Chhath Puja 2022: आगरा में बिखेरी छठ की छटा, 36 घंटे की तपस्या में आज डूबते सूर्य को दिया जाएगा अर्घ्य

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आगरा में छठ महापर्व के दूसरे दिन शनिवार को व्रतियों ने छोटी छठ (खरना) का पूजन किया। खरना के साथ ही 36 घंटे का निर्जल व्रत शुरू हो गया। मुख्य पर्व षष्ठी के लिए घरों के सदस्यों ने पूजन सामग्री तैयार की। शनिवार को पूरे दिन घरों में छठ मैया के गीत गाए गए। निर्जल व्रत रखकर श्रद्धालुओं ने शाम को मिट्टी और ईंट से बने चूल्हे पर रोटी और गुण की खीर बनाई। केले के पत्ते पर अर्ध चंद्रमा की आकृति मन मोहती रही। चंद्रमा की आकृति पर सिंदूर लगाकर दीप जलाया गया। पति और संतान के लिए अग्रासन निकाला गया। छठ मैया और चंद्रमा की की पूजा के बाद व्रत खोला गया। इसके बाद 36 घंटे की तपस्या शुरू हो गई। छठ पर्व के तीसरे दिन रविवार शाम (षष्ठी पर) डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा।

बल्केश्वर, रामबाग, हाथीघाट, दशहरा घाट, कैलाश घाट, पोइया घाट पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचेंगे। मिट्टी की वेदी बनाकर कलश स्थापित करेंगे। षष्ठी मैया और भगवान सूर्य की उपासना की जाएगी। ईख का मंडप बनाया जाएगा। फल, ठेकुआ, नारियल आदि अर्पित किया जाएगा। शाम को डूबते सूर्य को अर्घ्य दिया जाएगा। सोमवार को सुबह चार बजे से पूजा शुरू हो जाएगी, यह उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ संपन्न होगी।

 

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शहर के घाट बाजार, बेलनगंज, रावतपाड़ा, शाहगंज आदि बाजारों में शनिवार को छठ पूजा करने वालों ने तमाम पूजा सामग्री की खरीदारी की। सुपुली, चौमुखी कलश, गन्ना, सुथनी, नारियल, चकोतरा नींबू, अदरक, कच्ची हल्दी, मूली, गाजर, पान का पत्ता, कद्दू, सिंघाड़ा, चननी का कपड़ा, व्रती के लिए पियरी आदि सामग्री की खूब खरीदारी हुई।

जिला शासकीय अधिवक्ता राजस्व अशोक चौबे ने बताया कि रविवार सुबह से ही घरों में व्रती महिलाएं ठेकुआ (पकवान) तैयार करने में जुट जाएंगी। शाम को व्रती बांस की सुपेली, डलिया और सूप में फल, पकवान, कच्ची हल्दी और अदरक, सुथनी, पान का पत्ता, दीपक, गन्ना, लाल और पीले रंग का कपड़ा आदि पूजन सामग्री लेकर घाटों पर पूजन के लिए पहुंचेंगी। 

अखंड पूर्वांचल सेवा समिति के अध्यक्ष विजय गौतम ने बताया कि की पूजा और व्रत को सास अपनी बहुओं को सौंप देती हैं। बुजुर्ग या किसी कारण से छठ का व्रत और पूजा न करने पर वह अपनी बहुओं को यह पूजा सौंप देती हैं। बहु उसी आस्था के साथ इस पूजा और व्रत को करती है जैसे सास किया करती थी। कई घरों में सभी महिलाएं पुरष इस व्रत को रखते हैं, लेकिन यह व्रत खुद की इच्छा और श्रद्धा के साथ रखा जाता है।



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