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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Sun, 22 May 2022 12:08 AM IST
सार
मामले में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर्स की सीधी भर्ती के लिए सितंबर-2018 में आवेदन मांगे थे। विश्वविद्यालय में नियुक्त अनेक अतिथि और संविदा पर नियुक्त शिक्षकों ने सीधी भर्ती को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी।
इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) में असिस्टेंट प्रोफेसरों की सीधी भर्ती की प्रक्रिया को चुनौती देने वालों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रियाओं को सही मानते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 2018 की गाइडलाइन के मुताबिक है। उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने गीतांजलि पांडेय सहित मामले में दाखिल पांच अलग-अलग याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है।
मामले में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर्स की सीधी भर्ती के लिए सितंबर-2018 में आवेदन मांगे थे। विश्वविद्यालय में नियुक्त अनेक अतिथि और संविदा पर नियुक्त शिक्षकों ने सीधी भर्ती को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि चयन प्रक्रिया विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन कर पूरी की जा रही है। उनका तर्क था कि अतिथि प्रवक्ता, संविदा और तदर्थ अथवा अन्य रूप में किए गए शिक्षण कार्य को सेवाकाल के अनुभव के आधार पर स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा अंक प्रदान किए जाने चाहिए थे, जो नहीं किए जा रहे हैं।
उन्हें साक्षात्कार में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है। उनका यह भी तर्क था कि पूर्व केवर्षों में विश्वविद्यालय ने भर्ती में एक पद केसापेक्ष 15 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में आमंत्रित करने का निर्णय लिया था। जबकि, इस वर्ष एक पद के सापेक्ष आठ अभ्यर्थियों को ही साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया जा रहा है, जो स्वयं विश्वविद्यालय केपूर्व के निर्णय के खिलाफ है। याचियों ने स्ववित्त पोषित संस्थानों में किए गए शैक्षिक कार्य के अनुभव के आधार पर भी अंक न प्रदान किए जाने को चुनौती दी थी।
इविवि के अधिवक्ता ने दिया तर्क, कहा- यूजीसी के मानकों के अनुसार हो रही भर्ती
इसके विपरीत इलाहाबाद विश्वविद्यालय की ओर से अधिवक्ता क्षितिज शैलेंद्र ने कहा कि असिस्टेंट प्रोफेसर के पदों पर सीधी भर्ती विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वर्ष-2018 की नियमावली के अनुरूप की जा रही है। जहां तक संविदा और अतिथि प्रवक्ता पर कार्यरत रहे शिक्षकों के सेवाकाल केअनुभव को अंक प्रदान किए जाने का प्रश्न है तो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की नियमावली अतिथि प्रवक्ताओं को इसकेलिए अयोग्य ठहराती है।
साथ ही संविदा पर नियुक्त शिक्षकों के अनुभव केवल उन्हीं परिस्थितियों में विचार योग्य है जबकि संविदा पर नियुक्ति 2018 की नियमावली के नियम 10 और 13 के अनुसार हुई हो अन्यथा नहीं। यह भी कहा कि हाईकोर्ट स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा दिए गए अंकों का परीक्षण नहीं कर सकता है। क्योंकि, कमेटी विशेषज्ञों की एक टीम है, जो विधि अनुसार समस्त तथ्यों और अभिलेखों का परीक्षण करके ही अंक प्रदान करती है।
इसके साथ ही उन्हीं अभ्यर्थियों को साक्षात्कार के लिए बुलाया जाता है जो विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित मानकों को पूर्ण करते हैं। कोर्ट ने तथ्यों को देखते हुए याची गीतांजलि पांडेय, याची अरविंद कुमार सिंह, मधुकर मिश्रा, डॉ. अमिता सिंह व आठ अन्य, ब्रह्मदेव की याचिकाओं को खारिज कर दिया।
विस्तार
इलाहाबाद विश्वविद्यालय (इविवि) में असिस्टेंट प्रोफेसरों की सीधी भर्ती की प्रक्रिया को चुनौती देने वालों को इलाहाबाद हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली है। हाईकोर्ट ने भर्ती प्रक्रियाओं को सही मानते हुए सभी याचिकाओं को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि भर्ती प्रक्रिया विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की 2018 की गाइडलाइन के मुताबिक है। उसमें हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने गीतांजलि पांडेय सहित मामले में दाखिल पांच अलग-अलग याचिकाओं को खारिज करते हुए दिया है।
मामले में इलाहाबाद विश्वविद्यालय ने विभिन्न विभागों में असिस्टेंट प्रोफेसर्स की सीधी भर्ती के लिए सितंबर-2018 में आवेदन मांगे थे। विश्वविद्यालय में नियुक्त अनेक अतिथि और संविदा पर नियुक्त शिक्षकों ने सीधी भर्ती को विभिन्न आधारों पर चुनौती दी। याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि चयन प्रक्रिया विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा निर्धारित नियमों का उल्लंघन कर पूरी की जा रही है। उनका तर्क था कि अतिथि प्रवक्ता, संविदा और तदर्थ अथवा अन्य रूप में किए गए शिक्षण कार्य को सेवाकाल के अनुभव के आधार पर स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा अंक प्रदान किए जाने चाहिए थे, जो नहीं किए जा रहे हैं।
उन्हें साक्षात्कार में आमंत्रित नहीं किया जा रहा है। उनका यह भी तर्क था कि पूर्व केवर्षों में विश्वविद्यालय ने भर्ती में एक पद केसापेक्ष 15 अभ्यर्थियों को साक्षात्कार में आमंत्रित करने का निर्णय लिया था। जबकि, इस वर्ष एक पद के सापेक्ष आठ अभ्यर्थियों को ही साक्षात्कार के लिए आमंत्रित किया जा रहा है, जो स्वयं विश्वविद्यालय केपूर्व के निर्णय के खिलाफ है। याचियों ने स्ववित्त पोषित संस्थानों में किए गए शैक्षिक कार्य के अनुभव के आधार पर भी अंक न प्रदान किए जाने को चुनौती दी थी।
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