जन्म से लेकर 5 साल तक के बच्चों में निमोनिया का खतरा सबसे अधिक रहता है। यही वजह है कि चिकित्सक भी ना केवल निमोनिया से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण की सलाह दे रहे हैं बल्कि सबसे ज्यादा सतर्कता बरतने को भी जरूरी बता रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि दवाओं के सही इस्तेमाल न होने से इस बीमारी का खतरा बढ़ रहा है। निमोनिया के प्रति जागरूकता को लेकर हर साल 12 नवंबर को राष्ट्रीय निमोनिया दिवस मनाया जाता है।
कम प्रभावी हो रही हैं दवाएं बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक राय का कहना है कि निमोनिया से ग्रसित बच्चों में कुछ साल से दवाएं कम प्रभावी होती जा रही हैं। इसकी वजह बिना चिकित्सक के सलाह के किसी भी बीमारी में दवा देना है। जन्म के बाद से ही निमोनिया का खतरा ज्यादा रहता है। वैश्विक स्तर पर निमोनिया से मरने वाले बच्चों का प्रतिशत 11 है। यह है लक्षण स्वास्थ्य विभाग में वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉक्टर एके पांडेय के अनुसार गले में खराश, खांसी, हल्का बुखार, कफ जमना, दस्त, भूख कम लगना और थकान महसूस होना इसके लक्षणों में शामिल हैं । बच्चों में बैक्टिीरियल निमोनिया के लक्षणों को भी समझना मुश्किल होता है। इसके लक्षण हैं तेज बुखार, पसीना आना या ठंड लगना, नाखूनों या होठों का नीला पड़ना, सीने में घरघराहट महसूस होना और सांस लेने में दिक्कत महसूस आदि है। निमोनिया दो प्रकार का होता है। बैक्टिीरियल निमोनिया के इलाज में एंटीबायोटिक की जरूरत होती है जबकि वायरल निमोनिया बिना किसी इलाज के कुछ दिनों के अंदर अपने आप ठीक हो जाता है ।
ये बरतें सावधानी बच्चे को एंटीबायोटिक या अन्य कोई भी दवा डॉक्टर की सलाह पर ही दें । निमोनिया होने पर बच्चे को अपने आप खांसी की दवा न दें । बच्चे को पर्याप्त आराम करने दें और शरीर में पानी की कमी न होने दें । सही इलाज से एक या दो सप्ताह में निमोनिया ठीक हो सकता है ।
निमोनिया से बचाता है पीसीवी का टीका जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉक्टर निकुंज वर्मा के अनुसार निमोनिया से बचाव के लिए पीसीवी का टीका कारगर होता है। पहला टीका जन्म से डेढ़ माह पर पोलियो खुराक, पेंटा और आईपीवी के साथ दिया जाता है। दूसरा टीका साढ़े तीन माह ओपीवी, पेंटावेलेंट, एफ़ आईपीवी और रोटा के साथ तथा नौ माह पर खसरे के टीके के साथ बूस्टर डोज दिया जाता है। यह सभी प्रकार के टीके सरकारी चिकित्सालयों तथा स्वास्थ्य केन्द्रों पर नि:शुल्क लगते हैं। इस साल अप्रैल से अब तक 1,17,196 पीसीवी डोज लगाई जा चुकी हैं। इसमें 39,326 पीसीवी प्रथम, 40,861 पीसीवी द्वितीय और 37,019 बूस्टर डोज शामिल हैं।
जन्म से लेकर 5 साल तक के बच्चों में निमोनिया का खतरा सबसे अधिक रहता है। यही वजह है कि चिकित्सक भी ना केवल निमोनिया से बचाव के लिए समय पर टीकाकरण की सलाह दे रहे हैं बल्कि सबसे ज्यादा सतर्कता बरतने को भी जरूरी बता रहे हैं। चिकित्सकों का कहना है कि दवाओं के सही इस्तेमाल न होने से इस बीमारी का खतरा बढ़ रहा है। निमोनिया के प्रति जागरूकता को लेकर हर साल 12 नवंबर को राष्ट्रीय निमोनिया दिवस मनाया जाता है।
कम प्रभावी हो रही हैं दवाएं
बाल रोग विशेषज्ञ डॉ. अशोक राय का कहना है कि निमोनिया से ग्रसित बच्चों में कुछ साल से दवाएं कम प्रभावी होती जा रही हैं। इसकी वजह बिना चिकित्सक के सलाह के किसी भी बीमारी में दवा देना है। जन्म के बाद से ही निमोनिया का खतरा ज्यादा रहता है। वैश्विक स्तर पर निमोनिया से मरने वाले बच्चों का प्रतिशत 11 है।