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अमर उजाला नेटवर्क, प्रयागराज
Published by: विनोद सिंह
Updated Sat, 30 Apr 2022 11:47 PM IST
सार
मामले में राम औतार, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र उर्फ बिशुन चंद को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 302 और 323 केतहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई दी। याची राम औतार ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पहले जौनपुर कोतवाली के अंतर्गत हुई हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए उन्हें बरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि जिन आरोपों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। वे जमानत पर थे।
उन्हें सीआरपीसी की धारा 437 ए केप्रावधानों के अनुपालन के अधीन आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। जारी हुए गैर जमानती वारंट को भी निष्पादित करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने मामले में अभियुक्तों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने राम औतार व अन्य की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
मामले में राम औतार, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र उर्फ बिशुन चंद को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 302 और 323 केतहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई दी। याची राम औतार ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
गवाहों के बयान नहीं खा रहे मेल
कोर्ट ने गवाहों के बयान पर संदेह जताया और कहा कि घटना जिस दुकानदार के सामने हुई उसकी कोई जांच नहीं की गई। इसके अलावा गवाहों के बयान भी आपस में मेल नहीं खा रहे और मेडिकल रिपोर्ट से उसका सामंजस्य नहीं बैठता। कोर्ट ने कहा कि ऐसा प्रतीत हो रहा है कि अभियोजन पक्ष और प्रतिवादियों केबीच पहले से दुश्मनी रहीं और उन्होंने ट्रक से हुई दुर्घटना को हत्या में आरोपित कर दिया।
मामले में बाबू नंदन ने अपने भाई राम हरख की हत्या में राम औतार उर्फ बिशुन दयाल, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र के खिलाफ पांच जनवरी 1980 में कोतवाली थाने में एफआईआर दर्ज कराई थी।
घटना वाले दिन मृतक और उसका बेटा दवा लेने गए थे और जैसे ही वे एक चारा विक्त्रस्ेता की दुकान के सामने पहुंचे। आरोपियों (अपीलकर्ताओं) ने मृतक और उसके बेटे पर हमला कर दिया। दोनों को लोहे की छड़ और लाठी के साथ। इस हमले में दोनों को चोटें आई हैं।
विस्तार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 42 साल पहले जौनपुर कोतवाली के अंतर्गत हुई हत्या के मामले में निचली अदालत द्वारा सुनाई गई आजीवन कारावास की सजा को रद्द करते हुए उन्हें बरी करने का आदेश दिया है। कोर्ट ने कहा कि जिन आरोपों के लिए उन्हें दोषी ठहराया गया है। वे जमानत पर थे।
उन्हें सीआरपीसी की धारा 437 ए केप्रावधानों के अनुपालन के अधीन आत्मसमर्पण करने की आवश्यकता नहीं है। जारी हुए गैर जमानती वारंट को भी निष्पादित करने की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने मामले में अभियुक्तों को तुरंत रिहा करने का आदेश दिया। यह आदेश न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा और न्यायमूर्ति शमीम अहमद की खंडपीठ ने राम औतार व अन्य की आपराधिक अपील को स्वीकार करते हुए दिया है।
मामले में राम औतार, राम पाल, पन्ना लाल और राम चंद्र उर्फ बिशुन चंद को आरोपी बनाया गया था। निचली अदालत ने आईपीसी की धारा 302 और 323 केतहत दोषी पाते हुए आजीवन कारावास की सजा सुनाई दी। याची राम औतार ने निचली अदालत के फैसले को हाईकोर्ट में चुनौती दी।
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