Live In Relationship : हाईकोर्ट की टिप्पणी- बालिग को पसंद के साथी संग रहने का अधिकार, नहीं हो कोई हस्तक्षेप

0
15

[ad_1]

इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला

ख़बर सुनें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी गई है। दो बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का सांविधानिक अधिकार है। उनके जीवन में किसी प्राधिकारी या व्यक्ति को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे याचियों के खिलाफ  बलिया के नरही थाने में दर्ज एफ आईआर को रद्द कर दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार तथा न्यायमूर्ति सैयद वैज मियां की खंडपीठ ने आकाश राजभर व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका में  सुप्रीम कोर्ट के शाफिन जहां बनाम अशोकन के एम व अन्य केस के फैसले के अनुसार दर्ज प्राथमिकी रद करने की मांग की गई थी।

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के हवाले से कहा कि किसी की भी व्यक्तिगत स्वतंत्रता बिना कानूनी प्राधिकार से छीनी नहीं जा सकती। बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से एक साथ रहने का सांविधानिक अधिकार है। सरकार का दायित्व है कि वह उनके इस अधिकार की सुरक्षा करे। बालिगों को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने तथा साथ रहने का अधिकार है। उन्हें इस अधिकार से वंचित नहीं किया जा सकता।

यह भी पढ़ें -  आम आदमी पर महंगाई की मार: चावल, आटा, सरसों-रिफाइंड तेल के दाम बढ़े, कीमतों में 25 फीसदी बढ़ोतरी

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि लिव इन रिलेशनशिप को कानूनी मान्यता दी गई है। दो बालिग जोड़े को अपनी मर्जी से साथ रहने का सांविधानिक अधिकार है। उनके जीवन में किसी प्राधिकारी या व्यक्ति को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। कोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे याचियों के खिलाफ  बलिया के नरही थाने में दर्ज एफ आईआर को रद्द कर दिया है।

यह आदेश न्यायमूर्ति सुनीत कुमार तथा न्यायमूर्ति सैयद वैज मियां की खंडपीठ ने आकाश राजभर व अन्य की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया है। याचिका में  सुप्रीम कोर्ट के शाफिन जहां बनाम अशोकन के एम व अन्य केस के फैसले के अनुसार दर्ज प्राथमिकी रद करने की मांग की गई थी।



[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here