हाईकोर्ट ने कहा : भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन प्राधिकरण सिविल न्यायालय नहीं

0
19

[ad_1]

(सांकेतिक तस्वीर)

(सांकेतिक तस्वीर)
– फोटो : सोशल मीडिया

ख़बर सुनें

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन एक प्राधिकरण (एलएआरआरए) है। वह सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 24 (ए) के तहत कोई सिविल न्यायालय नहीं है। इसलिए प्राधिकरण में लंबित अर्जी के स्थानांतरण का आदेश हाईकोर्ट नहीं दे सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने प्रयागराज की गजाला बेगम की अर्जी को अस्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने स्थानांतरण अर्जी की पोषणीयता पर सवाल उठाए।

कहा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियमए 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार की धारा 51 के तहत उपयुक्त सरकार द्वारा स्थापित एक प्राधिकरण है। इसे संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधीक्षण के उद्देश्य से इस न्यायालय के अधीन एक न्यायाधिकरण के रूप में माना जा सकता है लेकिन सीपीसी के तहत उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय नहीं है।

मामले में याची ने प्राधिकरण में लंबित एक मामले में सक्षम क्षेत्राधिकारी के किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। क्योंकि, यहां कोई पीठासीन अधिकारी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के जरिए अधिनियम-2013 के कानून के तहत की गई है। जो कि भूमि अधिग्रहण केसंबंध में काम करती है। यह सीपीसी 1908 की धारा (24)(1ए) के तहत इस न्यायालय के अधीन नहीं है। इसलिए कोर्ट प्राधिकरण के लंबित मामलों की सुनवाई केलिए उसे किसी दूसरे सक्षम प्राधिकरण को स्थानांतरित नहीं कर सकती है।

यह भी पढ़ें -  मां की हत्या कर हुआ था फरार: अब घायल पिता की भी मौत, कातिल बेटे को नहीं दबोच पाई पुलिस

विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन एक प्राधिकरण (एलएआरआरए) है। वह सिविल प्रक्रिया संहिता (सीपीसी) की धारा 24 (ए) के तहत कोई सिविल न्यायालय नहीं है। इसलिए प्राधिकरण में लंबित अर्जी के स्थानांतरण का आदेश हाईकोर्ट नहीं दे सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने प्रयागराज की गजाला बेगम की अर्जी को अस्वीकार करते हुए दिया है। कोर्ट ने स्थानांतरण अर्जी की पोषणीयता पर सवाल उठाए।

कहा कि भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियमए 2013 में उचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकार की धारा 51 के तहत उपयुक्त सरकार द्वारा स्थापित एक प्राधिकरण है। इसे संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत अधीक्षण के उद्देश्य से इस न्यायालय के अधीन एक न्यायाधिकरण के रूप में माना जा सकता है लेकिन सीपीसी के तहत उच्च न्यायालय के अधीनस्थ न्यायालय नहीं है।

मामले में याची ने प्राधिकरण में लंबित एक मामले में सक्षम क्षेत्राधिकारी के किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने की मांग की गई थी। क्योंकि, यहां कोई पीठासीन अधिकारी नहीं है। कोर्ट ने कहा कि प्राधिकरण सरकार द्वारा जारी अधिसूचना के जरिए अधिनियम-2013 के कानून के तहत की गई है। जो कि भूमि अधिग्रहण केसंबंध में काम करती है। यह सीपीसी 1908 की धारा (24)(1ए) के तहत इस न्यायालय के अधीन नहीं है। इसलिए कोर्ट प्राधिकरण के लंबित मामलों की सुनवाई केलिए उसे किसी दूसरे सक्षम प्राधिकरण को स्थानांतरित नहीं कर सकती है।



[ad_2]

Source link

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here