Allahabad High Court : वैवाहिक विवाद के मामले में दर्ज प्राथमिकी को हाईकोर्ट ने किया रद्द

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धारा 376, 354, 323 ए, 504, 506 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 34 के तहत मुरादाबाद के मैनाथर थाने में दर्ज प्राथमिकी को दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द कर दिया। इकबाल व दो अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि विपक्षियों में एक पक्ष ने मामले से हटने का निर्णय लिया है।

आईपीसी की धारा 323 ए, 504 ए, 506  कंपाउंडेबल हैं।धारा 376 ए, 354 यहां पर लागू नहीं होतीं, क्योंकि पीड़ित की चिकित्सकीय जांच नहीं की गई है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एक बार पार्टियों ने फैसला किया है कि वे इस मुकदमे को लड़ना नहीं चाहती हैं, दर्ज प्राथमिकी निरस्त की जानी चाहिए।

याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी के वकील ने संयुक्त रूप से कहा कि पार्टियों के बीच वैवाहिक विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है और प्रतिवादी मामले पर आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं हैं। राज्य के वकील द्वारा जांच पत्र पेश किए गए, जिसमें पता चला कि आईपीसी की धारा 376 ए, 354 के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है। कोर्ट का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निहित शक्तियां सीआरपीसी की धारा 482 की तुलना में बहुत अधिक हैं और इसलिए उक्त शक्तियों का प्रयोग करके यह न्यायालय एफआईआर को रद्द कर सकता है।

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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धारा 376, 354, 323 ए, 504, 506 आईपीसी और दहेज निषेध अधिनियम की धारा 34 के तहत मुरादाबाद के मैनाथर थाने में दर्ज प्राथमिकी को दोनों पक्षों के बीच समझौते के आधार पर रद्द कर दिया। इकबाल व दो अन्य की याचिका पर न्यायमूर्ति डॉ. कौशल जयेंद्र ठाकर और न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा कि विपक्षियों में एक पक्ष ने मामले से हटने का निर्णय लिया है।

आईपीसी की धारा 323 ए, 504 ए, 506  कंपाउंडेबल हैं।धारा 376 ए, 354 यहां पर लागू नहीं होतीं, क्योंकि पीड़ित की चिकित्सकीय जांच नहीं की गई है। इस तथ्य को ध्यान में रखते हुए कि एक बार पार्टियों ने फैसला किया है कि वे इस मुकदमे को लड़ना नहीं चाहती हैं, दर्ज प्राथमिकी निरस्त की जानी चाहिए।

याचिकाकर्ताओं और प्रतिवादी के वकील ने संयुक्त रूप से कहा कि पार्टियों के बीच वैवाहिक विवाद को सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया है और प्रतिवादी मामले पर आगे बढ़ने के लिए तैयार नहीं हैं। राज्य के वकील द्वारा जांच पत्र पेश किए गए, जिसमें पता चला कि आईपीसी की धारा 376 ए, 354 के तहत कोई अपराध नहीं किया गया है। कोर्ट का कहना था कि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत निहित शक्तियां सीआरपीसी की धारा 482 की तुलना में बहुत अधिक हैं और इसलिए उक्त शक्तियों का प्रयोग करके यह न्यायालय एफआईआर को रद्द कर सकता है।

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