महात्मा इंटर कॉलेज की प्रयोगशाला में लटका ताला – फोटो : अमर उजाला
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बड़ौत के सरकारी स्कूलों में विज्ञान की शिक्षा दम तोड़ रही है। एक तरफ विज्ञान के जरिए विकास गाथा लिखी जा रही है तो यहां लैब नहीं है या फिर विज्ञान शिक्षक ही तैनात नहीं हैं। ऐसे हालात में खानापूर्ति के लिए प्रयोगात्मक परीक्षा लेने की तैयारी की जा रही है।
शिक्षा विभाग के अनुसार जनपद में 71 अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय, 14 राजकीय कॉलेज, 12 वित्तविहीन कॉलेज हैं। इन माध्यमिक विद्यालयों में कुछ को छोड़कर ज्यादातर में लैब तो बने हैं लेकिन बदहाल पड़े हैं। कई कॉलेजों में विज्ञान के शिक्षकों की तैनाती तक नहीं है। नगरीय क्षेत्र में तो हालत कुछ ठीक हैं, लेकिन ग्रामीण आंचल में बने कॉलेजों की प्रयोगाशाला की हालत बिल्कुल दयनीय है।
कई कॉलेजों में सिर्फ वसूली जाती है फीस जनपद के कई कॉलेज ऐसे भी हैं, जहां पर प्रयोगात्मक परीक्षाएं कराए बिना ही बच्चों से फीस वसूली जाती है। प्रत्येक छात्र से प्रयोगात्मक परीक्षा के नाम पर 20 रुपये वसूले जाते हैं। जनपद में इन कॉलेजों में लगभग ढाई से तीन हजार बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे में हर साल हजारों रुपये मात्र प्रयोगात्मक परीक्षा कराने के नाम पर ही वसूलते हैं। केस नंबर एक महात्मा गांधी इंटर कॉलेज में प्रयोगशाला है परंतु रसायन विज्ञान का शिक्षक नहीं हैं। जीव विज्ञान का शिक्षक भी निजी है। फिलहाल प्रयोगशाला पर ताला लटका है। प्रधानाचार्य राजेंद्र सिंह का कहना है कि कॉलेज में रसायन विज्ञान का शिक्षक नहीं है। रंग-पुताई अंतिम चरण में है। इसके बाद प्रयोगशाला खोल दी जाएगी।
केस नंबर दो बिनौली के सर्वहितकारी इंटर कॉलेज में विज्ञान प्रयोगशाला नहीं है। यहां विज्ञान के काफी बच्चे हैं, हर साल बच्चों को परेशानी होती है। बिना प्रयोगशाला हर साल कैसे बच्चों की प्रयोगात्मक परीक्षाएं होती हैं।
केस नंबर तीन रंछाड के लालबहादुर शास्त्री इंटर कॉलेज में प्रयोगशाला है परंतु विज्ञान के शिक्षक नहीं हैं। प्रधानाचार्य अर्जुन सिंह ने बताया कि प्रयोगशाला है, लेकिन विज्ञान का शिक्षक नहीं है। वित्तविहीन व्यवस्था के अनुसार निजी शिक्षकों से विज्ञान की पढ़ाई कराई जा रही है।
ये बोले डीआईओएस डीआईओएस रवींद्र कुमार ने दावा किया कि अधिकतर कॉलेजों में प्रयोगशाला हैं, सभी जगह स्थिति ठीक है। उन्होंने बताया कि जिन कॉलेजों में विज्ञान के शिक्षक नहीं हैं, उनमें तैनाती के लिए शासन को भेजा रखा है। बाकी सभी व्यवस्था दुरुस्त है।
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बड़ौत के सरकारी स्कूलों में विज्ञान की शिक्षा दम तोड़ रही है। एक तरफ विज्ञान के जरिए विकास गाथा लिखी जा रही है तो यहां लैब नहीं है या फिर विज्ञान शिक्षक ही तैनात नहीं हैं। ऐसे हालात में खानापूर्ति के लिए प्रयोगात्मक परीक्षा लेने की तैयारी की जा रही है।
शिक्षा विभाग के अनुसार जनपद में 71 अशासकीय सहायता प्राप्त माध्यमिक विद्यालय, 14 राजकीय कॉलेज, 12 वित्तविहीन कॉलेज हैं। इन माध्यमिक विद्यालयों में कुछ को छोड़कर ज्यादातर में लैब तो बने हैं लेकिन बदहाल पड़े हैं। कई कॉलेजों में विज्ञान के शिक्षकों की तैनाती तक नहीं है। नगरीय क्षेत्र में तो हालत कुछ ठीक हैं, लेकिन ग्रामीण आंचल में बने कॉलेजों की प्रयोगाशाला की हालत बिल्कुल दयनीय है।
जनपद के कई कॉलेज ऐसे भी हैं, जहां पर प्रयोगात्मक परीक्षाएं कराए बिना ही बच्चों से फीस वसूली जाती है। प्रत्येक छात्र से प्रयोगात्मक परीक्षा के नाम पर 20 रुपये वसूले जाते हैं। जनपद में इन कॉलेजों में लगभग ढाई से तीन हजार बच्चे पढ़ते हैं। ऐसे में हर साल हजारों रुपये मात्र प्रयोगात्मक परीक्षा कराने के नाम पर ही वसूलते हैं।