Allahabad High Court : नशे में एसओ से बदसलूकी करने वाले सिपाही की बर्खास्तगी का आदेश रद्द

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Thu, 19 May 2022 11:51 PM IST

सार

कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ललितपुर का आदेश गलत है। कोर्ट ने मामले में आईजी झांसी रेंज झांसी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दूरसंचार उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा उनकी सेवा से बर्खास्तगी की पुष्टि करने वाले आदेशों को भी रद्द कर दिया।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सिपाही को हटाए जाने के मामले में पारित आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश के जरिये उसकी सेवा को समाप्त कर दिया गया था। उस पर नशे के दौरान थाना प्रभारी के साथ बदसलूकी करने का आरोप था। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने दशरथ सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।

कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ललितपुर का आदेश गलत है। कोर्ट ने मामले में आईजी झांसी रेंज झांसी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दूरसंचार उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा उनकी सेवा से बर्खास्तगी की पुष्टि करने वाले आदेशों को भी रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि याची का न तो यूरिन परीक्षण हुआ और न ही रक्त परीक्षण किया गया। जबकि, उस पर लगाए गए आरोप के आधार पर ये दोनों ही जांच जरूर होनी चाहिए थीं। याची को जब विभागीय कार्यवाही में दंडित किया जा रहा था तब इन तथ्यों पर भी विचार किया जाना जरूरी था। कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में याची के खिलाफ पारित आदेश पोषणीय नहीं है। उसे रद्द किया जाता है। 

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विस्तार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिछले हफ्ते उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा सिपाही को हटाए जाने के मामले में पारित आदेश को रद्द कर दिया। इस आदेश के जरिये उसकी सेवा को समाप्त कर दिया गया था। उस पर नशे के दौरान थाना प्रभारी के साथ बदसलूकी करने का आरोप था। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ वर्मा की खंडपीठ ने दशरथ सिंह की याचिका को स्वीकार करते हुए दिया।

कोर्ट ने कहा कि जांच अधिकारी पुलिस अधीक्षक ललितपुर का आदेश गलत है। कोर्ट ने मामले में आईजी झांसी रेंज झांसी और अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक दूरसंचार उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा उनकी सेवा से बर्खास्तगी की पुष्टि करने वाले आदेशों को भी रद्द कर दिया।

कोर्ट ने कहा कि याची का न तो यूरिन परीक्षण हुआ और न ही रक्त परीक्षण किया गया। जबकि, उस पर लगाए गए आरोप के आधार पर ये दोनों ही जांच जरूर होनी चाहिए थीं। याची को जब विभागीय कार्यवाही में दंडित किया जा रहा था तब इन तथ्यों पर भी विचार किया जाना जरूरी था। कोर्ट ने कहा कि ऐसी परिस्थितियों में याची के खिलाफ पारित आदेश पोषणीय नहीं है। उसे रद्द किया जाता है। 

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