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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि जमानत अर्जी की सुनवाई के समय उपलब्ध सबूतों का परीक्षण नहीं किया जा सकता, केवल यह देखा जाएगा कि अपराध में भूमिका क्या है और जमानत पर रिहाई का हकदार है या नहीं। कोर्ट ने कहा आग से जलकर युवती की मौत हुई है। उसने डाक्टरों और एएसआई के समक्ष मृत्यु पूर्व बयान दिया है।
पुलिस ने एफआईआर में नामित कई अभियुक्तों को छोड़ दिया है। ऐसा कोई तथ्य नहीं है, जिससे आशंका हो कि अभियुक्त से डॉक्टर व पुलिस की वैमनस्यता रही हो। आग से जलकर मरने का साक्ष्य है। ऐसे में जमानत पर रिहा नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने जमानत अर्जी खारिज करते हुए कहा है कि कोई वैधानिक अड़चन न हो तो एक साल में ट्रायल पूरा किया जाए। यह आदेश न्यायमूर्ति कृष्ण पहल ने गाजियाबाद, लोनी के अनीस की अर्जी पर दिया है।
शामली, कांधला के निवासी शिकायतकर्ता ने एफआईआर दर्ज कराई थी। कहा मौत के सात साल पहले उसकी बहन का अनीस से मुस्लिम रीति रिवाज से निकाह हुआ था। याची के एक लड़की से संंबंध थे। दोनों परिवार द्वारा एक साथ आपत्तिजनक हालत में पकड़े गए थे। सुधरने का वायदा किया। याची व परिवार वाले मृतका को सताते थे। मारपीट करते थे। 10 दिसंबर 18 को शिकायतकर्ता को फोन आया कि उसकी बहन आग लगने से जल गई है। अस्पताल ले जाया गया जहां बचाया नहीं जा सका।घटना से पहले याची अपनी बीवी को लेकर लोनी की एक मस्जिद में ठहरा था।
कोर्ट में सवाल था कि क्या एएसआई द्वारा मौत से पहले लिया गया बयान मृत्युकालिक कथन माना जाएगा या नहीं। कोर्ट ने कहा ऐसा बयान सुना हुआ बयान होता है। कोर्ट देखेगी कि बयान पढ़ाकर, उकसाकर दिलाया तो नहीं गया है, या बयान काल्पनिक तो नहीं है। मृतका से मारपीट का वीडियो भी है। विवेचना को देखते हुए कहा जा सकता है कि डाक्टर व पुलिस की कार्रवाई ठीक है।
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