Unnao News: नगर पालिका में हुई जांच में कई कार्यों में मिला गोलमाल

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उन्नाव। नगर पालिका में परिषद में स्वच्छता के नाम पर उपकरणों की खरीद व कार्यों में गड़बड़ी की बात सामने आई है। डीएम के निर्देश पर गठित दो अलग-अलग टीमों को जांच में कई कार्यों में गोलमाल मिला है। लाखों की कीमत से उपकरण खरीदने का तो ब्योरा है लेकिन, इनका प्रयोग कहां हो रहा है इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। इसके अलावा कई अन्य उपकरणों की खरीदारी का सत्यापन नियम विरुद्ध कराया गया। जांच अधिकारियों ने रिपोर्ट बनाकर डीएम को भेज दी है।
शहर को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से नगर पालिका परिषद द्वारा लाखों के उपकरण तो खरीदे गए लेकिन, इसके बाद भी स्वच्छता ध्वस्त है। इस पर डीएम ने कड़ा रुख अपनाते हुए वित्तीय वर्ष 2018-19 में खरीदे गए उपकरणों की जांच के लिए अतिरिक्त मजिस्ट्रेट देवेंद्र प्रताप सिंह और परियोजना निदेशक डीआरडीए यशवंत सिंह को सौंपी थी।
साथ ही वित्तीय वर्ष 2019-20 की जांच एसडीएम सदर और परियोजना अधिकारी डूडा को दी गई थी। जांच टीम में शामिल अधिकारियों ने गुरुवार को नगर पालिका कार्यालय जाकर जांच पड़ताल की। अभिलेखों की जांच में पता चला कि सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत 8.54 लाख से बरेली की फर्म से मोबाइल टायलेट की खरीदारी की गई।
इसमें भुगतान 7.26 लाख का तुरंत कर दिया गया। इधर छह माह से टायलेट खराब पड़ा है। इस सामग्री को लेते समय उसकी गुणवत्ताकी किसी समिति द्वारा जांच नहीं की गई। जबकि नियमानुसार क्रय समिति को जांच करनी चाहिए थी।
अधिकारियों ने जांच में पाया कि 644 हाथ कूड़ा गाड़ी क्रय की गईं। खरीदते समय तकनीकी परीक्षण नहीं किया गया। गाड़ी किसको कब प्राप्त कराई गईं, यह कहीं दर्ज नहीं है। साथ ही वर्तमान में 50 प्रतिशत से भी कम कूड़ा गाड़ी कार्य में लगी होने की जानकारी हुई। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 50 और 2018-19 में 185 डस्टबिन 12.33 लाख से खरीदे गए। जांच के समय संबंधित लिपिक को प्रशासक ने फोन करके कई बार बुलाया लेकिन लिपिक उपस्थित नहीं हुआ।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत कूड़ा कलेक्शन व ट्रांसपोर्टेशन के लिए सात लाख रुपये प्रति ट्रिपर की लागत से 35 ट्रिपर खरीदे गए। लखनऊ की फर्म को अग्रिम भुगतान भी किया गया। अभी तक तीन ट्रिपर की आपूर्ति ही नहीं हुई है। वहीं जो मिले उनमें छह खराब हैं। चार बनने गए जो वापस नहीं आए। ट्रिपर का तकनीकी परीक्षण गोरखपुर की यूपीएसआईसी के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा कराया गया। जिसे इस कार्य के लिए सक्षम नहीं पाया गया। इसी प्रकार 17.48 लाख से खरीदे गए कैटिल कैचर वाहन की तकनीकी जांच एआरटीओ से नहीं कराई गई। यही नहीं 8.70 लाख से पांच वाटर कूलर कानपुर की फर्म से खरीदे गए। 17 समरसेबल की खरीदारी की भी जांच की गई। इसका भी तकनीकी परीक्षण सक्षम अधिकारी से नहीं कराया गया।

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उन्नाव। नगर पालिका में परिषद में स्वच्छता के नाम पर उपकरणों की खरीद व कार्यों में गड़बड़ी की बात सामने आई है। डीएम के निर्देश पर गठित दो अलग-अलग टीमों को जांच में कई कार्यों में गोलमाल मिला है। लाखों की कीमत से उपकरण खरीदने का तो ब्योरा है लेकिन, इनका प्रयोग कहां हो रहा है इसकी जानकारी किसी के पास नहीं है। इसके अलावा कई अन्य उपकरणों की खरीदारी का सत्यापन नियम विरुद्ध कराया गया। जांच अधिकारियों ने रिपोर्ट बनाकर डीएम को भेज दी है।

शहर को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से नगर पालिका परिषद द्वारा लाखों के उपकरण तो खरीदे गए लेकिन, इसके बाद भी स्वच्छता ध्वस्त है। इस पर डीएम ने कड़ा रुख अपनाते हुए वित्तीय वर्ष 2018-19 में खरीदे गए उपकरणों की जांच के लिए अतिरिक्त मजिस्ट्रेट देवेंद्र प्रताप सिंह और परियोजना निदेशक डीआरडीए यशवंत सिंह को सौंपी थी।

साथ ही वित्तीय वर्ष 2019-20 की जांच एसडीएम सदर और परियोजना अधिकारी डूडा को दी गई थी। जांच टीम में शामिल अधिकारियों ने गुरुवार को नगर पालिका कार्यालय जाकर जांच पड़ताल की। अभिलेखों की जांच में पता चला कि सालिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत 8.54 लाख से बरेली की फर्म से मोबाइल टायलेट की खरीदारी की गई।

इसमें भुगतान 7.26 लाख का तुरंत कर दिया गया। इधर छह माह से टायलेट खराब पड़ा है। इस सामग्री को लेते समय उसकी गुणवत्ताकी किसी समिति द्वारा जांच नहीं की गई। जबकि नियमानुसार क्रय समिति को जांच करनी चाहिए थी।

अधिकारियों ने जांच में पाया कि 644 हाथ कूड़ा गाड़ी क्रय की गईं। खरीदते समय तकनीकी परीक्षण नहीं किया गया। गाड़ी किसको कब प्राप्त कराई गईं, यह कहीं दर्ज नहीं है। साथ ही वर्तमान में 50 प्रतिशत से भी कम कूड़ा गाड़ी कार्य में लगी होने की जानकारी हुई। वित्तीय वर्ष 2017-18 में 50 और 2018-19 में 185 डस्टबिन 12.33 लाख से खरीदे गए। जांच के समय संबंधित लिपिक को प्रशासक ने फोन करके कई बार बुलाया लेकिन लिपिक उपस्थित नहीं हुआ।

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट के तहत कूड़ा कलेक्शन व ट्रांसपोर्टेशन के लिए सात लाख रुपये प्रति ट्रिपर की लागत से 35 ट्रिपर खरीदे गए। लखनऊ की फर्म को अग्रिम भुगतान भी किया गया। अभी तक तीन ट्रिपर की आपूर्ति ही नहीं हुई है। वहीं जो मिले उनमें छह खराब हैं। चार बनने गए जो वापस नहीं आए। ट्रिपर का तकनीकी परीक्षण गोरखपुर की यूपीएसआईसी के क्षेत्रीय कार्यालय द्वारा कराया गया। जिसे इस कार्य के लिए सक्षम नहीं पाया गया। इसी प्रकार 17.48 लाख से खरीदे गए कैटिल कैचर वाहन की तकनीकी जांच एआरटीओ से नहीं कराई गई। यही नहीं 8.70 लाख से पांच वाटर कूलर कानपुर की फर्म से खरीदे गए। 17 समरसेबल की खरीदारी की भी जांच की गई। इसका भी तकनीकी परीक्षण सक्षम अधिकारी से नहीं कराया गया।



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