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उसके बाद ठाकुरजी पर चढ़ाए गए पन्ना निर्मित मयूर आकृति हार सहित अनेक आभूषण, चांदी, सोने के सिक्के, भरतपुर, करौली, ग्वालियर आदि रियासतों द्वारा दिए गए मोहराकिंत सनद, भेंट, अन्य शहरों में दान में मिली भूमि के दस्तावेज, चांदी के चवंर, छत्र व स्मृति आलेख सुरक्षित रखे गए थे ताकि सेवायतगण भविष्य में मंदिर के मालिकाना हक के बाबत होने वाले किसी भी विवाद का सबूत के साथ निपटारा कर सकें। अब सरकारों द्वारा प्रमाण मांगे जा रहे हैं, तो तहखाने में मौजूद सबूत उजागर होने चाहिए। उन्होंने कहा कि हम चाहते हैं जल्द से जल्द खजाना खोलकर इसमें एकत्रित संपत्ति को निकालकर बिहारीजी के हित में प्रयोग करना चाहिए।
बिहारीजी के दाहिने हाथ की ओर बने दरवाजे से करीब दर्जनभर सीढ़ी उतरने के बाद बायें ओर की तरफ ठाकुरजी के सिंहासन के एकदम बीचोंबीच तोषखाना है। ब्रिटिश शासनकाल के दौरान 1926 और 1936 में दो बार चोरी भी हुई थी। इन घटनाओं की रिपोर्ट के चलते चार लोगों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई भी की गई थी।
चोरी के बाद गोस्वामी समाज ने तहखाने का मुख्य द्वार बंद करके सामान डालने के लिए एक छोटा सा मोखा (मुहाना) बना दिया था। वर्ष 1971 अदालत के आदेश पर खजाने के दरवाजे के ताले पर सील लगा दी गई, जो आज तक यथावत है।
वर्ष 2002 में मंदिर के तत्कालीन रिसीवर वीरेंद कुमार त्यागी को कई सेवायतों ने हस्ताक्षरित ज्ञापन देकर तोषाखाना खोलने का आग्रह किया था। वर्ष 2004 में मंदिर प्रशासन ने गोस्वामीगणों के निवेदन पर पुन: तोषाखाना खोलने के कानूनी प्रयास किये थे, लेकिन वह भी असफल रहे।
वर्ष 1971 में तत्कालीन मंदिर प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष प्यारेलाल गोयल के नेतृत्व में अंतिम बार खोले गए तोषखाने में से अत्यंत कीमती आभूषण, गहने आदि निकालने के बाद एक सूची बनाकर संपूर्ण सामान को एक बक्से में सील सहित बंद कर मथुरा की भूतेश्वर स्थित स्टेट बैंक में जमा कर दिया गया था। सूची की प्रतिलिपि समिति के सभी सातों सदस्यों को मिली थी। उसके बाद आज तक उस बक्से को वापस लाने के प्रयास ही नहीं किए गए।
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