पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद प्रयागराज पुलिस अब और ताकतवर हो गई है। इसके तहत 15 मजिस्टीरियल अधिकार पुलिस को मिल गए हैं। इससे गैंगस्टर-गुंडा जैसी कार्रवाई वह खुद कर माफिया पर नकेल कस सकेगी। उधर, लोक शांति, निरोधात्मक कार्रवाई के संबंध में भी त्वरित निर्णय लिया जा सकेगा।
जानकारों का कहना है कि इससे अपराध पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही आम लोगों को भी इसका फायदा मिलेगा। नई प्रणाली में पुलिस आयुक्त को 15 अधिकार मिल गए हैं जो अब तक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास होते थे। लोगों को अलग-अलग दफ्तर के चक्कर भी नहीं काटने होंगे।
लोक व्यवस्था और शांति बनाए रखने के लिए भी सीआरपीसी में उल्लेखित कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां पुलिस आयुक्त के पास होंगी। इसके अलावा उसके अधीन तैनात अफसरों जैसे संयुक्त पुलिस आयुक्त, अपर पुलिस आयुक्त, पुलिस उपायुक्त, अपर पुलिस उपायुक्त व सहायक पुलिस आयुक्तों को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गई हैं।
क्या होगा बदलाव
151- पुलिस की रिपोर्ट पर अब तक मजिस्ट्रेट अधिकतर मामलों में अपने स्तर से कार्रवाई कर जमानत दे देते थे। नई प्रणाली में मामले की संवेदनशीलता, गंभीरता को परख कर पुलिस आयुक्त खुद लेंगे कार्रवाई का निर्णय। 107/116- अब तक सीआरपीसी की इस धारा के तहत की गई कार्रवाई केवल खानापूरी भर होती है। यही वजह है कि पाबंद किए गए लोगों की अन्य घटनाओं में भी संलिप्तता सामने आती रहती है। अब किसी घटना में संलिप्तता सामने आने पर पुलिस पूर्व में की गई पाबंदियों के अनुसार कार्रवाई का निर्णय खुद से ले सकेगी।
गुंडा एक्ट- इसके लिए लंबी प्रक्रिया अपनानी पड़ती थी। जिला प्रशासन का अनुमोदन लेना होता था। नई व्यवस्था में पुलिस इस कार्रवाई के लिए स्वतंत्र होगी, ऐसे में कानून हाथ में लेने वालों के खिलाफ कार्रवाई में तेजी आएगी। गैंगस्टर- संगठित अपराध के खात्मे के लिए अचूक माने जाने वाले गिरोहबंद अधिनियम के तहत कार्रवाई के लिए भी डीएम की अनुमति लेनी जरूरी होती थी। पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होने से आर्थिक लाभ के लिए गैंग बनाकर आपराधिक वारदातें करने वालों पर पुलिस अपने स्तर से गैंगस्टर की कार्रवाई कर सकेगी।
फायर की एनओसी भी पुलिस के जिम्मे
अब तक फायर विभाग से एनओसी का अधिकार भी जिलाधिकारी के पास होता था। नई व्यवस्था में यह शक्ति सीपी यानी पुलिस कमिश्नर के पास होगी। व्यापारियों को इसके लिए पुलिस, अग्निशमन व जिला प्रशासन के दफ्तर के चक्कर काटने पड़ते थे। नई व्यवस्था में इससे छुटकारा मिलेगा। मजिस्टीरियल शक्ति मिलने से पशु क्रूरता के मामलों में भी अब पुलिस को सीधे कार्रवाई का अधिकार होगा। आतिशबाजी व विस्फोटक सामग्री के लिए लाइसेंस देने का अधिकार भी पुलिस महकमे से ही दिया जाएगा।
…लेकिन शस्त्र लाइसेंस डीएम ही करेंगे जारी जानकारों का कहना है कि पुलिस आयुक्त प्रणाली लागू होेने के बाद भी शस्त्र लाइसेंस समेत कई अधिकार अब भी डीएम के पास ही होंगे। बार का लाइसेंस के साथ ही सराय एक्ट के तहत होटलों पर कार्रवाई के लिए पुलिस को डीएम से अनुमति लेनी पड़ेगी। गौरतलब है कि दिल्ली व मुंबई में उपरोक्त अधिकार पुलिस कमिश्नर को प्रदान किए गए हैं।
इन अधिनियम के तहत पुलिस कर सकेगी कार्रवाई 1- उप्र गुंडा नियंत्रण अधिनियम, 1970 2- विष अधिनियम 1919 3- अनैतिक व्यापार (निवारण) अधिनियम,1956 4- पुलिस (द्रोह उद्दीपन) अधिनियम, 1922 5- पशुओं के प्रति क्रूरता निवारण अधिनियम, 1960 6- विस्फोटक अधिनियम, 1844 7- कारागार अधिनियम, 1894 8- शासकीय गुप्ता बात अधिनियम, 1923 9- विदेशियों विषयक अधिनियम,1946 10- गैर कानूनी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम,1967 11- पुलिस अधिनियम 1861 12- उत्तर प्रदेश अग्निशमन सेवा अधिनियम, 1944 13- उप्र अग्नि निवारण एवं अग्नि सुरक्षा अधिनियम, 2005 14- उप्र गिरोहबंद एवं समाज विरोधी क्रियाकलाप (निवारण) अधिनियम,1986
विस्तार
पुलिस कमिश्नरेट बनने के बाद प्रयागराज पुलिस अब और ताकतवर हो गई है। इसके तहत 15 मजिस्टीरियल अधिकार पुलिस को मिल गए हैं। इससे गैंगस्टर-गुंडा जैसी कार्रवाई वह खुद कर माफिया पर नकेल कस सकेगी। उधर, लोक शांति, निरोधात्मक कार्रवाई के संबंध में भी त्वरित निर्णय लिया जा सकेगा।
जानकारों का कहना है कि इससे अपराध पर अंकुश लगाने में मदद मिलेगी। साथ ही आम लोगों को भी इसका फायदा मिलेगा। नई प्रणाली में पुलिस आयुक्त को 15 अधिकार मिल गए हैं जो अब तक कार्यकारी मजिस्ट्रेट के पास होते थे। लोगों को अलग-अलग दफ्तर के चक्कर भी नहीं काटने होंगे।
लोक व्यवस्था और शांति बनाए रखने के लिए भी सीआरपीसी में उल्लेखित कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां पुलिस आयुक्त के पास होंगी। इसके अलावा उसके अधीन तैनात अफसरों जैसे संयुक्त पुलिस आयुक्त, अपर पुलिस आयुक्त, पुलिस उपायुक्त, अपर पुलिस उपायुक्त व सहायक पुलिस आयुक्तों को विशेष कार्यकारी मजिस्ट्रेट की शक्तियां दी गई हैं।