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अखिलेश यादव व शिवपाल सिंह यादव।
– फोटो : amar ujala
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सपा के लिए मैनपुरी लोकसभा उपचुनाव नए अध्याय की शुरुआत हो सकती है। सोमवार को जिस तरह मंच पर अखिलेश ने शिवपाल के पैर छुए और शिवपाल ने मार्मिक बयान दिया, उसके गहरे निहितार्थ हैं। उन्होंने कहा, नेताजी के साथ रहकर बहुत कुछ सीखा है। उनको कभी निराश नहीं किया। अखिलेश को भी निराश नहीं करूंगा।
शिवपाल की यह अपील विवशता भी है और कार्यकर्ताओं को नए सिरे से जोड़ने की रणनीति भी। ऐसे में अहम सवाल यह है कि शिवपाल की यह पुकार सपा अध्यक्ष अखिलेश पर कितना असरकारी होगी? क्योंकि रिश्तों पर जमी बर्फ पिघलने की अग्निपरीक्षा उपचुनाव नहीं बल्कि लोकसभा आमचुनाव में होगी।
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अखिलेश और शिवपाल के बीच 2016 में रिश्तों में दरार आई। शिवपाल ने प्रगतिशील समाजवादी पार्टी बना ली। खुद को मुलायम सिंह की विरासत का असली वारिस बताने का प्रयास किया। विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी की। अपनी ताकत का अहसास कराया। तीन दौर की यात्रा के बाद मुलायम ने हस्तक्षेप किया और यात्रा स्थगित हो गई।
शिवपाल को भरोसा था कि सपा के टिकट पर वह खुद और अपने खास लोगों को चुनाव लड़ाएंगे। लेकिन अखिलेश ने सिर्फ उन्हें टिकट दिया। शिवपाल के तमाम साथी धोखे का आरोप लगा दूसरे दल में चले गए। वक्त बीता। विधायक दल की बैठक में नहीं बुलाए जाने से नाराज शिवपाल ने अखिलेश से सभी रिश्ते खत्म करने का ऐलान किया।
मैनपुरी में जो दिख रहा है वो आईवॉश है या हकीकत
सियासी जानकारों का कहना है कि सोमवार को दिए गए बयान ने साबित कर दिया है कि शिवपाल ने खुद को अखिलेश पर छोड़ दिया है। इसकी बड़ी वजह शिवपाल की उम्र भी है। वह नए सिरे से सियासत शुरू करने की स्थिति में नहीं है। दूसरी तरफ बेटे आदित्य और विपरीत परिस्थितियों में साथ न छोड़ने वाले साथियों का भी कॅरिअर है। अब देखना यह होगा कि मैनपुरी में जो दिख रहा है वह सिर्फ आईवॉश है अथवा हकीकत।
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