जापान में महाभूकंप की चेतावनी, भारत में नए नक्शे ने बढ़ाई चिंता

0
111

दुनिया के कई देशों में भूकंप आते रहते हैं और तबाही मचाते रहते हैं, लेकिन कुछ दिनों पहले जब जापान ने संभावित महाभूकंप के बारे में चेतावनी जारी की, जिससे 100 फुट ऊंची सुनामी आ सकती थी और विशाल तटीय क्षेत्रों में तबाही मच सकती थी, तब पूरी दुनिया की चिंता बढ़ी और देशों ने इस पर ध्यान दिया। बता दें कि जापान दुनिया के सबसे भूकंपरोधी देशों में से एक है। लेकिन महाभूकंप और सुनामी की इस चेतावनी ने फिर से इस प्रश्न को जन्म दिया कि क्या भूकंप की भविष्यवाणी वास्तव में की जा सकती है? जापान की महाभूकंप चेतावनी के बाद तुरंत यह अटकलें लगने लगीं कि क्या हिमालय में भी ऐसी ही आपदा आ सकती है?

भारतीय मानक ब्यूरो (BIS) की ओर से हाल ही में जारी किए गए नए भूकंपीय मानचित्र ने भूकंप को लेकर गंभीर सवाल पैदा कर दिया है, जिससे हिमाचल में भूकंप का खतरा अब पहले से बढ़ गया है। जारी किए गए नए मैप में पूरे हिमालयी क्षेत्र को देश के सबसे अधिक जोखिम वाले भूकंपीय जोन छह (Red Zone) में शामिल किया गया हे जो उच्चतम खतरे की श्रेणी में आ गए हैं। नए मानचित्र के अनुसार पहले जोन चार और जोन पांच में बंटे प्रदेश को अब पूरी तरह अत्यधिक संवेदनशील श्रेणी में रखा गया है। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में संभावित बड़े भूकंप की आशंका को ध्यान में रखकर ये मैप तैयार किया गया है।

भारत में किसी बड़े भूकंप की चेतावनी को लेकर वैज्ञानिकों का कहना है कि इसका उत्तर केवल हां या ना में देने से कहीं अधिक जटिल है। आज, भारत में भी भूकंप के जोखिम को लेकर चिंता की जानी चाहिए। ये इसलिए क्योंकि प्रारंभिक चेतावनी ही जीवन बचा सकती हैं। इसे लेकर आईआईटी रुड़की में पृथ्वी विज्ञान विभाग के प्रमुख प्रोफेसर संदीप सिंह ने बताया है कि, कुछ लोग कह रहे हैं कि हिमालय में भी ऐसा ही भूकंप आ सकता है, लेकिन यह केवल एक अनुमान है, सटीक भविष्यवाणी नहीं।”

उन्होंने कहा, पृथ्वी का व्यवहार अत्यंत परिवर्तनशील है। हम ये तो जानते हैं कि पृथ्वी में तनाव कहां बढ़ रहा है, लेकिन कोई नहीं कह सकता कि यह कब टूटेगा और कब भूकंप आएगा। भूकंप पृथ्वी की निरंतर निर्माण और विरूपण प्रक्रिया का हिस्सा हैं। भूवैज्ञानिक अभिलेख दर्शाते हैं कि ऐसी घटनाएं हमेशा से होती रही हैं, आगे ये कितनी बड़ी घटना होगी, इसकी कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।”

हिमालय को लेकर किसी बड़े भूकंप की चिंता इसलिए की जा रही है क्योंकि विश्व के हिमालय सबसे युवा और सबसे अधिक विवर्तनिक रूप से सक्रिय पर्वतों में से हैं, जिनका निर्माण भारतीय और यूरेशियन प्लेटों के निरंतर टकराव से हुआ है। वर्तमान में यह टकराव किसी एक बिंदु पर नहीं हो रहा है, बल्कि लगभग 2,500 किलोमीटर तक फैला हुआ है। इस इलाके में भूकंपीय तनाव दशकों या सदियों तक जमा होता रहता है और फिर शक्तिशाली भूकंपों के रूप में प्रकट होता है।

यह भी पढ़ें -  पार्थ चटर्जी, उनकी सहयोगी अर्पिता 5 अगस्त तक ईडी की हिरासत में रहेंगे

विशेषज्ञों की मानें तो जापान में आने वाले महाभूकंप से हिमालयी फॉल्ट सिस्टम पर असर पड़ने की संभावना नहीं है, क्योंकि एक तो दूरी बहुत अधिक है और दूसरे, फॉल्ट आपस में सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं हैं। जापान में आने वाले एक महाभूकंप से हिमालय में कोई बड़ी भूकंपीय घटना होने की संभावना कम है। ये क्षेत्र एक-दूसरे से बहुत दूर हैं और विशाल, विलीन होती हुई प्लेट सीमाओं द्वारा अलग किए गए हैं। लेकिन भूकंप को लेकर भविष्यवाणी करने से ज्यादा जरूरी है कि इससे नुकसान कम हो इसके लिए तैयारी करना।

भूकंप को लेकर विज्ञान केवल इतना कर सकता है कि हिमालयी चाप के कुछ हिस्सों में बड़े भूकंपों की क्षमता की निगरानी करे, उसे उजागर करे और सरकारों को भूकंपरोधी निर्माण लागू करने, पूर्व चेतावनी और निगरानी नेटवर्क को मजबूत करने और समुदायों को तैयार करने के लिए प्रेरित करे। भविष्यवाणी से ज्यादा है इससे बचने की तैयारी करना।

फुकुशिमा में आई आपदा सहित दशकों से आए विनाशकारी भूकंपों ने जापान को दुनिया की कुछ सबसे उन्नत भूकंप पहचान और पूर्व चेतावनी प्रणालियों का निर्माण करने के लिए प्रेरित किया है। नानकाई ट्रफ जैसे क्षेत्रों के विस्तृत मॉडल अधिकारियों को 8 से अधिक तीव्रता वाले भूकंपों और सुनामी की संभावना का अनुमान लगाने और उसी के अनुसार देश में इमारतों, समुद्री दीवारों और निकासी योजनाओं को मजबूत करने की समझ दी है। लेकिन इस उन्नत तकनीक के बावजूद भी जापान में, सटीक भविष्यवाणी, यानी भविष्य में आने वाले भूकंप का सटीक दिन, समय और स्थान बताना, अभी भी संभव नहीं है।

भूकंप की भविष्यवाणी संभव क्यों नहीं है
जब भूकंप आता है तो इसकी अधिकांश गतिविधि जमीन से 10-20 किलोमीटर नीचे होती है, जो प्रत्यक्ष उपकरणों की पहुंच से बहुत दूर है, और कई सूक्ष्म दरारें और कंपन इतने छोटे होते हैं कि सतह पर उनका पता लगाना संभव नहीं है। वैज्ञानिक उच्च तनाव वाले फॉल्ट खंडों की पहचान कर सकते हैं और बता सकते हैं कि कोई क्षेत्र एक बड़े भूकंप के लिए “तैयार” है, लेकिन यह नहीं बता सकते कि वह स्थिर खंड अंततः कब टूटेगा।

हालांकि, जापान और कुछ अन्य देश भूकंप शुरू होने के बाद त्वरित प्रारंभिक चेतावनी प्रदान करते हैं, जिससे ट्रेनों को रोकने, सर्जरी को स्थगित करने और लोगों को सुरक्षित स्थान पर जाने के लिए कुछ सेकंड से लेकर दसियों सेकंड तक का समय मिलता है, न कि कई दिनों का पूर्वानुमान।

फिलहाल, कड़वी सच्चाई यही है कि भूकंपों का अनुमान व्यापक, संभाव्यता के आधार पर लगाया जा सकता है, लेकिन घड़ी की सुई की तरह सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। असली ताकत सटीक क्षण का अनुमान लगाने में नहीं है, बल्कि जोखिम को स्वीकार करने, उसके लिए तैयारी करने और जब जमीन हिलने लगे तो तैयार रहने में है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here