फ्रंटलाइन वर्कर के पिता की गुहार: बोले- साहब! कोरोना की जंग में खो दिया बेटा, नहीं मिल रही मदद

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बाएं से निर्मल प्रसाद और रीना।

बाएं से निर्मल प्रसाद और रीना।
– फोटो : अमर उजाला।

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साहब! कोरोना महामारी में लोगों की सेवा करते हुए इकलौता बेटा खो चुका हूं। अब परिवार पालना मुश्किल हो रहा है। साल भर से आर्थिक सहायता की राशि पाने के लिए दौड़ रहा हूं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। यह दर्द भरा उलाहना सोमवार को आपदा संयोजक गौतम गुप्ता को दे रहे थे गोपलापुर निवासी निर्मल प्रसाद।

अधिकारी की टेबल के सामने कांपते हाथों को जोड़े खड़े निर्मल प्रसाद गुहार लगाते समय भावुक हो गए। सुबकते हुए बोले कि मैं मर जाऊंगा तो पौत्रों का क्या होगा? जो थोड़ी जमीन थी, उसे बेटे के इलाज के लिए गिरवी रख दी। पेंशन से किसी तरह गुजर-बसर हो रहा है। आर्थिक मदद मिल जाती तो बहू और पौत्रों के भविष्य की सुरक्षा के लिए कुछ कर देता।  

आंखों में भर आए आंसू को पोंछते हुए उन्होंने कहा कि अब तो मेरी उम्र हो चुकी है। सांसें कभी भी साथ छोड़ सकती हैं। एकलौते बेटे को खो चुका हूं। जीते जी बहू और पौत्रों का भविष्य सुरक्षित करने की आखिरी इच्छा है। हाथ जोड़ रहा हूं। किसी तरह बच्चों के हक की आर्थिक सहायता दिला दीजिए।

इसके बाद उन्होंने थोड़ा तल्ख लहजे में कहा कि ऐसे तो जरूरी सेवाओं से जुड़ा कोई भी कर्मचारी किसी महामारी के दौरान अपनी जान जोखिम में नहीं डालेगा। परिवार के लोग भी ऐसा नहीं करने देंगे। फिर उन्होंने कहा कि सभी पीड़ितों को मदद मिल चुकी है। केवल मैं ही दौड़ लगा रहा हूं।

 

हालांकि, यह सच नहीं है कि केवल निर्मल प्रसाद ही आर्थिक मदद पाने के लिए चक्कर लगा रहे हैं। जिले के अन्य पांच फ्रंट लाइन वर्कर के परिजनों को भी आर्थिक मदद नहीं मिल पाई है। सभी आपदा कार्यालय से लेकर डीएम कार्यालय तक दौड़ लगा रहे हैं। मुख्यमंत्री के गोरखनाथ मंदिर में आयोजित होने वाले जनता दरबार में भी गुहार लगा चुके हैं, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हो रही है।

वहीं, आपदा कार्यालय के जिम्मेदारों से लेकर प्रभारी अधिकारी आपदा और डीएम सभी का कहना है कि सारी प्रक्रिया पूरी कर शासन को भेजी जा चुकी है। रिमाइंडर भी भेजा गया है। जल्द ही आर्थिक मदद मिलने की उम्मीद है।

विद्युत विभाग में संविदा पर तैनात थे निर्मल के बेटे
निर्मल प्रसाद के बेटे विकलेश गौड़ विद्युत विभाग में संविदा पर तैनात थे। कोरोना में ड्यूटी के दौरान कोविड संक्रमण की वजह से उनकी मौत हो गई। विभाग से सत्यापन सहित सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर आपदा विभाग ने 50 लाख रुपये की आर्थिक मदद के लिए फाइल शासन को भेजी है, लेकिन मदद आज तक नहीं मिली।

 

आर्थिक मदद के इंतजार में बाल विकास एवं पुष्टाहार विभाग में आंगनबाड़ी कार्यकर्ता के तौर पर तैनात रहीं स्वर्गीय विमला शुक्ला, राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में ब्लॉक मिशन प्रबंधक रहे स्वर्गीय अर्जुन ओझा, राजस्व विभाग में संग्रह अनुसेवक पद पर तैनात रहे स्वर्गीय राजीव कुमार गौड़ और स्वास्थ्य विभाग के तहत चरगांवा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में वार्ड ब्वाय के तौर पर तैनात रहे स्वर्गीय विकास सिंह के परिजनों का भी नाम शामिल है।

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इलाज का कर्ज चुकाने में ही खत्म हो जा रही तनख्वाह: रीना
कलेक्ट्रेट में संग्रह अनुसेवक के पद पर तैनात राजीव कुमार गौड़ का नाम भी कोरोना में जान गंवाने वाले फ्रंट लाइन वर्कर की सूची में दर्ज है। राजीव की मौत के बाद उनकी पत्नी रीना देवी को उनकी जगह नौकरी तो मिल गई, लेकिन आर्थिक मदद अब तक नहीं मिली है। सोमवार को वह भी आपदा कार्यालय में पैरवी के लिए पहुंची थीं।

उनका कहना था कि करीब साल भर पहले पति की जगह नौकरी मिली, लेकिन जो तनख्वाह मिलती है, उसका ज्यादातर हिस्सा पति के इलाज में लिए गए चार लाख रुपये के कर्ज को चुकाने में चला जाता है। रीना कहती हैं कि बेटी 19 साल की हो गई है। पढ़ाई का खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है। आर्थिक मदद मिल जाती तो बेटी के हाथ पीले करने में मदद मिलती।

10 फ्रंट लाइन वर्कर के परिजनों को मिल चुकी है 50 लाख की मदद
कोरोना की पहली और दूसरी लहर में जान गंवाने वाले जिले के 10 फ्रंट लाइन वर्करों के परिजनों को 50 लाख रुपये की आर्थिक सहायता मिल चुकी है। पत्नी, बेटा व बेटी में से पात्रों को नौकरी भी मिल चुकी है।

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साहब! कोरोना महामारी में लोगों की सेवा करते हुए इकलौता बेटा खो चुका हूं। अब परिवार पालना मुश्किल हो रहा है। साल भर से आर्थिक सहायता की राशि पाने के लिए दौड़ रहा हूं, लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है। यह दर्द भरा उलाहना सोमवार को आपदा संयोजक गौतम गुप्ता को दे रहे थे गोपलापुर निवासी निर्मल प्रसाद।

अधिकारी की टेबल के सामने कांपते हाथों को जोड़े खड़े निर्मल प्रसाद गुहार लगाते समय भावुक हो गए। सुबकते हुए बोले कि मैं मर जाऊंगा तो पौत्रों का क्या होगा? जो थोड़ी जमीन थी, उसे बेटे के इलाज के लिए गिरवी रख दी। पेंशन से किसी तरह गुजर-बसर हो रहा है। आर्थिक मदद मिल जाती तो बहू और पौत्रों के भविष्य की सुरक्षा के लिए कुछ कर देता।  

आंखों में भर आए आंसू को पोंछते हुए उन्होंने कहा कि अब तो मेरी उम्र हो चुकी है। सांसें कभी भी साथ छोड़ सकती हैं। एकलौते बेटे को खो चुका हूं। जीते जी बहू और पौत्रों का भविष्य सुरक्षित करने की आखिरी इच्छा है। हाथ जोड़ रहा हूं। किसी तरह बच्चों के हक की आर्थिक सहायता दिला दीजिए।

इसके बाद उन्होंने थोड़ा तल्ख लहजे में कहा कि ऐसे तो जरूरी सेवाओं से जुड़ा कोई भी कर्मचारी किसी महामारी के दौरान अपनी जान जोखिम में नहीं डालेगा। परिवार के लोग भी ऐसा नहीं करने देंगे। फिर उन्होंने कहा कि सभी पीड़ितों को मदद मिल चुकी है। केवल मैं ही दौड़ लगा रहा हूं।

 



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