Agriculture: किन्नू और मौसमी से हो रहा दोगुना मुनाफा, पंजाब-हिमाचल में ही नहीं आगरा में भी हो रही खेती

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पिनाहट के खेत में किन्नू की फसल

पिनाहट के खेत में किन्नू की फसल
– फोटो : अमर उजाला

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अभी तक कहा जाता था कि किन्नू और मौसमी की पैदावार सिर्फ पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसी जगहों पर हो सकती है। लेकिन अब आगरा के किसान भी किन्नू और मौसमी की बागवानी कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। पिनाहट के गांव विजय गढ़ी के किसानों ने अपने खेतों में किन्नू और मौसमी के बाग लगाए हैं। साथ ही वह अन्य किसानों को भी इसकी जानकारी दे रहे हैं।

विजय गढ़ी निवासी दिनेश परिहार ने बताया कि जब मुझे पहली बार किन्नू और मौसमी के बारे जानकारी मिली, तो हमने दो लाख रुपये खर्च कर 45 बीघा खेत में किन्नू और मौसमी की बागवानी शुरू की थी। आज किन्नू और मौसमी से अच्छी कमाई हो रही है। हम पहले परंपरागत खेती करते थे, जिसमे काफी पैसा लगाना पड़ता था। 

किन्नू और मौसमी की खेती में दोगुना मुनाफा 

उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार की मदद के बाद हमने 2017 में पहली बार किन्नू और मौसमी की पौधों की रोपाई कराई। इसके बाद अच्छी पैदावार हुई। उत्तर प्रदेश की जलवायु के लिए किन्नू और मौसमी की खेती के लिए सही है। अब हम इसमें पौधों के बीच आलू और गेहूं की खेती करके दोगुना फायदा उठा रहे हैं।

सितंबर-अक्तूबर में की जाती है बुवाई 

किन्नू और मौसमी का पौधा तैयार करने के लिए सितंबर से अक्तूबर में इसकी बुवाई की जाती है। इसकी बुवाई ऊंची उठी क्यारी में की जाती है, जो कि दो से तीन मीटर लंबी, दो फुट चौड़ी व 15 से 20 सेंटीमीटर जमीन से ऊंची होती है। बुवाई के तीन से चार सप्ताह के बाद अंकुरित हो जाता है। 

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शुरुआत में किन्नू और मौसमी का पौधा लगाने के दौरान उन्हें काफी रखवाली और रखरखाव के लिए मेहनत करनी पड़ी। पौधों के बीच में लगातार गेहूं और आलू की खेती भी होती रही। साथ ही पौधों का आकार बढ़ा और फल भी आने लगे हैं। जिससे अब वह अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। दिनेश अपने गांव और क्षेत्र के लोगों को भी किन्नू और मौसमी के बाग लगाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। 

विस्तार

अभी तक कहा जाता था कि किन्नू और मौसमी की पैदावार सिर्फ पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसी जगहों पर हो सकती है। लेकिन अब आगरा के किसान भी किन्नू और मौसमी की बागवानी कर बढ़िया मुनाफा कमा रहे हैं। पिनाहट के गांव विजय गढ़ी के किसानों ने अपने खेतों में किन्नू और मौसमी के बाग लगाए हैं। साथ ही वह अन्य किसानों को भी इसकी जानकारी दे रहे हैं।

विजय गढ़ी निवासी दिनेश परिहार ने बताया कि जब मुझे पहली बार किन्नू और मौसमी के बारे जानकारी मिली, तो हमने दो लाख रुपये खर्च कर 45 बीघा खेत में किन्नू और मौसमी की बागवानी शुरू की थी। आज किन्नू और मौसमी से अच्छी कमाई हो रही है। हम पहले परंपरागत खेती करते थे, जिसमे काफी पैसा लगाना पड़ता था। 

किन्नू और मौसमी की खेती में दोगुना मुनाफा 

उन्होंने बताया कि प्रदेश सरकार की मदद के बाद हमने 2017 में पहली बार किन्नू और मौसमी की पौधों की रोपाई कराई। इसके बाद अच्छी पैदावार हुई। उत्तर प्रदेश की जलवायु के लिए किन्नू और मौसमी की खेती के लिए सही है। अब हम इसमें पौधों के बीच आलू और गेहूं की खेती करके दोगुना फायदा उठा रहे हैं।



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