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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राजस्थान में दर्ज मुकदमे में सीआरपीसी की धारा 438 का प्रयोग करते हुए रियल स्टेट के निदेशकों, कर्मचारियों को राहत प्रदान की है। हाईकोर्ट ने याचियों की गिरफ्तारी पर रोक लगाते हुए चार सप्ताह में सक्षम न्यायालय के समक्ष राहत पाने के लिए प्रस्तुत होने को कहा है। यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ ने अमिता गर्ग तथा छह अन्य की ओर से दाखिल अग्रिम जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए दिया है।
मामले में याचियों के खिलाफ राजस्थान के जयपुर सिटी (दक्षिण) स्थित मानसरोवर पुलिस स्टेशन में 10 मई को आईपीसी की धारा 504, 506, 384, 467, 468, 120-बी के तहत एफआईआर दर्ज कराई गई थी। इसमें दो याची आगरा में स्थापित रियल स्टेट कंपनी राजदरबार इंफोटेक प्राइवेट लिमिटेड सहित कई अन्य कंपनियों के निदेशक हैं।
कंपनी ने जयपुर में टाउनशिप के उद्देश्य से 350 बीघा भूमि के लिए एक बड़ी रकम मेसर्स पिंक सिटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड के जरिए वास्तु कॉलोनाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड को भुगतान किया था लेकिन यह कंपनी केवल 80 बीघा भूमि ही मुहैया करा सकी। वहीं याची की शेष रकम भी नहीं लौटाई। पिंक सिटी इंफ्रास्ट्रक्चर प्राइवेट लिमिटेड ने वास्तु कॉलोनाइजर्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ आगरा में आईपीसी की विभिन्न धाराओं में प्राथमिकी दर्ज कराई।
इसमें इस याचिका के प्रतिवादी ग्यानचंद अग्रवाल का नाम भी शामिल है। याचियों की ओर से तर्क दिया गया कि वह मूल रूप से आगरा केनिवासी हैं। इसलिए उनके खिलाफ राजस्थान में दर्ज मुकदमे में अल्पकालिक अग्रिम जमानत मंजूर की जाए जिससे वह राजस्थान हाईकोर्ट में अपनी नियमित जमानत के लिए अर्जी दाखिल कर सकें।
हालांकि, सरकारी अधिवक्ता ने इसका विरोध किया। कहा, राजस्थान का मामला होने के कारण वह इलाहाबाद हाईकोर्ट के क्षेत्राधिकार के बाहर का है। कोर्ट ने दोनों पक्षों को सुनने के बाद कहा, ट्रांजिट अथवा अल्पकालिक अग्रिम जमानत को विशेष रूप से परिभाषित नहीं किया गया है।
कोर्ट ने मामले में सुप्रीम कोर्ट केतीस्ता अतुल सीतलवाड़ बांबे हाईकोर्ट के निकिता जैकब के फैसले का हवाला देते हुए कहा, सीआरपीसी की धारा 438 के तहत शक्ति का प्रयोग करने में हाईकोर्ट की ओर से कोई बंधन नहीं है ताकि याची उस हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटा सके जहां अपराध का आरोप लगाया गया है।
मुकदमें में गिरफ्तारी और व्यक्ति की स्वतंत्रता के हनन के मामले में न्यायालय की शक्तियों, क्षमता या अधिकार क्षेत्र के आधार पर समझौता नहीं किया जा सकता है। मुकदमे में पक्षों के बीच वाणिज्यिक लेनदेन का मामला है। लिहाजा अल्पकालिक (ट्रांजिट) अग्रिम जमानत देने से इनकार नहीं किया जा सकता है।
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