Allahabad High Court :  पीड़ित 12 साल बाद पारित आदेश को धारा 372 में नहीं दे सकता चुनौती- हाईकोर्ट

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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Sat, 19 Feb 2022 08:27 PM IST

सार

खंडपीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान में कहा गया है कि पीड़ित को अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश के खिलाफ  अपील दायर करने का अधिकार है। जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया है, कम अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है या अपर्याप्त मुआवजा लगाया गया है।

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उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 372 के तहत 2009 के बाद पारित आदेशों के खिलाफ याचिका दाखिल की जा सकती है, उसके पहले के पारित आदेशों के खिलाफ नहीं। अगर 2009 के बाद दाखिल की जाती है तो वह परिसीमा अधिनियम की धारा पांच के तहत पोषणीय होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला और न्यायमूर्ति मोहम्मद असलम ने देवरिया जिले के विसुनपूरा थाने के तूफानी की अपील को खारिज करते हुए दिया है।

पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान में कहा गया है कि पीड़ित को अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश के खिलाफ  अपील दायर करने का अधिकार है। जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया है, कम अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है या अपर्याप्त मुआवजा लगाया गया है।

हाईकोर्ट ने याची के मामले में पाया कि देवरिया की सत्र न्यायालय की ओर से 2002 में आदेश पारित किया गया था, जिसमें अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था।

अब इसमें सवाल यह खड़ा हुआ कि क्या 31 दिसंबर 2009 से पहले जारी किए गए बरी करने के आदेश के खिलाफ  अपील दायर की जा सकती है। जब धारा 372 का प्रावधान प्रभावी हो गया था। कोर्ट ने पाया कि मामले में अपील 5172 दिन के बाद दाखिल की गई। तूफानी ने अपनी अपील में निचली अदालत केफैसले को चुनौती दी थी।

केवल राज्य सरकार दाखिल कर सकती थी अपील
हाईकोर्ट ने कहा कि याची के पक्ष में वैधानिक अधिकार 31 दिसंबर 2009 को सीआरपीसी की धारा 372 में संशोधन द्वारा प्रदान किया गया था और उस संशोधन से पहले केवल राज्य सरकार अपील दायर कर सकती थी। याची एक आपराधिक पुनर्विचार याचिका दायर करके निर्णय को चुनौती दे सकता था लेकिन याची की ओर से ऐसा नहीं किया गया। 

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हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसा कोई विशेष प्रावधान नहीं है कि धारा 372 सीआरपीसी का प्रावधान पूर्वव्यापी (पूर्व के मामलों में भी लागू होना) प्रकृति का है। इस प्रकार कोर्ट ने कहा अपील पोषणीय नहीं है। कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।

विस्तार

उच्च न्यायालय ने अपने एक अहम फैसले में कहा है कि सीआरपीसी की धारा 372 के तहत 2009 के बाद पारित आदेशों के खिलाफ याचिका दाखिल की जा सकती है, उसके पहले के पारित आदेशों के खिलाफ नहीं। अगर 2009 के बाद दाखिल की जाती है तो वह परिसीमा अधिनियम की धारा पांच के तहत पोषणीय होगी।

यह आदेश न्यायमूर्ति विवेक कुमार बिरला और न्यायमूर्ति मोहम्मद असलम ने देवरिया जिले के विसुनपूरा थाने के तूफानी की अपील को खारिज करते हुए दिया है।

पीठ ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 372 के प्रावधान में कहा गया है कि पीड़ित को अदालत द्वारा पारित किसी भी आदेश के खिलाफ  अपील दायर करने का अधिकार है। जिसमें आरोपी को बरी कर दिया गया है, कम अपराध के लिए दोषी ठहराया गया है या अपर्याप्त मुआवजा लगाया गया है।

हाईकोर्ट ने याची के मामले में पाया कि देवरिया की सत्र न्यायालय की ओर से 2002 में आदेश पारित किया गया था, जिसमें अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था।

अब इसमें सवाल यह खड़ा हुआ कि क्या 31 दिसंबर 2009 से पहले जारी किए गए बरी करने के आदेश के खिलाफ  अपील दायर की जा सकती है। जब धारा 372 का प्रावधान प्रभावी हो गया था। कोर्ट ने पाया कि मामले में अपील 5172 दिन के बाद दाखिल की गई। तूफानी ने अपनी अपील में निचली अदालत केफैसले को चुनौती दी थी।

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