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इलाहाबाद हाईकोर्ट
– फोटो : अमर उजाला
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि विवाह पंजीकरण वैध विवाह का सबूत नहीं है। केवल इसे साक्ष्य के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। कोर्ट ने यह भी कहा कि आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र का कोई वैधानिक प्रभाव नहीं है। शादी परंपरागत दोनों पक्षों की सहमति समारोह में होनी चाहिए। जिसमें सप्तपदी की रस्म पूरी हुई हो। कोर्ट ने कहा कि जब शादी ही वैध नहीं तो हिंदू विवाह अधिनियम की धारा नौ के तहत विवाह पुनर्स्थापन की अर्जी परिवार अदालत द्वारा स्वीकार न करना कानूनन सही है। शादी के वैध सबूत के बगैर धारा नौ की अर्जी मंजूर नहीं की जा सकती।
कोर्ट ने परिवार अदालत सहारनपुर की धारा नौ की अर्जी खारिज करने के फैसले के खिलाफ प्रथम अपील खारिज कर दी है। यह आदेश न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति राजेंद्र कुमार की खंडपीठ ने आशीष मौर्य की अपील पर दिया है। इसका कहना था कि अनामिका धीमान उसकी पत्नी है। विवाह पुनर्स्थापित करने की परिवार अदालत में अर्जी दी। बाद में समझौते के आधार पर वापस ले ली। किंतु कुछ दिन बाद दुबारा अर्जी दाखिल की। कथित पत्नी ने शादी होने से इंकार कर दिया। कहा, झूठी शादी की गई है।
उसे ब्लैकमेल करने के लिए आर्य समाज से विवाह प्रमाणपत्र लिया गया है। इसी मामले में थाना सदर बाजार, सहारनपुर में एफ आईआर दर्ज कराई गई है। पुलिस ने चार्जशीट भी दाखिल कर दी है। कोर्ट ने कहा कि सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश11 नियम -दो के तहत बिना शादी हुए पुनर्स्थापन अर्जी दाखिल की जा सकती है। ऐसी अर्जी प्रतिबंधित मानने के परिवार अदालत के फैसले को हाईकोर्ट ने सही माना और कहा आर्य समाज का विवाह प्रमाणपत्र शादी की वैधता का सबूत नहीं है।
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