर की अर्द्धरात्रि के बाद 4:23 बजे शुरू हो जाएगा। 

ग्रहण काल में भोजन के पात्रों में डालें कुश या तुलसी

ग्रहण काल के दौरान भोजन के पात्रों में कुश अथवा तुलसी डाल देनी चाहिए जिससे ग्रहण काल के सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते हैं। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है। 

प्रो. द्विवेदी ने बताया कि जीव विज्ञान विषय के प्रोफेसर टारिंस्टन ने भी अनुसंधान से सिद्ध किया है कि सूर्य व चंद्र ग्रहण के समय मनुष्य के पेट की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसके कारण इस समय किया गया भोजन अपच, अजीर्ण आदि शिकायतें पैदा कर शारीरिक या मानसिक हानि पहुंचा सकता है।

  •  ग्रहण की अवधि में तेल लगाना, भोजन करना, जल पीना, मल-मूत्र त्याग करना, सोना, केश विन्यास करना, रति क्रीड़ा करना, मंजन करना, वस्त्र निचोड़ना, ताला खोलना वर्जित है।
  • देवी भागवत में आता है कि सूर्यग्रहण या चंद्रग्रहण के समय भोजन करने वाला मनुष्य जितने अन्न के दाने खाता है, उतने वर्षों तक अरुतुन्द नामक नरक में वास करता है। फिर वह उदर रोग से पीड़ित मनुष्य होता है फिर गुल्मरोगी, नजर कमजोर और दंतहीन होता है।
  • सूर्यग्रहण में ग्रहण से चार प्रहर पूर्व और चंद्रग्रहण में तीन प्रहर पूर्व भोजन नहीं करना चाहिए (1 प्रहर = 3 घंटे) । वृद्ध, बालक और रोगी एक प्रहर पूर्व खा सकते हैं।
  • ग्रहण के दिन पत्ते, तिनके, लकड़ी और फूल नहीं तोड़ना चाहिए
  • स्कंद पुराण के अनुसार ग्रहण के अवसर पर दूसरे का अन्न खाने से 12  वर्षो का एकत्र किया हुआ सब पुण्य नष्ट हो जाता है।
  • ग्रहण के समय कोई भी शुभ या नया कार्य शुरू नहीं करना चाहिए।
  • – ग्रहण लगने से पूर्व स्नान करके भगवान का पूजन, यज्ञ, जप करना चाहिए।
  • – भगवान वेदव्यास जी ने परम हितकारी वचन कहे हैं- चन्द्रग्रहण में किया गया पुण्यकर्म (जप, ध्यान, दान आदि) एक लाख गुना और सूर्य ग्रहण में दस लाख गुना फलदायी होता है।
  • – ग्रहण के समय गुरुमंत्र, इष्टमंत्र अथवा भगवन्नाम जप अवश्य करें, न करने से मंत्र को मलिनता प्राप्त होती है।
  • – ग्रहण समाप्त हो जाने पर स्नान करके ब्राम्हण को दान करने का विधान है ।
  • – ग्रहण के बाद पुराना पानी, अन्न नष्ट कर नया भोजन पकाया जाता है और ताजा भरकर पीया जाता है।
  • – ग्रहण पूरा होने पर सूर्य या चन्द्र, जिसका ग्रहण हो, उसका शुद्ध बिंब देखकर भोजन करना चाहिए।
  • – ग्रहणकाल में स्पर्श किये हुए वस्त्र आदि की शुद्धि हेतु बाद में उसे धो देना चाहिए तथा स्वयं भी वस्त्रसहित स्नान करना चाहिए।
  • – ग्रहण के समय गायों को घास, पक्षियों को अन्न, जरूरत मंदों को वस्त्रदान देने से अनेक गुना पुण्य प्राप्त होता है।
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दीपावली के दूसरे दिन लगने वाला खंडग्रास सूर्यग्रहण ग्रस्तास्त सूर्यग्रहण के रूप में नजर आएगा। सूर्यास्त होने के कारण ग्रहण का मोक्ष भार में दृश्यमान नहीं होगा। ग्रहण का सूतक 12 घंटे पहले ही लग जाएगा। ज्योतिष के  अनुसार सूतक काल में भोजन तथा पेय पदार्थों के सेवन की मनाही की गई है तथा देव दर्शन भी वर्जित माना गया है। हालांकि इसके पीछे वैज्ञानिक मान्यता भी है कि ग्रहण के समय जीवाणुओं की प्रबलता होती है और ऐसे काल में किया भोजन स्वास्थ्य के लिहाज से उत्तम नहीं होता है। 

काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो.रामनारायण द्विवेदी ने बताया कि काशी में ग्रहण का स्पर्शकाल 25 अक्तूबर मंगलवार को शाम 4:23 बजे पर होगा। ग्रहण का मध्य काल शाम 5:28 बजे और मोक्षकाल शाम 6:25 बजे होगा। ग्रहण के स्पर्श, मध्य एवं मोक्ष के समय स्नान करना चाहिए। सूर्यग्रहण का सूतक 24 अक्तूबर की अर्द्धरात्रि के बाद 4:23 बजे शुरू हो जाएगा। 

ग्रहण काल में भोजन के पात्रों में डालें कुश या तुलसी

ग्रहण काल के दौरान भोजन के पात्रों में कुश अथवा तुलसी डाल देनी चाहिए जिससे ग्रहण काल के सब कीटाणु कुश में एकत्रित हो जाएं और उन्हें ग्रहण के बाद फेंका जा सके। ग्रहण वेध के पहले जिन पदार्थों में कुश या तुलसी की पत्तियां डाल दी जाती हैं, वे पदार्थ दूषित नहीं होते हैं। पात्रों में अग्नि डालकर उन्हें पवित्र बनाया जाता है। 



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