इलाहाबाद हाईकोर्ट न्यायिक व्यवस्था के प्रति लोगों के नजरिए पर गंभीर टिप्पणी की है और याची की स्थानांतरण अर्जी को खारिज करते हुए 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि आज जीवन के सभी क्षेत्रों में नागरिकों ने एक दृष्टिकोण विकसित किया है, जहां कि एक न्यायाधीश उनके लिए एक आसान लक्ष्य है और वे न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को खराब कर सकते हैं। उनके खिलाफ कुछ भी आरोप लगा सकते हैं, विशेष रूप से अधीनस्थ न्यायालयों में पीठासीन अधिकारियों पर आम है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने हरि सिंह की अपील पर सुनवाई करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण से अधीनस्थ न्यायालयों का मनोबल गिर सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के दुस्साहस करने वाले वादियों को सख्ती से हतोत्साहित किया जाना चाहिए। शुरुआत में अदालत ने कहा कि आवेदक विचाराधीन आरोप का समर्थन करने के लिए मामूली ठोस सबूत या सामग्री पेश नहीं कर सका। वास्तव में न्यायालय ने पाया कि आवेदक द्वारा लगाए गए आरोप इतने बेतुके थे कि उन्हें खारिज करने की आवश्यकता थी।
मामले में याची हरि सिंह 2013 के मुकदमे में वादी है। उसने अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एफटीसी) फिरोजाबाद के न्यायालय में लंबित उक्त मुकदमे से उत्पन्न अपील को किसी अन्य न्यायालय में स्थानांतरित करने के लिए एक अर्जी दाखिल की। उसकी ओर से कहा गया कि प्रतिवादी उन्हें धमकी दे रहे हैं कि जहां उनकी अपील लंबित हैं, पीठासीन अधिकारी के साथ उनकी सांठगांठ है। जिला न्यायाधीश ने उनकी अपील को खारिज कर दी। इसके बाद याची ने हाईकोर्ट में गुहार लगाई थी। हाईकोर्ट ने उसकी याचिका को खारिज कर 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया। हर्जाने की रकम को फिरोजाबाद जिला विधिक सेवा प्राधिकरण के खाते में जमा करने का आदेश दिया।
इलाहाबाद हाईकोर्ट न्यायिक व्यवस्था के प्रति लोगों के नजरिए पर गंभीर टिप्पणी की है और याची की स्थानांतरण अर्जी को खारिज करते हुए 10 हजार रुपये का हर्जाना लगाया है। कोर्ट ने कहा कि आज जीवन के सभी क्षेत्रों में नागरिकों ने एक दृष्टिकोण विकसित किया है, जहां कि एक न्यायाधीश उनके लिए एक आसान लक्ष्य है और वे न्यायाधीशों की प्रतिष्ठा को खराब कर सकते हैं। उनके खिलाफ कुछ भी आरोप लगा सकते हैं, विशेष रूप से अधीनस्थ न्यायालयों में पीठासीन अधिकारियों पर आम है।
यह टिप्पणी न्यायमूर्ति जेजे मुनीर ने हरि सिंह की अपील पर सुनवाई करते हुए की। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के दृष्टिकोण से अधीनस्थ न्यायालयों का मनोबल गिर सकता है। कोर्ट ने कहा कि इस तरह के दुस्साहस करने वाले वादियों को सख्ती से हतोत्साहित किया जाना चाहिए। शुरुआत में अदालत ने कहा कि आवेदक विचाराधीन आरोप का समर्थन करने के लिए मामूली ठोस सबूत या सामग्री पेश नहीं कर सका। वास्तव में न्यायालय ने पाया कि आवेदक द्वारा लगाए गए आरोप इतने बेतुके थे कि उन्हें खारिज करने की आवश्यकता थी।